चेन्नई। राज्य की राजनीति और सत्तारुढ अखिल भारतीय अन्ना द्रवि़ड मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) में पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के निधन के बाद से शुरु हुई सियासी ड्रामेबाजी थमने का नाम नहीं ले रही है। हर गुजरते दिन के साथ सत्तारुढ पार्टी की कहानी में एक नया मो़ड सामने आता है। जयललिता के निधन के बाद पन्नीरसेल्वम को मुख्यमंत्री नियुक्त किया जाना और फिर उनसे इस्तीफा लेकर शशिकला का पार्टी का महासचिव बनना, शशिकला का जेल जाना और जेल जाने से पूर्व दिनाकरण को पार्टी का उप महासचिव नियुक्त कर देना, दिनाकरण की पार्टी के उप महासचिव पद पर नियुक्ति को अवैध और अनुचित बताने के लिए प्रस्ताव पारित करना, पन्नीरसेल्वम का शशिकला से विद्रोह करना और शशिकला के जेल जाने के छह महीनों के बाद मुख्यमंत्री पलानीस्वामी के साथ गलबहियां कर लेना और अब ताजा घटनाक्रम में शशिकला को पार्टी से बाहर करने के लिए मुख्यमंत्री पलानीस्वामी द्वारा पार्टी की महापरिषद बैठक बुलाने की घोषणा करना। यह कुछ ऐसे घटनाक्रम हैं जो राज्य की सियासी ड्रामेबाजी के उदाहरण के तौर पर गिने जा सकते हैं।झ्ष्ठप्रय् ब्ह्रख्ष्ठ द्यय्ज्द्मर््यत्र ·र्ष्ठैं ·र्रुैंच्ण ृय्स्द्य द्यह्द्बय्ैंघ्·र्ैं झ्ब्ध्रूइतना सब कुछ होने के बावजूद भी ऐसा लग रहा है कि यह ड्रामेबाजी अभी समाप्त नहीं हुई है और लोगों के लिए पार्टी की ओर से अभी कुछ और राजनीति के रोमांचक घटनाक्रम सामने आएंगे। जब से पन्नीरसेल्वम और पलानीस्वामी साथ आए हैं तब से सत्तारुढ पार्टी की मुश्किलें बढी हुई हैं और इसका कारण हंै शशिकला के भतीजे दिनाकरण। उनके १९ समर्थक विधायक मुख्यमंत्री पलानीस्वामी से समर्थन वापस लेने का पत्र राज्यपाल को सौंप चुके हैं लेकिन इसके बावजूद राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को विश्वासमत साबित करने का निर्देश देने से साफ तौर पर इंकार कर दिया है। बकौल दिनाकरण उनके द्वारा पलानीस्वामी और पन्नीरसेल्वम को पद से हटाने की तैयारी की जा रही है और सत्तारुढ खेमे के कई विधायक उनके पाले में आएंगे। यदि ऐसा होता है तो राज्य के लोगों को सत्तारुढ पार्टी की आंतरिक कलह से पैदा होने वाले कुछ और सियासी ड्रामेबाजी के दृश्यों को देखने का मौका मिल सकता है।्यप्झ्ूय्र् झ्य्यट्टश्चद्भय्ैं द्नर् ्यद्मद्नय् द्यब्र््र ृझ्द्मर् द्नरू्यद्ब·र्ैंय्जब राज्य की सत्तारुढ पार्टी के ध़डे सियासी ड्रामेबाजी में अपनी-अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय करने में लगी हों तो आखिर राज्य विधानसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी द्रवि़ड मुनेत्र कषगम (कषगम) और उसके गठबंधन में शामिल तथा बाहर से उसका वैचारिक समर्थन करने वाली अन्य पार्टियां आखिर अपने विपक्षी धर्म की भूमिका से कैसे पीछे हट सकती थीं, सो राज्य की विपक्षी पार्टियां भी इस आस के साथ कभी चेन्नई स्थित राजभवन का तो कभी नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन का चक्कर लगा रही हैं कि क्या पता सत्ता की बंदरबांट के लिए हो रही उछल कूद में उन्हें भी कोई सुनहरा मौका मिल जाए। द्रमुक के कार्यकारी अध्यक्ष स्टालिन और कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियां राज्य सरकार के अल्पमत में होने का ढिंढोरा पीट रही हैं और सत्ता में आने के सुखद स्वप्नों में डूबी हुई हैं। स्टालिन ने तो अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से धैर्यता पूर्वक राज्य में सरकार बनाने के लिए इंतजार करने को कह दिया है।
इन सबके बीच मीडिया के एक वर्ग में सत्तारुढ पार्टी के दो ध़डों में एकता के बाद एक बार फिर से राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए फूट प़डने की संभावना प्रकट की जा रही है। दरअसल पन्नीरसेल्वम ने पलानीस्वामी के साथ इस शर्त के साथ विलय किया था कि पार्टी की कमान उनके (पन्नीरसेल्वम के) हाथों में होगी और मुख्यमंत्री के रुप में सरकार की कमान पलानीस्वामी के हाथों में होगी। हालांकि अब ऐसा कहा जा रहा है कि पन्नीरसेल्वम के लिए पार्टी की कमान प्राप्त करना आसान नहीं होने वाला। पार्टी का नेतृत्व कौन करेगा इसका निर्णय १२ सितंबर को मुख्यमंत्री की अगुवाई में होने वाली अन्नाद्रमुक की महापरिषद की बैठक में निर्णय लिया जाएगा। ऐसी बातें सामने आ रही हैं कि पलानीस्वामी के समर्थक चाहते हैं कि सरकार के साथ ही पार्टी का स्वामित्व भी उनके नेता के पास रहे। पार्टी को संचालित करने के लिए संयोजन समिति का गठन किया गया है और पन्नीसेल्वम इसके संयोजक हैं तथा पलानीस्वामी इसके संयुक्त संयोजक। अब पलानीस्वामी के समर्थकों की ओर से मांग की जा रही है कि पार्टी से जु़डे निर्णयों और टिकट वितरण तथा चुनाव चिन्ह का आवंटन जारी करने के पत्रों पर पलानीस्वामी के हस्ताक्षर भी हों। यदि ऐसा होता है तो पार्टी का स्वामित्व हासिल करने में लगे पन्नीरसेल्वम को पलानीस्वामी से चुनौती मिल सकती है। हालांकि इस संबंध में १२ सितम्बर को पार्टी की महापरिषद की बैठक में सर्वसम्मति से क्या निर्णय लिया जाएगा यह देखना रोचक होगा।