कर्नाटक ने देश के लिए ई-वे बिल प्रणाली आसान बनाई

कर्नाटक ने देश के लिए ई-वे बिल प्रणाली आसान बनाई

बेंगलूरु। जीएसटी के तहत टैक्स वसूली में कर्नाटक ने जिस तकनीकी समाधान की तलाश की है उसे बाकी देश में भी अगले महीने से अपनाया जाएगा। राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा और कांग्रेस में राजनीतिक मतभेद के बावजूद कांग्रेस शासित राज्य कर्नाटक के इस तकनीकी समाधान को भाजपा शासित राज्य गुजरात और राजस्थान पहले ही अपना चुके हैं। कर्नाटक ई-वे बिल सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल सितंबर २०१७ से ही कर रहा है जो कि ई-सुगम का अपग्रेडेड वर्जन है। ई-सुगम सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल ये यहां पुरानी टैक्स प्रणाली वैट के समय से ही हो रहा था। कर्नाटक व्यावसायिक कर आयुक्त श्रीकर एमएस बताते हैं, ’’कर्नाटक के ई-वे बिल सॉफ्टवेयर को राजस्थान, गुजरात और नागालैंड पहले ही अपना चुके हैं। जीएसटी कौंसिल ने अब फैसला किया है कि अगले महीने से देश के बा़की राज्यों में भी यही ई-वे बिल सॉफ्टवेयर प्रयोग किया जाएगा।’’ घ्य्ध्य्द्म ·र्ैंर्‍ त्रर्‍द्म झ्श्न्यत्रद्भय्ैंकमिश्नर श्रीकर ने कहा, ’’कर्नाटक में ई-वे बिल सॉफ्टवेयर के तहत एक लाख से ़ज्यादा व्यापारी और ९०० से ज्यादा ट्रांसपोर्टर्स पंजीकृत हैं। एक लाख से ़ज्यादा बिल का भुगतान हर दिन ई-वे बिल के जरिए हो रहा है।’’ ई-वे बिल सॉफ्टवेयर से कर्नाटक में पिछले साल सितंबर महीने से जीएसटी की ऱकम कितनी वसूली गई, इसकी जानकारी देने से अधिकारियों ने इनकार कर दिया। वैट आने से पहले तक एक विक्रेता या उत्पादक या मैन्युफैक्चरर को चालान की तीन प्रतियां लेनी प़डती थीं्। उत्पादों या वस्तुओं को ढोने वाले ड्राइवरों को चालान की दो प्रतियां रखनी होती थीं्। चालान की तीन प्रतियां व्यावसायिक कर विभाग के पास डीलर को भेजना होता था। चालान के कारण ड्राइवरों को चेकपोस्टों पर लंबी लाइनों में ख़डा होकर इंतजार करना प़डता था। फ्रूघ्द्मय् त्र·र्ैंद्मर्‍·र्ैं ·र्ैंय् ंडत्रष्ठद्बय्ध्नाम नहीं बताने की शर्त पर एक अन्य अधिकारी ने बताया कि टैक्स अधिकारियों के लिए यह पता करना आसान नहीं होता था कि वस्तु की ़कीमत एक लाख है या द़र्ज ऱकम १० ह़जार ही है। ़जाहिर है कि इससे टैक्स की चोरी खूब होती थी। ऐसे में सूचना तकनीक के इस्तेमाल की तऱफ व्यावसायिक टैक्स अधिकारियों ने रुख़ किया। सूचना प्रौद्योगिकी के मामले में बेंगलूरु शहर ख़ुद ही का़फी आगे है। ई-सुगम सिस्टम में चालान को इलेक्ट्रॉनिक बनाया गया। इससे न केवल टैक्स वसूली की ऱकम ब़ढी बल्कि व्यापारियों से अवैध वसूली और उन्हें तंग करने का सिलसिला भी थमा। इन खासियतों को देखते हुए बिहार और पूर्वोत्तर के राज्यों ने भी ई-सुगम तकनीक को अपनाया है। ई-वे बिल से ड्राइवर को मोबाइल पर एसएमएस के ़जरिए जानकारी मिल जाती है। श्रीकर ने बताया कि अब पता होता है कि जिस गा़डी पर सामान है वह बेचने के लिए है या अपने काम के लिए या फिर व्यावसायिक है। झ्ब्ध्ष्ठ द्नर्‍ त्र·र्ैंद्मर्‍·र्ैंर्‍ द्बय्द्बध्ष्ठ द्बष्ठ्र ख्रष्ठप्रय् ·र्ैंर्‍ ृख्रुप्य्ंश्च ·र्ैंर्‍ यह कोई पहली बार नहीं है जब कर्नाटक ने इस तरह के आधुनिक तकनीकी समाधान को जमीन पर उतारा और उसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया गया। वर्ष २००५ में रायचूर जिले के देवदुर्गा में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर शुरू किया गया। इसे मनरेगा के म़जदूरों को दी जाने वाली दिहा़डी में घालमेल रोकने के लिए शुरू किया गया था। इसके तहत म़जदूरों के बैंक अकाउंट खोले गए और ि़जला प्रशासन की तरफ से उनकी दिहा़डी को सीधे खाते में भेजना शुरू किया गया था। जब देश में आधार कार्ड नहीं आया था तभी इसे ़जमीन पर उतार दिया गया था।

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