उच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार से मांगा जवाब

उच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार से मांगा जवाब

चेन्नई। मद्रास उच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार से पूछा है कि संसद को सभी महिलाओं के लिए अपने नवजात बच्चे को स्तनपान कराना अनिवार्य करने के लिए कानून क्यों नहीं बनाया जाना चाहिए। मद्रास उच्च न्यायायलय ने इस संबंध में संयुक्त अरब अमीरात का उदहरण भी दिया है जहां पर महिलाओं के लिए अपने बच्चे को दो वर्ष के होने तक स्तनपान कराना अनिवार्य है। न्यायाधीश एन किरुबाकरण ने केन्द्र सरकार से यह प्रश्न एक महिला डॉक्टर द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए पूछा। महिला डॉक्टर ने अपनी याचिका में न्यायालय से बताया था कि उसे मेडिकल के पीजी पाठ्यक्रम में इसलिए प्रवेश देने से इंकार कर दिया गया कि उसने मातृत्व अवकाश लिया था और इस अवकाश की अवधि को पीजी पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए दो वर्ष तक की सेवा देने के अनिवार्य शर्त के अनुसार सेवा की अवधि में शामिल नहीं किया जा सकता। इस मामले में याचिकाकर्ता को राहत देते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने सरकार को याचिकाकर्ता को मेडिकल पीजी पाठ्यक्रम में प्रवेश करने का निर्देश दिया। हालांकि मातृत्व अवकाश और नवजात शिशुओं की देखरेख से जु़डे व्यापक मुद्दों का समाधान करने के लिए न्यायालय ने इस मामले को लंबित रखा है और केन्द्र सरकार से इस पर जवाब मांगा है। न्यायालय ने केन्द्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय, केन्द्रीय कानून एवं न्याय मंत्रालय को इस मामले में शामिल करते हुए उनके समक्ष १५ प्रश्न रखे हैं और और इसका जवाब देने का निर्देश दिया है। न्यायाधीश ने केन्द्र सरकार से यह भी जाना चाहा है कि केन्द्र सरकार द्वारा मातृत्व अवकाश के लिए तमिलनाडु द्वारा २७० दिनों की अवधि को अन्य राज्यों में भी लागू क्यों नहीं किया जाए? न्यायाधीश ने केन्द्र सरकार से पूछा है कि संविधान की धारा २४९ के तहत केन्द्र सरकार को राष्ट्रहित में राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्रों में भी कानून बनाने के लिए मिले अधिकार के तहत पूरे देश में एक समान कानून बनाया जाए। और संविधान की धारा २१ के तहत मिले मौलिक अधिकार के तहत माताओं द्वारा बच्चों को स्तनपान कराना बच्चों के मौलिक अधिकार में शामिल किया जाए। इसके साथ ही मातृत्व अवकाश लेने वाले सभी सरकारी नौकरों के लिए भी अपने बच्चों को स्तनपान कराना अनिवार्य क्यों नहीं किया जाए?

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