विधानसभा में सदस्यों ने बनाया अनुपस्थिति का रिकॉर्ड, कोरम पूरा होने में लगे 77 मिनट

विधानसभा में सदस्यों ने बनाया अनुपस्थिति का रिकॉर्ड, कोरम पूरा होने में लगे 77 मिनट

बेंगलूरु। विधानसभा की कार्यवाही से सदस्यों की अनुपस्थिति चिंतनीय बनती जा रही है और शुक्रवार को राज्य विधानसभा में सदस्यांे की अनुपस्थिति का ऐसा रिकॉर्ड बना कि कोरम के अभाव में सदन की कार्यवाही ७७ मिनट देर से शुरु हुई। कर्नाटक विधानसभा के इतिहास में यह पहला मौका था जब सदन की कार्यवाही शुरु करने के लिए कोरम के आवश्यक २४ सदस्य भी सदन में ७७ मिनट तक उपस्थित नहीं थे। ५ फरवरी को शुरु हुए सत्र में कार्यवाही के पहले दिन से ही सदन में सदस्यों की उपस्थिति नदारद रही है। सदन से सदस्यांे के गायब रहने को लेकर मीडिया में बार बार इसकी आलोचना की जा रही है। बावजूद इसके सदस्यों के रुख में कोई बदलाव नहीं दिख रहा है और सदन को लेकर उनकी उपेक्षा बरकरार है। कोरम से संबंधित मानदंडों के अनुसार, सदन में कुल सदस्यों के दसवें हिस्से (२४ सदस्य) की उपस्थिति कार्यवाही शुरू करने के लिए आवश्यक है। सदस्यों की अनुपस्थिति से नाराज सत्तारू़ढ कांग्रेस नेता और स्वास्थ्य मंत्री के.आर. रमेश कुमार ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, यदि सदस्यों में सदन को लेकर गंभीरता की कमी है तो विधायिका सत्र को जारी रखने का क्या उद्देश्य है? उन्होंने कहा, अगले महीने सदन में मेरे ४० साल पूरे हो जाएंगे लेकिन आज के प्रकरण ने सभी को यह सोचने के लिए मजबूर किया है कि जनता द्वारा निर्वाचित सदस्य सदन में जनता की समस्याओं पर चर्चा करने के बदले क्यों गायब हैं? उनकी अनुपस्थिति से यह साबित होता है कि जनता की सेवा को लेकर वे गंभीर नहीं हैं और सदन से गायब हैं। फ्द्य·र्ैंय्द्य ृय्स्द्य ्यप्थ्य्द्मद्बैंठ्ठय ख्रह् ृयख् फ्ैंडत्र्य्ॅैं ब्स्रउन्होंने कहा, वे सदस्य जो विधायिका की पवित्रता को नहीं समझ सकते हैं लेकिन निर्णायक पदों पर आ जाते हैं तब ऐसी स्थिति होती है। उन्होंने कहा कि सदस्यों को यह समझना चाहिए कि सरकार और विधानमंडल दोनों अलग-अलग संस्थाएं हैं और निर्वाचित सदस्यों की जिम्मेदारी है कि वे सदन में उपस्थित रहें। उन्होंने कहा कि सरकार में शामिल सदस्य की अनुपस्थिति के लिए सरकार को दोष देना उचित नहीं है बल्कि यह सदस्यों का नैतिक कर्तव्य है कि वे सदन में पूरे दिन उपस्थित रहें। द्यद्बष्ठप्रय् ·र्रुैंद्बय्द्य द्मष्ठ ्यख्रॅ द्यह्घ्·र्ैं त्र·र्श्चैंसन् नब्बे के दशक में विधानसभा स्पीकर रहे रमेश कुमार ने अपने अनुभव को याद करते हुए उदाहरण दिया कि उन दिनों सदन से अनुपस्थित रहने वाले सदस्यों को रजिस्टर पर हस्ताक्षर करने होते थे। कई बार जो सदस्य सदन से ज्यादा अनुपस्थित रहते थे उन्हें मैं कहता था, आप यहां मेरे संरक्षण में हैं और यह बात आपके जीवनसाथी को पता है। इसलिए अगर आप सदन की कार्यवाही छो़डकर बाहर जाते हैं और आपको कुछ हो जाता है तो आपके जीवनसाथी इसके लिए मुझे जिम्मेदार समझ लेंगे। इसलिए आपके जीवनसाथी के प्रति मेरी जिम्मेदारी के लिए आपका सदन में उपस्थित होना बेहतर होगा। फ्ख्रडद्भह्र द्बष्ठ्र ब्ह् ्यज्द्बष्ठख्रय्द्यर्‍ ृय्स्द्य ·र्ैंत्रश्चझ्रद्भह्र ·र्ैंय् ृब्फ्य्फ् दृ प्रय्ष्ठभद्यविपक्ष के नेता जगदीश शेट्टर ने भी सदस्यों की अनुपस्थिति को गंभीर मसला बताया। उन्होंने कहा कि सदस्यों की पहली जिम्मेदारी बनती है कि वे कार्यवाही के दिनों में अनिवार्य रूप से अधिकाधिक समय सदन में उपस्थित रहें और निर्वाचित प्रतिनिधि होने के नाते जनता के मुद्दों पर सदन में सक्रियता दिखाएं। उन्होंने कहा कि सभी सदस्यों को अपनी जिम्मेदारी और सदन के प्रति कर्तव्यों का अहसास होना चाहिए।

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