मठों-मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण का कोई इरादा नहीं : सिद्दरामैया

मठों-मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण का कोई इरादा नहीं : सिद्दरामैया

बेंगलूरु। हिंदू धार्मिक मठों और मंदिरों को मुजरई विभाग के तहत लाने के विषय में जनता की राय मांगने के लिए राज्य सरकार द्वारा जारी परिपत्र के विरोध में भाजपा ने गुरुवार को विधान परिषद की कार्यवाही से बहिर्गमन कर दिया। यह मामला सदन में उस समय उठा, जब विपक्ष के नेता केएस ईश्वरप्पा ने इस मामले में राज्य सरकार से परिपत्र के बारे में सफाई देने की मांग करते हुए विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लाने की कोशिश की। उनकी इस मांग पर स्पष्टीकरण देते हुए मुख्यमंत्री सिद्दरामैया काफी बचाव की मुद्रा में नजर आए। उन्होंने सदन को आश्वासन देने की कोशिश की कि उनकी सरकार जनता से राय मांगने का परिपत्र तत्काल प्रभाव से वापस लेगी। सरकार का हिंदू मठों और मंदिरों या ऐसे अन्य संगठनों का नियंत्रण अपने हाथ में लेने का कोई इरादा नहीं है, जो अब तक मुजरई विभाग के अंतर्गत नहीं आते। उन्होंने दावा किया कि वह मुजरई विभाग को तत्काल यह परिपत्र वापस लेने का निर्देश दे चुके हैं। इसके साथ ही सिद्दरामैया ने यह भी कहा कि यह परिपत्र वर्ष २००८ में हाईकोर्ट की एक पीठ के आदेश के बाद जारी किया गया था। इसमें कोर्ट ने कुछ संबंधित याचिकाओं की सुनवाई करने के बाद राज्य सरकार को इन पर आम जनता की राय हासिल करने का निर्देश दिया था। उनके इस उत्तर से असंतुष्ट ईश्वरप्पा ने आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार हिंदू संस्थानों और संगठनों को निशाना बनाने का प्रयास कर रही है। सरकार के इस परिपत्र के बारे में विभिन्न मठों और मंदिरों के संतों ने भी अपनी निराशा जताई थी। उनका कहना था कि इस प्रकार का परिपत्र समाज के हित में नहीं है। इसके बावजूद राज्य सरकार बार-बार हिंदू धार्मिक संस्थानों और संगठनों का प्रशासन अपने हाथ में लेने का प्रयास करती रही है। इन संस्थानों और संगठनों के लाखों अनुयायी हैं और इनका प्रशासन पूरी तरह से पारदर्शी है। इसके बावजूद इनके मामलों में हस्तक्षेप करने की कोशिश राज्य के धार्मिक बहुसंख्यकों की धार्मिक भावनाओं पर हमला है। स्थिति संभालने के लिए सिद्दरामैया ने कहा कि उनकी सरकार के मन में किसी समुदाय के लिए दुर्भावना नहीं है और न ही यह धार्मिक संगठनों का नियंत्रण अपने हाथ में लेना चाहती है। सरकार ने कोर्ट के आदेश का पालन करने के लिए जरूरी कदम उठाया। यह मामला १९९७ में धर्मदत्ती कानून पर सवाल उठाते हुए कुछ मंदिरों के आचारकों द्वारा हाईकोर्ट में दाखिल याचिकाओं से जु़डा है। सिद्दरामैया ने कोर्ट के आदेश का संदर्भ लेते हुए कहा कि पूर्व में जारी किया गया सर्कुलर आज ही वापस ले लिया जाएगा। वहीं, भाजपा के ही एक अन्य सदस्य रामचंद्र गौ़डा ने कार्यवाही में हस्तक्षेप करते हुए पूछा कि राज्य सरकार इस मामले में इतने समय तक चुप क्यों बैठी रही? इस पर मचे हंगामे को शांत करने के लिए विधान परिषद के उपाध्यक्ष डीएच शंकरमूर्ति ने कहा कि सदस्यों को मुख्यमंत्री पर भरोसा करना चाहिए। उन्होंने कहा है कि यह सर्कुलर वापस ले लिया जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने इस विषय पर आगे कोई चर्चा करवाने से इन्कार कर दिया। वहीं, मुख्यमंत्री ने दोबारा स्पष्टीकरण दिया कि राज्य सरकार मंदिरों और मठों को अपने नियंत्रण में नहीं लेना चाहती है। यह मंदिर और मठ कई दशकों से समाज की सेवा कर रहे हैं। यह परिपत्र जारी करने के पीछे कोई बुरा इरादा नहीं था। बहरहाल, उनके स्पष्टीकरण से असंतुष्ट विपक्षी पार्टियों भाजपा और जनता दल (एस) के सदस्य सदन की कार्यवाही से बहिर्गमन कर गए।

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