गौरव प्रियंकर
चेन्नई। राज्य में राजनीतिक बिसात बिछ चुकी है और कुछ पुराने तो कुछ नए मोहरे सत्ता की बाजी जीतने के लिए ऐ़डी चोटी का जोर लगा रहे हैं। सुपरस्टार रजनीकांत भी इन्हीं में से एक हैं जिन्होंने फिल्मी पारी को अलविदा कहने के बाद राज्य की राजनीति में पदार्पण करने की घोषणा कर दी है और इसके लिए लगातार प्रयासरत हैं। राज्य के राजनीतिक इतिहास पर गौर करें तो फिल्मों से राजनीति में आने वाले लोगों को राज्य की जनता ने काफी प्यार दिया है। इसके साथ ही कुछ ऐसे भी उदाहरण हैं जो फिल्मी दुनिया से राजनीति की दुनिया में तो आए लेकिन उन्हें कुछ विशेष सफलता नहीं मिल सकी। राज्य में एमजीआर रामचंद्रन, जयललिता और करुणानिधि जैसे कुछ नेता हैं जिन्होंने फिल्मी दुनिया से राजनीति की दुनिया की ओर रुख किया और मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने में कामयाब रहे। हालांकि शिवाजी गणेशन और कैप्टन के नाम से मशहूर विजयकांत कुछ ऐसे भी उदाहरण हैं जिन्हें जनता का प्यार तो मिला लेकिन वह अपेक्षित कामयाबी हासिल करने में सफल नहीं हुए। मौजूदा समय में राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री और अखिल भारतीय अन्ना द्रवि़ड मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) की नेता जयललिता के निधन और द्रवि़ड मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के अध्यक्ष एम करुणानिधि के बीमार होने के कारण राजनीति से दूर होने के कारण राज्य में एक राजनीतिक शून्यता है। ऐसे मंें यह सवाल उठ रहा है कि क्या रजनीकांत यह राजनीतिक शून्यता भर पाएंगे?ृस्त्रय्य्त्त्श्नद्बरु·र्ैं झ्द्य ध्ख्य्त्रय्द्य ्यद्मप्रय्य्द्मय् फ्य्थ् द्यब्ष्ठ ब्स्र द्यज्द्मर्·र्ैंय्ैंत्ररजनीकांत ने हाल ही में एमजीआर एज्यूकेशनल एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट में पूर्व मुख्यमंत्री एमजीआर की प्रतिमा का अनावरण किया। इस प्रतिमा के अनावरण से पहले उनके ब़डे-ब़डे पोस्टर और बैनर लगाए गए थे जिनमें एमजीआर के साथ उनकी पुरानी तस्वीरें नजर आ रही थीं। उन्होंने इस कार्यक्रम के दौरान कहा कि मैं एमजीआर नहीं हूं लेकिन मैं आप लोगों को एमजीआर की तरह गरीबों के लिए शासन दे सकता हूं। रजनीकांत के इस बयान के बाद राज्य में इस बात को लेकर चर्चा और तेज हो गई है कि क्या वाकई रजनीकांत भी एमजीआर की तरह राज्य की राजनीति में अपना प्रभाव कायम कर पाएंगे? रजनीकांत और एमजीआर को लेकर इस प्रकार की चर्चा होनी स्वाभाविक भी है क्योंकि एमजीआर जहां द्रवि़ड राजनीति के ब़डे पक्षधर थे वहीं रजनीकांत एमजीआर द्वारा स्थापित अन्नाद्रमुक पर ही यदा-कदा निशाना साध रहे हैं। यहां तक कि उन्होंने राज्य की मौजूदा प्रशासनिक प्रणाली में भ्रष्टाचार व्याप्त होने और इसके स़ड जाने की बात भी कही है।ख्रष्ठद्य फ्ष्ठ द्यय्ज्द्मर््यत्र द्बष्ठ्र ृय्द्मष्ठ ·र्ैंय् ्य·र्ैंद्भय् क्वैंठ्ठद्मरजनीकांत ने एमजीआर की प्रतिमा का अनावरण करने के बाद कई मुद्दों पर अपना रुख स्पष्ट किया। जयललिता के निधन के बाद राजनीति में आने की घोषणा करने के कारण पिछले कुछ समय से रजनीकांत के बारे में यह कहा जा रहा है कि उन्होंने देर से राज्य की राजनीति में प्रवेश किया है और अभी तक वह जयललिता के राजनीति में सक्रिय होने के डर से इस क्षेत्र में नहीं आ रहे थे। हालांकि रजनीकांत ने कहा कि उन्होंने राजनीति में आने में कोई देरी नहीं की है क्योंकि अभी तक वह अपने फिल्मी कैरियर में व्यस्त थे और इसके साथ ही उनके राजनीति में अब तक नहीं आने का कारण जयललिता का डर भी नहीं था। रजनीकांत ने वर्ष १९९६ के विधानसभा चुनाव से पूर्व की बात याद दिलाते हुए कहा कि यदि वह जयललिता से डरते तो उस समय जयललिता के खिलाफ बयान नहीं देते। ज्ञातव्य है कि रजनीकांत ने उस समय कहा था कि यदि जयललिता मुख्यमंत्री बनती है तो राज्य को भगवान ही बचाएगा और इसके बाद जयललिता उस विधानसभा चुनाव में सरकार नहीं बना सकी और सत्ता करुणानिधि के हाथों मंें चली गई थी।ॅद्बज्र्ृय्द्य फ्ष्ठ ृझ्द्मष्ठ ·र्ैंद्यर्द्धर् ्यद्यप्रत्रह्र ·र्ष्ठैं द्धय्द्यष्ठ द्बष्ठ्र द्धत्रय्द्भय्रजनीकांत ने इस कार्यक्रम के दौरान कहा कि जयललिता और करुणानिधि ब़़डे नेता हैं लेकिन अब उनके बाद एक शून्य पैदा हुआ है और मैं उस शून्य को भरुंगा। रजनीकांत काफी सोच समझ कर शब्दों का चयन कर रहे हैं और किसी भी हालत में भावनात्मक रुप से एमजीआर, जयललिता और करुणानिधि से जु़डी राज्य की जनता को नाराज नहीं करना चाहते हैं। यही कारण है कि उन्होंने इन तीनों ही नेताओं की प्रशंसा की और यह भी कहा कि वह इन नेताओं की बराबरी तो नहीं कर सकते हैं लेकिन इनके जैसा कार्य कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि यदि मैं यह सोचता हूं कि मैं एमजीआर की तरह हो सकता हूं तो मुझ जैसा मूर्ख कोई नहीं होगा क्योंकि हजार वर्षों में भी कोई एमजीआर की बराबरी नहीं कर सकता। इस दौरान उन्होंने एमजीआर और अपने रिश्तों की प्रगाढता के कई उदाहरण भी सामने रखे। रजनीकांत ने कहा कि यदि एमजीआर नहीं होते तो लता के साथ उनकी शादी नहीं होती औ न ही वह चेन्नई में राघवेन्द्र कल्याण मंडपम का निर्माण करवा पाते। इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि किस प्रकार वर्ष १९७८ में जब वह गंभीर रुप से बीमार हुए थे तो एमजीआर ने यह सुनिश्चित करने का कार्य किया कि वह जल्द से स्वस्थ हो सकंें।द्यय्ज्द्मर््यत्र द्बष्ठ्र द्मह्र्यफ्यक्वद्भय् द्मब्र््र ब्ह्ष्ठद्मष्ठ ·र्ैंय् ्यख्रद्भय् फ्ैं·र्ष्ठैंत्ररजनीकांत के राजनीति में आने की घोषणा के बाद से ही राज्य की सत्तारुढ और विपक्षी पार्टियों द्वारा यह कहा जा रहा है कि उन्हें राजनीति का अनुभव नहीं है और रजनीकांत ने इस पर भी अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। रजनीकांत ने अपने विरोधियों को यह संकेत देने की कोशिश की है कि उन्हें राजनीति में नौसिखिया समझने की भूल नहीं करें। रजनीकांत ने कहा कि उन्हें वर्ष १९९६ में ही राजनीति के की़डे ने काटा था और उसके बाद से वह लगातार राज्य की राजनीति पर अपनी पैनी नजर रख रहे हैं और करुणानिधि, मूपनार जैसे नेताओं तथा चो रामास्वामी जैसे वरिष्ठ पत्रकार से उन्होंने यह सीखा है कि राजनीति कैसे कार्य करता है। उन्होंने कहा कि वह जानते हैं कि यह रास्ता सर्पों और कांटों से भरा हुआ है। अपने आध्यात्मिक राजनीति करने की बात को लेकर आलोचनाओं का सामना कर रहे रजनीकांत ने कहा है कि उनकी आध्यात्मिक राजनीति का आशय शुद्धता से है जिसमें सभी लोग एक समान समझे जाते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया ईश्वर में विश्वास ही आध्यात्मिक राजनीति है। बहरहाल यह देखना रोचक होगा कि क्या वाकई रजनीकांत अपने बातों को सही साबित करने में और राजनीति शून्यता भरने मेंे कामयाब होते हैं।