मैसूरु दशहरे के अंतिम दिन जंबो सवारी के गवाह बने लाखों पर्यटक

मैसूरु दशहरे के अंतिम दिन जंबो सवारी के गवाह बने लाखों पर्यटक

मैसूरु/दक्षिण भारतविश्वप्रसिद्ध मैसूरु दशहरे का समापन शुक्रवार को अपनी पारंपरिक भव्यता के साथ हो गया। इस मौके पर आयोजित होने वाली राजसिक जंबो सवारी का लाखों पर्यटकों ने काफी आनंद लिया। अपनी पीठ पर ७५० किलोग्राम वजन वाले स्वर्ण हौदे पर विराजीं चामुंडेश्वरी की प्रतिमा लेकर विशालकाय हाथी अर्जुन लगभग सा़ढे चार किलोमीटर की दूरी तय कर बन्नीमंडप पहुंचा। उसके साथ ही १४ अन्य हाथियों का दल भी शामिल था। इनकी अनुशासित कतार को देखना पर्यटकों के लिए एक अनूठा अनुभव था। इस रैली के साथ ही कन्ऩड राज्योत्सव (नाड हब्बा) मैसूरु दशहरे का पटाक्षेप हो गया। बुराई पर अच्छाई का यह पर्व इस शहर को महाप्रतापशाली विजयनगर साम्राज्य के दिनों से विरासत के रूप में मिला है। इसके तहत सभी दस दिनों तक मैसूरु में अलग-अलग सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इनमें कर्नाटक की लोक कलाओं की विविधता को हर दिन खास तरह से प्रदर्शित किया जाता है। ·र्रुैंद्बय्द्यडप्य्द्बर्‍ द्मष्ठ ज्ैंद्धह् फ्प्य्द्यर्‍ ·र्ैंह् ्यख्रक्वय्ंश्च ब्द्यर्‍ द्वय्ैंठ्ठणर्‍शुक्रवार को मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने जंबो सवारी को झंडी दिखाकर रवाना किया। इसके उद्घाटन के मौके पर उन्होंने मैसूरु महल के सामने स्थित नंदी ध्वजा की विशेष पूजा की और देवी चामुंडेश्वरी के प्रति श्रद्धा के तौर र जास्मीन फूल च़ढाए। देवी चामुंडेश्वरी को मैसूरु शहर की अधिष्ठात्री देवी के रूप में देखा जाता है। देवी प्रतिमा की पूजा-अर्चना के बाद इसे अर्जुन की पीठ पर रखे स्वर्ण हौदे पर विराजित कराया गया। इसके बाद २१ तोपों की सलामी के साथ जंबो सवारी की शुरुआत हुई। इसमें ५८ वर्ष की उम्र और ५ हजार किलोग्राम से अधिक वजन वाले हाथी अर्जुन की दोनों ओर वरमहालक्ष्मी और कावेरी हथिनियां ख़डी थीं। जंबो सवारी का हिस्सा बनने वाले सभी हाथियों की बेहद खूबसूरती के साथ सजावट की गई थी। सवारी में शामिल यह हाथी लाखों लोगों के ध्यान का केंद्र बने रहे। जंबो सवारी में मौजूद सजे-संवरे हाथी बलराम पर भी सबकी निगाहें टिकी हुई थीं्। इस वर्ष पहली बार जंबो सवारी में १५ हाथियों की टोली शामिल हुई। इन हाथियों के साथ कर्नाटक के विभिन्न कलारूपों का प्रदर्शन करने के लिए १०१ कला समूह बनाए गए थे। इनमें ५० से अधिक लोकनर्तक, संस्कृति कर्मी, संगीतकार, बैंड शामिल थे। इन कलाकारों का नेतृत्व नादस्वर कलाकार कर रहे थे। ज्ैंद्धह् फ्प्य्द्यर्‍ द्बष्ठ्र द्वय्य्ैं्य·र्ैंद्भय्ैं द्नर्‍ त्र्र्‍्र प्रय्य्यद्बध्इस वर्ष पहली बार जंबो सवारी में चलती-फिरती झांकियां भी शामिल हुईं। इनमें उच्चतर शिक्षा विभाग द्वारा तैयार की गई विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक अनुभवों की झांकी, कोडगु जिले में बा़ढ प्रभावित लोगों की झांकी, नेशनल कैडट कोर (एनसीसी) द्वारा तैयार की गई विभिन्न खेलों की झांकी, मैसूरु के स्वीप कार्यालय द्वारा सजाई गई ’’माइ वोट, माइ राइट’’ झांकी और मैसूरु जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की न्यायिक सेवाओं की झांकियां शामिल थीं। इन झांकियों के जरिए संबंधित विभागों ने लोगों को अपनी उपलब्धियों की जानकारी देने की कोशिश की। जंबो रैली को अधिक आकर्षक बनाने वाली झांकियों में पर्यटकों को राज्य के बारे में अधिक से अधिक जानकारी देने की कोशिश की गई, ताकि मैसूरु शहर को पूरे वर्ष देश में पर्यटन आकर्षण का प्रमुख केंद्र बनाया जा सके। इसके लिए राज्य की सांस्कृतिक विविधता को मुख्य थीम बनाया गया। इस थीम पर केंद्रित ४२ झांकियां जंबो सवारी में शामिल हुईं।पूरी जंबो सवारी के दौरान पर्यटकों और स्थानीय दर्शकों का उत्साह देखते ही बनता था। उन्हें आकर्षित करने के लिए दशहरे के आयोजकों ने कोई कोर-कसर भी नहीं छो़डी थी। इनके साथ ही विभिन्न शासकीय योजनाओं के बारे में एक ही साथ लाखों लोेगों को जागरूक करने के लिए कई झांकियां शामिल थीं। द्बद्मह्द्यैंज्·र्ैं ·र्ैंय्द्भश्च·र्श्नैंद्बह्र द्मष्ठ ृय्·र्ैं्यप्तश्चत्र ्य·र्ैंद्भय्एक खुले और आकर्षक दिन में सूर्य की चमक के बीच निकाली गई जंबो सवारी की शुरुआत बिल्कुल अपेक्षित ढंग से हुई। तोपों की सलामी के बाद इसकी शुरुआत के स्थल पर पूजा कुनिता, सुग्गी कुनिता, कोलटा, पाट कुनिता, कुली वेष, चित मेला, कमसाले, चिटकी भजने, डोल्लु कुनिता, जग्गा केलिगे कुनिता, गारु़डी कठपुतली और अन्य कलाकारों ने दर्शकों के सामने मनोरंजक कार्यक्रम पेश किए। दर्शक सवारी की राह पर स़डकों के दोनों ओर ख़डे थे। कुछ लोग जंबो सवारी की झलक पाने के लिए ऊंची-ऊंची इमारतों की छतों पर च़ढ गए थे। मैसूरु दशहरे के अंतिम दिन विशालकाय हाथियों की इस रोचक सवारी की परंपरा उस दौर में शुरू हुई थी, जिस समय विजयनगर साम्राज्य अपने स्वर्णकाल के दौर से गुजर रहा था। उनके बाद मैसूरु के वाडेयार शासकों ने इसे जिंदा रखा। मैसूरु को आधुनिक शहर का स्वरूप देने के लिए अपना अविस्मरणीय योगदान देनेवाले शासक नलवा़डी कृष्णराज वाडेयार के शासनकाल को दशहरा के आयोजन का स्वर्णकाल माना जाता है। अंग्रेजों के चंगुल से मुक्ति के बाद जब भारत में सभी रियासतों का विलयन किया गया, तब लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकारों ने भी इस विरासत को जिंदा रखने का निर्णय लिया। यहां तक कि इसे नाद हब्बा यानी राज्योत्सव का दर्जा दिया गया। राज्य की अब तक की सभी सरकारों ने इसके आयोजन में समय के साथ आनेवाली तब्दीलियों के बीच भी धार्मिक परंपराओं को पूरी तरह से बनाए रखा। आधुनिकता और पारंपरिकता का यह मेल पर्यटकों को बेहद आकर्षित करता है।ृद्मष्ठ·र्ैं प्र्‍ृय्ंश्चझ्र्‍ द्यब्ष्ठ द्बह्रज्रूख्र दरअसल, मैसूरु के सांस्कृतिक इतिहास में दशहरे का बेहद महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इसकी शान में यहां स्थित धरोहर इमारतें, स्मारक ढांचे, मंदिर, मस्जिद और चर्चा चार चांद लगाते हैं। पूर्व में दशहरे की जंबो सवारी का उद्घाटन तत्कालीन शासकों द्वारा बन्नीमंडप स्थित बन्नी पे़ड की पूजा के साथ किया जाता था। यह देवों के प्रति दस दिनों के इस उत्सव के लिए कृतज्ञता प्रकट करने का तरीका था। आज की जंबो सवारी में मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के साथ ही उप मुख्यमंत्री डॉ. जी. परमेश्वर, मैसूरु के जिला प्रभारी मंत्री जीटी देवेगौ़डा, पर्यटन मंत्री सा.रा. महेश और अन्य कई मंत्री शामिल थे। शाम को हजारों मशालों की रोशनी में आयोजित टॉर्च लाइट परेड की राज्यपाल वजूभाई वाला ने सलामी ली। इस सलामी को दशहरे के औपचारिक समापन का संकेत माना जाता है। इसके बाद बेहद आकर्षक आतिशबाजी शो ने पर्यटकों को अपनी ओर बांध लिया।

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