बेंगलूरु: दूरदर्शिता की कमी से सुविधा बनी दुविधा

करोड़ों रु. लगाने के बाद भी फ्लाईओवर अपर्याप्त क्यों?


बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर में जब भी फ्लाईओवर और सड़कें बनाई जाएं तो दूरदर्शिता का ध्यान रखना चाहिए। विशेषज्ञों की मानें तो शहर के हेब्बल फ्लाईओवर की योजना अगले 50 वर्षों के लिए भी नहीं बनाई गई थी। केआर पुरम केबल स्टे ब्रिज को बनाते समय यातायात वृद्धि को ध्यान में नहीं रखा गया। जयदेव फ्लाईओवर के आर्किटेक्ट्स को इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि एक दिन मेट्रो लाइन उसके रास्ते को क्रॉस करेगी।

विशेषज्ञ कहते हैं कि कई प्रोजेक्ट्स में से ये केवल तीन नाम हैं। अगर सब पर गौर किया जाए तो ऐसे कई निर्माण मिलेंगे जिनसे पता चलता है कि इनके मूल में दूरदर्शिता नहीं थी। बल्कि जल्दबाजी में काम किया गया, जिससे भविष्य में समस्याएं पैदा होने लगीं।

चूंकि ऐसे प्रोजेक्ट बहुत महंगे होते हैं। इनमें करोड़ों रुपए लगते हैं जो करदाताओं की जेब से आते हैं। इसमें भारी श्रम और समय लगता है लेकिन दूरदर्शिता के अभाव में निर्माण कार्य का पूरा फायदा नहीं मिल पाता।

वाहनों की संख्या में बढ़ोतरी
जानकारों की मानें तो केम्पेगौड़ा अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे (केआईए) के संचालन से ठीक पांच साल पहले मई 2003 में यातायात के लिए खोले गए हेब्बल फ्लाईओवर को लेकर डिजाइनरों को वाहनों की संख्या में बढ़ोतरी का अंदाजा लगाना चाहिए था। इसमें कम से कम अगले 50 वर्षों को ध्यान में रखना चाहिए था। अगर ऐसा किया जाता तो वाहनों को आवाजाही में आसानी होती है।

चूंकि कोरोना महामारी के बाद शहर में निजी वाहनों की संख्या बढ़ गई है, जिससे यातायात अवरुद्ध होने की घटनाओं में वृद्धि देखी जा रही है। हेब्बल फ्लाईओवर की संरचनात्मक खामी के कारण समस्या जस की तस है।

कम होती जा रही क्षमता
बता दें कि पहले से मौजूद बुनियादी ढांचे को फिर से तैयार करने में कई समस्याएं होती हैं। ऐसे में हेब्बल फ्लाईओवर भी इससे अलग नहीं है। चूंकि यह प्रोजेक्ट सीमित आवाजाही के लिए तो ठीक है, लेकिन सालभर में साढ़े तीन करोड़ यात्रियों के जमघट के लिए मशहूर केआईए भारत का तीसरा सबसे व्यस्त हवाईअड्डा बन गया है। ऐसे में फ्लाईओवर की क्षमता कम होती जा रही है।

हालांकि विशेषज्ञ कहते हैं कि इसका एक संभावित तरीका यह हो सकता है कि हवाईअड्डे से जाने वाले यातायात के एक हिस्से को थानिसंद्रा के माध्यम से वैकल्पिक सड़क पर स्थानांतरित किया जाए।

17 साल पहले बीडीए द्वारा बनाए गए जयदेव इंटरचेंज को मेट्रो रेल लाइनों और सड़क मार्ग दोनों को एकीकृत करने वाली बहु-स्तरीय संरचना के लिए रास्ता बनाने के लिए ध्वस्त कर दिया गया था।

विशेषज्ञों का कहना है कि अगर मेट्रो की अलाइनमेंट सालों पहले तय कर ली जाती तो ध्वंस को पूरी तरह टाला जा सकता था।

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