नई दिल्ली/भाषा। लोकसभा में शुक्रवार को पेश आर्थिक समीक्षा 2019-20 की मुख्य बातें इस प्रकार हैं:
– आर्थिक वृद्धि चालू वित्त वर्ष में कम से कम पांच प्रतिशत रहेगी। अगले वित्त वर्ष में बढ़कर 6 से 6.5 प्रतिशत तक रहने का अनुमान।
– आर्थिक वृद्धि को गति देने के वास्ते चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे के लक्ष्य में देनी पड़ सकती है ढील।
– चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में आर्थिक वृद्धि के गति पकड़ने का अनुमान। यह उम्मीद विदेशी निवेश प्रवाह बढ़ने, मांग बेहतर होने तथा जीएसटी संग्रह में वृद्धि समेत 10 कारकों पर आधारित।
– समीक्षा में आर्थिक सुधार तेज करने पर बल।
– वर्ष 2025 तक भारत को पांच हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में नैतिक तरीके से संपत्ति सृजन महत्वपूर्ण।
– नियमित क्षेत्र का विस्तार। संगठित/नियमित क्षेत्र के रोजगार का हिस्सा 2011-12 के 17.9 प्रतिशत से बढ़कर 2017-18 में 22.8 प्रतिशत पर पहुंचा।
– समीक्षा में संपत्ति सृजन, कारोबार के अनुकूल नीतियों को बढ़ावा, अर्थव्यवस्था में भरोसा मजबूत करने पर जोर।
– वित्त वर्ष 2024-25 तक पांच हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिये इस दौरान बुनियादी संरचना पर 1,400 अरब डॉलर खर्च करने की जरूरत।
– नियमित वेतन पाने वाले कर्मचारियों के हिसाब से 2011-12 से 2017-18 के दौरान शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के 2.62 करोड़ नए अवसरों का हुआ सृजन।
– वित्त वर्ष 2011-12 से 2017-18 के बीच नियमित रोजगार में महिला श्रमिकों की संख्या आठ प्रतिशत बढ़ीं।
– बाजार में सरकार के अधिक दखल से आर्थिक स्वतंत्रता प्रभावित होती है।
– कर्जमाफी से बिगड़ती है ऋण संस्कृति, वहीं किसानों के औपचारिक ऋण वितरण पर पड़ता है असर।
– सरकार को उन क्षेत्रों की बाकायदा पहचान करनी चाहिए जहां सरकारी दखल अनावश्यक है और उससे व्यवधान होता है।
– सरकारी बैंकों में बेहतर कंपनी संचालन, भरोसा तैयार करने के लिए अधिक खुलासों पर ध्यान देने की वकालत।
– नया कारोबार शुरू करना, संपत्ति का पंजीयन, कर का भुगतान, करार करने आदि को सुगम बनाने पर ध्यान देने पर जोर।
– कच्चा तेल की कीमतें कम होने से चालू खाता घाटे में आई कमी। चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में निर्यात की तुलना में आयात में अधिक तेजी से आई गिरावट का भी योगदान।
– मुद्रास्फीति के अप्रैल 2019 के 3.2 प्रतिशम से गिरकर दिसंबर 2019 में 3.2 प्रतिशत पर आना मांग में नरमी का संकेत।
– चालू वित्त वर्ष में नवंबर माह तक केंद्रीय माल एवं सेवा कर के संग्रह में हुई 4.1 प्रतिशत की वृद्धि।