नई दिल्ली/वॉशिंगटन/दक्षिण भारत। दुनिया के दो सबसे अधिक आबादी वाले देशों, चीन और भारत के साथ अमेरिका के संबंध तेजी से परिवर्तन के दौर से गुजर रहे हैं। हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू के अनुसार, अप्रैल में, एक प्यू सेंटर सर्वेक्षण में पाया गया कि दो तिहाई अमेरिकियों का कहना है कि वे चीन के लिए ‘प्रतिकूल’ दृष्टिकोण रखते हैं। प्यू के अनुसार, यह इस देश के लिए सबसे नकारात्मक रेटिंग थी जबकि सेंटर ने 2005 में यह सवाल पूछना शुरू किया था।
लेकिन अगर चीन के प्रति आकर्षण कम हो रहा है तो उसकी जगह कौन भर रहा है? इसका जवाब ‘भारत’ प्रतीत होता है, जिस दिन प्यू सर्वेक्षण जारी किया गया, फेसबुक ने घोषणा की कि उसने भारत की बड़ी दूरसंचार कंपनी रिलायंस जियो में 5.7 बिलियन डॉलर का निवेश किया है।
यह निवेश ऐसे समय में हुआ था जब कैलिफोर्निया और भारत दोनों कोविड-19 के मद्देनजर बंद से गुजर रहे थे और पूंजी बाजार और दुनियाभर के बोर्डरूम में चिंता का माहौल है। सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाली दो बड़ी संस्थाओं के बीच वैश्विक सौदों में आमतौर पर बहुत अधिक यात्रा की आवश्यकता होती है, आमने-सामने संपर्क और संयुक्त सार्वजनिक उपस्थिति होती है, लेकिन रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने अपने घर से अकेले ही यह बड़ी घोषणा की।
फेसबुक-जियो सौदा काफी हद तक डिजिटल रूप से संचालित है, तो विशेषज्ञों का मानना है कि 2020 अमेरिका और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार में एक महत्वपूर्ण बिंदु के तौर पर चिह्नित किया जा सकता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि वे भारत को एक सोर्सिंग पार्टनर के रूप में देखते हैं, जो चीन से आयात के मामले में आंशिक रूप से प्रतिस्थापक बन गया है।
चीन के कारण विदेशी कंपनियों को लगे झटके
हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू के अनुसार, अमेरिका, कनाडा, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में कंपनियों की आपूर्ति शृंखला को झटके लगे हैं, क्योंकि कोरोना महामारी के कारण चीन से सामग्री का प्रवाह बाधित हुआ है। सीईओ गोपनीय रूप से अपनी आपूर्ति शृंखला टीमों को अतिरिक्त स्रोत विकसित करने के लिए कह रहे हैं जो चीन से पूरी तरह से स्वतंत्र हों।
इसके अलावा, अमेरिका में दबाव उन कर्मचारियों से है जो सेहत संबंधी चिंताओं के कारण चीन की यात्रा नहीं करना चाहते, दबाव उन ग्राहकों से है जो खानपान और अन्य वस्तुओं के मामले में सुरक्षा के लिए चौकस हैं, दबाव निवेशकों से भी है जो एक ही देश पर निर्भरता को लेकर चिंतित हैं; और यह दबाव राजनेताओं से भी आ रहा है जो चाहते हैं कि कंपनियां चीन का दामन छोड़ें। फूआओ ग्लास उद्योग के चीनी अरबपति काओ देवांग ने महामारी से संबंधित एक सवाल के जवाब में कहा कि ‘वैश्विक औद्योगिक शृंखला चीन पर निर्भरता कम करेगी।’
भारत ही क्यों?
साल 2019 में, अमेरिका ने चीन से 452 बिलियन डॉलर का माल आयात किया था। केवल पांच कम लागत वाले देशों की जीडीपी इससे बड़ी है: भारत, मैक्सिको, इंडोनेशिया, ब्राजील और थाईलैंड।
भारत इन उम्मीदवारों के बीच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और चीन से पलायन द्वारा उत्पन्न आपूर्ति शृंखला के खालीपन का हिस्सा भरने के लिए सबसे बड़ी अप्रयुक्त क्षमता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
भारत में अमेरिकन चैंबर ऑफ कॉमर्स के साथ हाल में एक बैठक में, दक्षिण एशिया के उप सहायक सचिव, थॉमस वाजदा ने कहा, ‘चीन में वर्तमान में होने वाली अधिक औद्योगिक गतिविधियों के लिए भारत जल्दी से एक अनुकूल क्षेत्र बन सकता है।’
यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप फ़ोरम, ट्रेड ग्रुप के सीईओ डॉ. मुकेश अघी कहते हैं, ‘जबकि अमेरिकी कंपनियां चीन का विकल्प तलाश रही हैं, भारत एक सहज गंतव्य बन गया है। यहां अंग्रेजी बोलने वाला कार्यबल है, अत्यधिक कुशल है, श्रम की लागत कम है और अधिक महत्वपूर्ण है यह 1.3 बिलियन लोगों का बढ़ता बाजार है, जिसकी खर्च योग्य आय बढ़ रही है।’
यूएस बिजनेस काउंसिल (यूएसआईबीसी) जो वॉशिंगटन में यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स का हिस्सा है, की अध्यक्ष निशा बिस्वाल कहती हैं, ‘अमेरिका भारत का शीर्ष व्यापार भागीदार है, जो आज चीन से आगे है। बहुत सारी शीर्ष अमेरिकी कंपनियों के पास भारत में अपने सबसे बड़े या दूसरे सबसे बड़े आधार हैं।’
भारत से क्या खरीद सकते हैं?
हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू के अनुसार, परंपरागत रूप से अमेरिकी अधिकारी भारत को मसाले, कपड़ा, परिधान, गहने और हस्तशिल्प का स्रोत मानते हैं। जबकि भारत अमेरिका को इन उत्पादों के अरबों डॉलर का निर्यात करता है, वह मूल्य शृंखला में बहुत आगे बढ़ गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति के हेलीकॉप्टर मरीन वन का कैबिन लॉकहीड मार्टिन की सिकोरस्की इकाई के लिए भारत में निर्मित होता है। डॉ. अघी बताते हैं कि अमेरिकी बाजार के लिए फोर्ड इकोस्पोर्ट का निर्माण भारत के चेन्नई में किया जाता है।
इसी प्रकार, कैलिफोर्निया में नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के साथ मिलकर अब तक के सबसे महंगे इमेजिंग उपग्रह ‘निसार’ को लॉन्च करने में सहयोग प्राप्त कर रही है। यह भारत में निर्मित और लॉन्च की जाएगी, इसके जरिए ‘खतरों और वैश्विक पर्यावरण परिवर्तन’ का पहले से कहीं अधिक सटीक अध्ययन किया जाएगा।
भारत अमेरिका को समुद्री, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ और कृषि उत्पादों का निर्यात करता है। अघी का कहना है कि भारत में निर्मित 3.2 मिलियन एपल आईफोन्स का देश से निर्यात किया जाएगा। यूएसआईबीसी के बिस्वाल कहते हैं कि भारत अमेरिकी जरूरतों के लिए चिकित्सा उपकरणों, ऊर्जा कुशल हरित परिवहन, पावर सेमीकंडक्टर्स, स्विच और रेक्टीफायर्स की आपूर्ति कर सकता है।
भारत पहले से ही अमेरिका में बेची जाने वाली जेनेरिक दवाओं का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा प्रदान करता है, जिनका उत्पादन अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन द्वारा निरीक्षण और अनुमोदन से किया जाता है।
हम इस घटना को ‘इंडिया इनसाइड’ कहते हैं, जहां भारत से आयात की जाने वाली चीजों की ओर अमेरिकी उपभोक्ताओं और मीडिया दोनों का ध्यान नहीं जाता है, लेकिन फिर भी यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था की संरचना के लिए महत्वपूर्ण है।
कोरोना के खिलाफ कवच बन सकता है भारत
विशेष रूप से यह विश्वास व्यक्त किया जाता है कि कोविड-19 के खिलाफ निदान, उपचार और टीकाकरण के लिए भारतीय, अमेरिकी और वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए उपकरणों, डिस्पोजेबल और दवा की पूर्ति के लिए भारत में कारखानों का उत्पादन बढ़ सकता है।
निर्यात-चालित चीन के विपरीत, 1991 में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के बाद से भारत की कंपनियों ने तेजी से घरेलू मांग को पूरा करते हुए विकास किया। इस प्रक्रिया में, भारतीय प्रबंधकों और उद्यमियों ने वैश्विक स्तर पर विस्तार करने के लिए प्रबंधन कौशल और गुणवत्ता मानकों को अपनाया, लेकिन उन्होंने पहली बार मध्य पूर्व, आसियान, अफ्रीका और पूर्वी यूरोप के बाजारों का रुख किया।
अधिक सक्षम बन रहीं भारतीय कंपनियां
भारत के वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारतीय कंपनियां विभिन्न श्रेणियों में अरबों डॉलर का निर्यात करती हैं: फर्नीचर, चिकित्सा और शल्य चिकित्सा उपकरण, विद्युत मशीनरी, जहाज और नावें, वाहन, बॉयलर, प्लास्टिक, स्टील और एल्यूमीनियम से बने हिस्से, कार्बनिक एवं अकार्बनिक रसायन और इससे भी अधिक।
हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू के अनुसार, विशेषज्ञों का मानना है कि इनमें से कई भारतीय आपूर्तिकर्ता पहले ही विश्व बाजारों के लिए तैयार हैं। अमेरिकी कंपनियां अपने भारतीय कॉरपोरेट समकक्षों से ये और अन्य सामान मंगवा सकती हैं; चीन के विपरीत, ये आपूर्तिकर्ता सरकार से संबद्ध नहीं हैं।
भारत से सोर्सिंग को लेकर कैसे आगे बढ़ सकते हैं? विशेषज्ञ कहते हैं कि हम भारतीय आपूर्तिकर्ताओं को लाने में वृद्धिशील दृष्टिकोण की सलाह देते हैं; इसे ‘चीन प्लस वन’ कहते हैं। अपने चीनी आधार को बनाए रखते हुए, भारत में कोशिश करने के लिए कुछ कम जोखिम वाले या उच्च-प्रतिफल वाले कार्यक्रमों का चयन करें। कई भारतीय साझेदारों के साथ काम करें। बहुत जल्द आप अपनी सफलताओं को ठीक कर और आगे बढ़ा सकते हैं।
इन बातों का ध्यान रखना जरूरी
यह समझना होगा कि भारतीय अमेरिका और अमेरिकी संस्कृति बहुत पसंद करते हैं, लेकिन अगर वे अमेरिकी अहंकार को महसूस करते हैं, तो उस पर दृढ़ता से प्रतिक्रिया देते हैं। जमीन और इमारतों की खरीद जैसे बिंदुओं पर विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि एक खरीदार के रूप में शुरुआत करना सबसे अच्छा है। यह अधिक लचीलापन देता है और प्रारंभिक जोखिम को सीमित करता है। भारत बहुत विविधताओं से भरा हुआ है। कुछ राज्य स्थानीय और वैश्विक उद्यमियों को आगे बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं, वहां कारोबारी माहौल अच्छा है।
आमतौर पर आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और तेलंगाना को स्थानीय और वैश्विक कंपनियों के साथ अधिक सहयोगात्मक रवैए के लिए जाना जाता है। इसके अलावा, कुछ राज्य अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण विशेष उद्योगों की स्थापना और संचालन के लिए अधिक अनुकूल हैं। मिसाल के तौर पर, स्वास्थ्य आधारित उत्पादों के लिए हिमालय की तलहटी में स्थित हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में माहौल अधिक अनुकूल माना जाता है।
अंग्रेजी में पारंगत होना हमारी ताकत
वहीं, भाषा भी एक महत्वपूर्ण बिंदु है। जब आप चीन में व्यापार करते हैं, तो एक अनुवादक की जरूरत होती है। जबकि भारतीय अंग्रेजी में पारंगत होते हैं। इसके साथ ही यह स्वीकार करना चाहिए कि भारत एक विशाल लोकतंत्र है, जहां माल का प्रवाह अभी भी एक चुनौती हो सकती है। इसलिए यहां सफलता के लिए समय और धैर्य चाहिए।
दूर होंगी कारोबारी जटिलताएं
आज, भारत अधिकांश क्षेत्रों में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देता है, इसलिए आपको अपनी बौद्धिक संपदा या व्यापार रहस्यों को स्थानीय भागीदार के साथ साझा नहीं करना होता। कई अमेरिकी कंपनियों के दशकों से भारत में कारखाने हैं और कुछ ने हाल ही में निवेश किया है, जैसे तमिलनाडु में एमवे का 100 मिलियन डॉलर का प्लांट।
एक प्रमुख अमेरिकी बताते हैं, ‘चीन पर निर्भरता की मात्रा को देखते हुए, एकमात्र वैकल्पिक देश जिसके पास पैमाने, कौशल और अमेरिकी मांग को प्रभावी ढंग से पूरा करने का स्थान है, वह भारत है।’
मुकेश अघी आशावाद पर जोर देते हुए कहते हैं, ‘जैसे ही नई सड़कें बनती हैं, बंदरगाह का विस्तार होता है, और हवाईअड्डों का विस्तार होता है, माल का परिवहन अधिक कुशलतापूर्वक हो जाएगा।’ इस दौरान आप पाएंगे कि भारतीय कंपनियां काफी कुशल हैं और अपने विदेशी ग्राहकों के मार्ग में आ रहीं जटिलताओं को दूर कर सकती हैं।
औद्योगिक क्षमताओं का बेहतरीन इस्तेमाल हो
अगर हार्वर्ड जैसे प्रतिष्ठित संस्थान को यह लग रहा है कि भारत ही चीन का औद्योगिक विकल्प हो सकता है, तो ऐसे में सरकार के साथ ही जनता को भी इस ओर ध्यान देने की जरूरत है ताकि देश की क्षमताओं का बेहतरीन इस्तेमाल हो और भारत तेजी से आर्थिक समृद्धि की राह पर आगे बढ़ता जाए।