डोनाल्ड ट्रम्प ने वर्ष २०१५ में पर्यावरण रक्षा के लिए की गई पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका के अपने समर्थन वापस लेने की घोषणा की है। ट्रम्प का कहना है कि इस जलवायु समझौते में भारत और चीन को फायदा हुआ है, वहीं अमेरिका को भारी नुकसान उठाना प़डा है। भारत पर ट्रम्प ने यह भी आरोप लगाए हैं कि भारत इस समझौते के प्रति गंभीर नहीं है और केवल अमेरिकी डॉलर हासिल करने के उद्देश्य से इस समझौते का हिस्सा बना है। ट्रम्प के इस फैसले की निंदा विश्व भर के प्रमुख नेता कर चुके हैं। कइयों ने ट्रम्प के इस ऐलान को बचकाना भी बताया है। पेरिस में हुए जलवायु समझौते के तहत अमेरिका सहित अन्य देशों ने प्रदूषण की वजह से लगातार ब़ढ रहे तापमान पर काबू पाने के लिए आवश्यक कदम उठाने पर सहमति जताई थी। इस समझौते में उद्योगों और ऊर्जा के नवीनतम तकनीकों का इस्तेमाल कर जलवायु को सुधारने पर बल दिया गया है। ट्रम्प के इस एलान पर अमल होगा या नहीं यह तय नहीं है क्योंकि वर्ष २०१६ के नवंबर में प्रभाव में आए इस समझौते के नियमों के अनुसार १९६ देशों के बीच हुए इस समझौते से अगर कोई भी देश अपना नाम वापस लेना चाहे तो उसे लिखित निवेदन के तीन वर्षों के बाद ही समझौते से अलग होने का मौका दिया जाएगा। इसका मतलब यह है कि नवंबर २०१९ तक अमेरिका इस समझौते से पल्ला नहीं झा़ड सकता है। उसे वर्ष २०१९ तक समझौते के नियमों के अनुसार कार्यरत रहना होगा। वर्ष २०१९ में अमेरिका को बाहर निकलने की औपचारिक प्रक्रिया शुरू होगी और निर्धारित नियमों के अनुसार अमेरिका इस समझौते से नवंबर ४, २०२० को ही बाहर हो सकेगा। यहाँ पर गौर करने वाली बात यह है कि अमेरिका में ट्रम्प की नीतियों और कार्यशैली का लगातार विरोध हो रहा है। उनके मतदाता भी उनसे नाखुश ऩजर आ रहे हैं। ऐसे में इस समझौते से बाहर आने का एलान केवल एक खोखला बयान बनकर भी रह सकता है। अगर अमेरिका ने वर्ष २०२० के लिए दूसरे राष्ट्रपति को चुन लिया तो सम्भवता ट्रम्प के इस फैसले को पलट दिया जा सकता है। क्यूंकि इस फैसले के औपचारिक प्रलेखन को नवंबर ४, २०२० ही किया जा सकता है और अमेरिका अपने नए राष्ट्रपति को ठीक एक दिन पहले नवंबर ३, २०२० को चुनेगा। साथ ही अगले चार वर्षों में अमेरिका को इस फैसले की वजह से विश्व के सभी प्रमुख नेताओं से निंदा झेलनी प़डेगी और साथ ही किसी भी मुद्दे पर अपनी बात मनवाने के लिए क़डी मशकत करनी प़डेगी। संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों ने भी अमेरिका के इस फैसले पर आपत्ति जताई है। वहीं दूसरी और भारत और चीन ने इस समझौते का हिस्सा बने रहने की बात कहकर अमेरिका की और अधिक किरकिरी कर दी है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नवीकरणीय ऊर्जा को ब़ढावा दे रहे हैं और साथ ही सरकार ने वर्ष २०३० तक देश में केवल विद्युत् वाहन ही सडकों पर होने का एक ब़डा महत्वाकांक्षी लक्ष्य भी बनाया है। ट्रम्प की बेबाक बयानबा़जी से अमेरिका को वैश्विक मंच पर निंदा के अलावा कुछ हासिल नहीं होने वाला। विश्व के सबसे शक्तिशाली देश के राष्ट्रपति द्वारा ऐसे बचकाने बयानों से अमेरिका की छवि धूमिल हो रही है।
पेरिस समझौते का हश्र
पेरिस समझौते का हश्र