तेरहवें राष्ट्रपति के रूप में अपनी पारी के समापन के मौके पर प्रणब मुखर्जी ने जो कुछ भी कहा, वह भारतीय लोकतंत्र में नई रोशनी की तरह है। सेंट्रल हॉल में आयोजित औपचारिक विदाई समारोह में निवर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने न केवल विपक्ष बल्कि सरकार को भी लोकतांत्रिक मर्यादाओं के अनुपालन की नसीहत दी। यूं तो दो प्रधानमंत्रियों मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी के साथ काम करते हुए उन्होंने गाहे-बगाहे मर्यादित लोकतंत्र के पक्ष में बयान दिए। जब भी उन्होंने राष्ट्र को संबोधित किया तो संसद की कार्यवाही की गरिमा बनाए रखने की वकालत की। उनका कार्यकाल विवादों से परे रहा। खासकर नरेंद्र मोदी सरकार के तीन साल का कार्यकाल बिना किसी टकराव के निकला। सरकार को उन्होंने याद दिलाया कि वह अध्यादेश की प्रवृत्ति से परहेज करे। विचार-विमर्श का विकल्प होने के बावजूद अध्यादेश का उपयोग अनुचित है। उनका मानना रहा है कि बहुमत से चुनी सरकार को अल्पमत वाले विपक्ष की भावना का सम्मान करना चाहिए। वहीं विपक्ष को संसद की साख में आती कमी के प्रति आगाह करते हुए कहा कि असहमति का मतलब संसद में गतिरोध नहीं है। अपने पांच दशक के लंबे राजनीतिक सफर में प्रणब मुखर्जी हमेशा विवादों से परे रहे। नई सरकार के साथ तीन वर्षों में कभी सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप करते नजर नहीं आए। मोदी सरकार के साथ उनका तालमेल बेहतर रहा। यहां तक कि एक संबोधन में प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने उन्हें पिता तुल्य कहा। उन्होंने कहा कि प्रणब दा की उंगली पक़डकर मुझे दिल्ली की जिंदगी में आगे ब़ढने का मौका मिला। एक समय था जब चर्चा होती थी कि प्रणब दा देश के प्रधानमंत्री बनने के हकदार हैं। यह बात अलग है कि ऐसे समीकरण सिरे नहीं च़ढ पाए, मगर उनका राजनीतिक जीवन व राष्ट्रपति के रुप में उनकी पारी गरिमामय रही।प्रणब मुख़र्जी देश के शीर्ष राजनेताओं में गिने जाते थे और कांग्रेस के साथ वे कई दशकों तक जु़डे रहे लेकिन राष्ट्रपति बनने के बाद जिस तरह से उन्होंने सभी राजनैतिक पार्टियों को एक ही सामान परखा उससे उनके अनुभव का परिचय मिलता है। पार्टियों की राजनीति से परे हटकर उन्होंने केवल देश हित में अपना सफर जारी रखा। उन्होंने राष्ट्र के नाम पर अपने अनेक संबोधनों में सरकार को हमेशा सही दिशा दिखाई और साथ ही अपने अनुभव से सरकार को लाभ भी दिया। देश के सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार ’’वास्तु एवं सेवा कर’’ व्यवस्था को जल्द लागू करने के लिए भी उन्होंने सरकार को प्रोत्साहित किया था। एक शानदार राजनेता, प्रखर वक्ता और सम्मानित राष्ट्रपति के रूप में प्रणब दा ने अपनी छाप छो़डी है।
अनमोल तजुर्बे की जान
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