न्यायपालिका होगी जवाबदेह

न्यायपालिका होगी जवाबदेह

सार्वजनिक जीवन में शुचिता एवं आदर्श स्थापित करने के उद्देश्य से उच्च संवैधानिक पदों को आरटीआई के दायरे में लाने की मांग देश में उठाई जाती रही है। ऐसे में जस्टिस उच्चतम न्यायलय की पीठ का कहना स्वागतयोग्य है कि देश के प्रधान न्यायाधीश तथा राज्यपालों सहित सभी उच्च संवैधानिक पदों को आरटीआई के दायरे में लाया जाना चाहिए। प्रधान न्यायाधीश के पद को आरटीआई कानून के दायरे में लाये जाने से संबंधित मुद्दा हालांकि संवैधानिक पीठ के समक्ष लंबित है, लेकिन फिर भी यह बात तो काबिलेगौर है कि पहली बार दो न्यायाधीशों ने प्रधान न्यायाधीश को आरटीआई के दायरे में लाने के समर्थन में सार्वजनिक तौर पर अपनी राय जाहिर की है। प्रधान न्यायाधीश के पद को आरटीआई कानून के दायरे में लाये जाने का सीधा-सा मतलब होगा कि आम जनता आसानी से यह बात जान पाएगी कि कोई न्यायाधीश किस वजह से नियुक्ति पाने में सफल रहा और किस न्यायाधीश को किस वजह से नजरअंदाज कर दिया गया। इस तरह की जानकारी को सार्वजनिक किए जाने से जहां नियुक्ति अथवा पदोन्नति के लिए योग्य न पाये गए न्यायाधीश को शर्मिंदगी झेलनी प़डेगी वहीं जजों की नियुक्ति करने वाले कॉलेजियम के सदस्य भी अपनी राय लिखित में जाहिर करने के प्रति एहतियात बरतेंगे। इससे कॉलेजियम सिस्टम पर लगने वाले अपारदर्शिता संबंधी आरोपों का स्वत: निराकरण हो जाएगा। प्रधान न्यायाधीश के पद को आरटीआई कानून के दायरे में लाने के उद्देश्य से केंद्रीय सूचना आयोग ने इस पद को सार्वजनिक प्राधिकरण घोषित कर रखा है।प्रधान न्यायाधीश के पद के साथ-साथ राज्यपाल के पद को भी इस कानून के दायरे में लाने का प्रयास स्वागतयोग्य कदम हैं। यदि वास्तव में ऐसा संभव हो पाता है तो इससे राज्यपालों की ओर से अक्सर अंजाम दी जाने वाली राजनीतिक साजिशों पर लगाम लग सकेगी। उन्हें केंद्र को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश भेजने से पूर्व इसके लिए ठोस कारण बताने होंगे। आरटीआई कानून के संबंध में सुप्रीम कोर्ट की पहल बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश से पूरी तरह मेल खाती है जिसमें गोवा राजभवन को जुलाई-अगस्त २००७ के दौरान राज्य की राजनीतिक स्थिति के संबंध में राज्यपाल की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने को कहा गया है। अदालतें अपनी भूमिका के निर्वहन के प्रति संजीदा हैं लेकिन केंद्र का रवैया ज्यादा उत्साहवर्धक नजर नहीं आता। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि सार्वजनिक जीवन में शुचिता और राजनीतिक फंड को पारदर्शी बनाने के बारे में आदर्शवाद की ब़डी-ब़डी बातें करने वाली भाजपा भी पार्टी फंडिंग को आरटीआई कानून के दायरे में लाने के मामले में दूसरी पार्टियों की कतार में ही ख़डी है।

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