जी-२० सम्मलेन में भारत

जी-२० सम्मलेन में भारत

आगामी जी-२० शिखर सम्मलेन में जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद की समस्या और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर विश्व के अनेक नेताओं से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चर्चा कर सकते हैं। सिक्किम में पिछले कई दिनों से चल रहे सीमा विवाद के मद्देऩजर चीन के राष्ट्रपति झी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच जी-२० शिखर सम्मलेन में द्विपक्षीय मुलाकात न होने की संभावनाएं ब़ढ गयी हैं। ऐसे में पूरा विश्व एशिया के दोनों देशों के बीच तनाव पर ऩजर बनाए हुए है। इस सम्मलेन में विश्व के अग्रणी नेता भाग लेंगे। मोदी अपने अजेंडा में आर्थिक विकास, शांति और स्थिरता पर अपना ध्यान केंद्रित रखेंगे। वैश्विक स्तर पर विकास की बात करके मोदी पूरे विश्व को भारत जैसे ब़डे बाजार में व्यापार करने के अवसरों के साथ ही भारत की उपलब्धियों के बारे में भी बात कर सकते हैं। भारत के पास चीन को सीमा विवाद के मामले में घेरने का भी मौका है। चीन जिस तरह से पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है उस से आतंकवाद के मुद्दे पर भी भारत और चीन के बीच कहा सुनी हो सकती है। पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को दिए जा रहे समर्थन के बारे में पहले भी भारत अनेक मंचों पर पाकिस्तान का विरोध कर चुका है। भारत जी-२० सम्मलेन में भी पाकिस्तान को घेरना चाहेगा। इस सम्मलेन में पाकिस्तान की गैर मौजूदगी के बावजूद चीन द्वारा उसका समर्थन किया जा सकता है। चीन अपने व्यापार को ब़ढाने के लिए पाकिस्तान की जमीन का उपयोग कर रहा है और केवल अपने निजी स्वार्थ के कारण ही पाकिस्तान का समर्थन भी करता ऩजर आता है। इस सम्मलेन में आतंकवाद के खिलाफ ल़डाई का मुद्दा अहम् है और यूरोपियाई देश भी इस मुद्दे पर अहम् फैसले लेना चाहते हैं। पिछले दिनों अमेरिका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा से ठीक पहले हि़ज्बुल मुजाईद्दीन के मुखिया सईद सलाउद्दीन को वैश्विक आतंकी घोषित किया था। भारत अ़फ्रीकी देशों से अपने रिश्तों पर भी ध्यान देना चाहेगा और सम्भवता जलवायु परिवर्तन के मामले में भारत की प्रतिबद्धता को दोहरायगा। उत्तर कोरिया और पाकिस्तान से जिस तरह से चीन अपनी दोस्ती ब़डा रहा है उससे यही लग रहा है कि निकट भविष्य में हिन्द महासागर और दक्षिण चीन समुद्र में तनाव ब़ढेगा। अमेरिका ने भी उत्तर कोरिया के समर्थन के लिए चीन को अ़डे हाथांे लिया है परंतु चीन अमेरिका की धमकियों को लगातार ऩजरअंदा़ज कर रहा है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो चीन की लापरवाही की सजा अन्य देशों को भी भुगतनी प़ड सकती है।

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