विश्व भर में डिजिटल क्रांति का युग चल रहा है। जिस ऱफ्तार से डिजिटल विकास और नवीनतम तकनीक का उपयोग हो रहा है उसी ऱफ्तार से इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में बदलाव आते हैं। बेहद तेजी से नवीनतम तकनीक से नए उपकरणों को विकसित किया जाता है और पुराने उपकरणों का उपयोग कम हो जाता है। ज्यादातर कंप्यूटर और स्मार्टफोन इसी बदलाव से गुजरते हैं और लगातार नए संस्करण पुराने उपकरणों को पछा़डते ऩजर आते हैं। इलेक्ट्रॉनिक कचरे के रूप में पुराने उपक्रमों को रिसाइकल किया जाना चाहिए परंतु अधिकांश बार इन्हें नष्ट कर दिया जाता है। पर्यावरण पर इसका बहुत बुरा असर प़डता है। बाजार में बहुत ब़डी संख्या में ग्राहक मोबाइल फोन, कम्प्यूटर्स, टेलीविजन और प्रिंटर सहित अनेक उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं और आम तौर पर यह उपकरण अपनी समयावधि से पहले ही ख़राब हो जाते हैं अथवा उन्हें उपभोक्ता बदल देते हैं। इसका प्रमुख वजह बाजार में लगातार आ रहे इन उपकरणों के नए संस्करण को हासिल करने की उपभोक्ताओं की चाहत होती है। बेहतर विकल्प की उपलब्धता मौजूदा उपकरण को बेकार साबित कर देते हैं और वह ई-वेस्ट (इलेक्ट्रॉनिक कचरा) की ब़ढती सूची में शामिल हो जाते हैं। पूरे विश्व इलेक्ट्रॉनिक पदार्थों की निर्माता कम्पनियों के समक्ष आधुनिक उपकरण बनाने की हो़ड की वजह से ई-वेस्ट का अम्बार ब़ढता ही जा रहा है। मौजूदा समय में हजारों कंपनियां ई-वेस्ट की समस्या में सुधार लाने की कोशिश में जुटी हुईं हैं और पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को रिसाइकल कर उनमें मौजूद आवश्यक कीमती धातुओं को निकाल कर किसी अन्य उपकरण के निर्माण के लिए दोबारा से इस्तेमाल के लायक बना रही हैं परंतु परेशानी ई-वेस्ट रिसाइकल करने की प्रणाली में है। कीमती धातुओं को निकालने की प्रक्रिया आम तौर पर पर्यावरण को हानि पहुंचाती है क्योंकि कम्पनियां इस प्रक्रिया में आसान तरीके ढूं़ढती हैं। सच तो यह है कि अगर पर्यावरण को बचाना है तो सही तरीके को अपनाने की जरुरत है। कम्पनियां अपने निजी स्वार्थ के लिए पर्यावरण को ताक कर रख देती है। गलत प्रक्रिया से अगर ई-वेस्ट को रिसाइकल किया जाता है तो मनुष्य की सेहत के लिए भी हानिकारक साबित हो सकता है और साथ ही पर्यावरण पर गंभीर नुकसान पहुंचता है। ’’ई-वेस्ट’’ का निपटारा करने के लिए मापदंड बनाए जा चुके हैं और इनका पालन अनिवार्य है। विकसित देशों से ई-वेस्ट’’ को समुद्री जहाजों में भर कर विकासशील देशों को भेज दिया जाता है। विकासशील देशों में इस कचरे को सही ढंग से निस्तारण के लिए कोई ठोस नीति और साथ ही आधुनिक सुविधाएं नहीं होती हैं और जब ऐसे देशों में इन उपकरणों से कीमती धातुओं को निकालते हैं तो इसका सीधा असर पर्यावरण पर प़डता है। संयुक्त राष्ट्र को सभी देशों पर अपने ई-वेस्ट’’ को अपनी ही धरती पर रिसाइकल करने का नियम बना देना चाहिए और अगर कोई विकसित देश ई-वेस्ट’’ को दूसरे देश भेजता है तो साथ ही उसके सही निपटारे के लिए आवश्यक मशीनें और सुविधाएं उपलब्ध करने की भी जिम्मेदारी होनी चाहिए। विकसित देशों पर अगर नकेल कसी गयी तो निश्चित रूप से इस समस्या का समाधान ढूंढा जा सकता है। साथ ही विकासशील देशों को भी इस समस्या की हानि के बारे में जागरूक बनाने की आवश्यकता है। ई-वेस्ट का सही ढंग से निस्तारण ही पर्यावरण को बचाने में सहायक होगा।
ई वेस्ट का निस्तारण
ई वेस्ट का निस्तारण