हिमालय के ऊंचे पर्वतों की यात्राओं के कष्ट बहुत सारे होते हैं। लगातार थकान के बीच तीर्थ तक पहुंचने के लिए मीलों पैदल चलना आसान काम नहीं होता। जब हम इन तकलीफों की बात करते हैं, तो अक्सर पर्यावरण की तकलीफों को भुला दिया जाता है, जो हमारे कदमों से पैदा होती हैं। ऐसा नहीं है कि ये तीर्थयात्राएं नई हों या उन इलाकों में पहली बार लोग जा रहे हों लेकिन ग्लोबल वार्मिंग नई समस्या है। इन संवेदनशील तीर्थस्थलों के पर्यावरण पर मंडराता खतरा कई गुना ब़ढ चुका है। अमरनाथ यात्रा के संदर्भ में राष्ट्रीय हरित अधिकरण यानी एनजीटी के फैसले को दरअसल हमें इस संदर्भ में ही देखना होगा। अधिकरण ने अपने फैसले में कहा कि अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्रियों को जयकारा नहीं लगाना चाहिए या मंत्रोच्चारण नहीं करना चाहिए्। इससे पता नहीं कैसे एक संदेश यह गया कि एनजीटी ने पूरे यात्रा पथ को शांत क्षेत्र घोषित कर दिया है। तुरंत ही ऐसे बयान भी आने लगे कि यह धार्मिक भावनाओं के खिलाफ है। इसके अगले ही दिन एनजीटी को सफाई देनी प़डी कि यह आदेश पूरे यात्रा पथ के लिए नहीं, सिर्फ अमरनाथ की पवित्र गुफा के लिए है। इस क्षेत्र में तेज आवाज से हिमस्खलन का खतरा हो सकता है। एनजीटी की आशंका निराधार नहीं है। वर्ष १९९६ में वहां यात्रा के दौरान हिमस्खलन हुआ था, जिसमें २४२ यात्रियों की जान गई थी। अमरनाथ का शिवलिंग प्राकृतिक तरीके से बनता है और वह बहुत ही ना़जुक होता है। यह विलुप्त होने की कगार पर है। इसे बचाने के लिए गौरी मउलेखी नाम की पर्यावरण कार्यकर्ता ने एनजीटी में याचिका दायर की थी। वह कहती हैं कि आप किसी भी पर्वतारोही संस्थान से इस बारे में बाते करेंगे तो वो आपको बताएंगे कि एक ऊंचाई पर पहुंचने के बाद छोटी-सी आवा़ज भी हिमस्खलन का कारण बन सकती है।इस याचिका पर सुनवाई पूरी करने के बाद अधिकरण ने जो फैसला दिया, उसे धार्मिक कार्यक्रम में किसी बाधा की तरह देखना गलत है। हमारे पूर्वजों ने ये तीर्थ नगरीय जीवन से अलग पर्वतीय एकांत के दुर्लभ इलाके में स्थापित किए थे। अब दिक्कत यह हो गई है कि हम अपने जीवन का कोलाहल भी अपने साथ वहां ले जा रहे हैं, जो वहां के संवेदनशील पर्यावरण के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकता है। उन इलाकों की एकांतिक पवित्रता को बनाए रखना हमारा पहला कर्तव्य होना चाहिए्। एनजीटी ने इसी भावना के अनुकूल हमें एक नई मर्यादा दी है। बेहतर होगा कि हम इसमें किसी तरह का विवाद ढूं़ढने की बजाय इसकी मूल भावना और अहमियत को समझें।
एनजीटी की नई लक्ष्मण रेखा
एनजीटी की नई लक्ष्मण रेखा