भारत की आय कर नीति में बदलाव लाने की आवश्यकता है क्योंकि आयकर को सभी वर्गों के लिए प्रासंगिक बनाना होगा। वर्ष १९६१ में लागू किए गए आयकर अधिनियम में कई बार बदलाव किए जा चुके हैं जिससे वह पहले से कई ज्यादा उलझ गया है। संशोधन और बदलाव तो इसमें किए जाते रहे हैं परंतु इसका देश के मध्यम वर्ग को कोई ठोस फायदा नहीं हुआ है। सरकार आयकर प्रणाली में सुधार पर विचार कर रही है और अगर ऐसा होता है तो यह एक स्वागत योग कदम होगा परंतु क्या यह समय ऐसे महत्वपूर्ण सुधार को पेश करने का सही समय है? यह पहली बार नहीं है जब सरकार आयकर सुधार पर विचार कर रही हो। इससे पहले भी नब्बे के दशक में योजना आयोग ने सरकार को इस विषय पर एक विस्तृत रिपोर्ट पेश की थी। चंद वर्षों बाद अटलजी के कार्यकाल में सरकार के आर्थिक सहलाहकार विजय केलकर के नेतृत्व में बनी एक समिति ने भी कर सुधार में ब़डे बदलाव के सुझाव दिए थे। मनमोहन की सरकार के समय भी एक नयी कर नीति पर विचार किया गया था जिसके तहत समान कर प्रणाली अपनाने पर विचार किया गया था परंतु आगे बात नहीं ब़ढी।पूर्व सरकारों ने इस दिशा में कोई ठोस कदम शायद इसीलिए नहीं उठाया क्योंंकि ऐसा करने से बहुत ब़डा वर्ग उनसे नारा़ज हो सकता है। हमारे देश में आ़जादी के सात दशकों बाद भी खेती पर कोई कर नहीं है। कई ब़डे उद्योग घरानों को अपने निवेश के बदले में देश के अनेक राज्यों में कर मा़फी की सुविधा मिल जाती है। ऐसे में देश के मध्यम वर्ग पर ही सबसे ज्यादा कर का भार प़डता है। राजनीति के समीकरणों पर कर व्यवस्था में कोई भी बदलाव ब़डा असर डाल सकता है। मौजूदा सरकार ने देश में कुछ ब़डे आर्थिक सुधार लागू किए हैं जिनमंे नोटबंदी और उसके बाद वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को भी लागू किया है। इन दोनों ब़डे सुधारों के बाद देश को सँभालने के लिए कुछ समय देने की आवश्यकता है। नोटबंदी से हुई परेशानी लोगों के ़जहन से अभी पूरी तरह से उतरी नहीं है। १ जुलाई से जीएसटी को लागू तो किया जा चुका है परंतु अभी में इसको समझकर अपनाने में व्यापारियों को काफी मशकत करनी प़ड रही है। आयकर सुधार सरकार को पेश करने ही होंगे परंतु फिलहाल देश को जीएसटी को अपनाने के लिए कुछ समय देना चाहिए। इसी दौरान सरकार को नई आयकर नीति की रूपरेखा पूरी तरह से तैयार कर लेनी चाहिए और चंद महीनों बाद इसे पेश करने की तैयारी की जा सकती है।
आयकर सुधार
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