उल्टा पड़ता दांव

उल्टा पड़ता दांव

नियंत्रण रेखा पर हिंसा की घटनाएं कब थमेंगी, कोई नहीं जानता। यों तो भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष २००३ से संघर्ष विराम समझौता लागू है, लेकिन इस समझौते की धज्जियां उ़डने की खबरें रोज आती हैं। इसका यह अर्थ नहीं कि यह समझौता अकारथ था। संघर्ष विराम समझौते से पहले के दशक की तुलना में समझौता लागू होने के बाद के दशक में नियंत्रण रेखा पर टकराव और हिंसा की घटनाएं बहुत कम हुईं। वहीं, पिछले चार-पांच साल में ऐसी घटनाएं इतनी ज्यादा हुई हैं कि लगता ही नहीं कि दोनों देशों ने संघर्ष विराम नाम का कोई समझौता भी कर रखा है। भारत और पाकिस्तान के रिश्ते दशकों से काफी उतार-च़ढाव भरे रहे हैं। खटास कई बार तीखी तकरार में बदल जाती है। इस इतिहास को देखते हुए सरहद पर अशांति पैदा हो जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। लेकिन जो सबसे चुभने वाली बात है वह यह कि एक देश आतंकियों को सीमा पार कराने के लिए झ़डप और गोलीबारी का सहारा ले। इसी तरह के हमले को एक बार फिर, बीते सप्ताह, भारतीय सैनिकों ने विफल कर दिया। इस कार्रवाई में पाकिस्तान की चार चौकियों के तबाह होने और उसके कई सैनिकों के ढेर होने की खबर है। पिछले कुछ दिनों से पाकिस्तानी सैनिक इन्हीं चार चौकियों से लगातार भारतीय सैन्य चौकियों को निशाना बना कर गोलाबारी कर रहे थे। इन चौकियों से आतंकियों को भारतीय सीमा में दाखिल कराने का बार-बार प्रयास किया जा रहा था। भारतीय सैनिक अगर चौकस नहीं रहते, तो बैट के इस हमले में काफी नुकसान हो सकता था। भारत की जवाबी कार्रवाई में मौके पर तैनात उसके सैनिकों की चौकसी के अलावा रक्षा क्षेत्र से जु़डी खुफिया एजेंसी की तत्परता और दक्षता की भी अहम भूमिका रही। हमारी सेना को बैट के हमले के बारे में पहले से ही खुफिया सूचनाएं मिल गई थीं। नियंत्रण रेखा के पार पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकियों के जमा होने की खबरें मिली थीं। घुसपैठियों की खातिर रास्ता बनाने के लिए उस पार से जमकर गोलाबारी की गई। पर उन्हें मुंह की खानी प़डी। दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय फलक पर भी पाकिस्तान को झटका लगा है। पिछले हफ्ते एफएटीएफ यानी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की पेरिस में हुई बैठक में पाकिस्तान को, आतंकवादियों को वित्तीय मदद रोक पाने में नाकाम रहने की वजह से, निगरानी सूची में डालने का फैसला किया गया। एफएटीएफ ने अपनी रिपोर्ट में पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र से प्रतिबंधित आतंकी संगठनों और व्यक्तियों के वित्तीय लेन-देन पर रोक न लगाने का दोषी पाया था। एफएटीएफ की निगरानी सूची में डाले जाने से न केवल दुनिया की निगाह में पाकिस्तान की छवि को बट्टा लगा है, बल्कि उसकी अर्थव्यवस्था को भी नुकसान उठाना प़ड सकता है। क्या पाकिस्तान इससे कोई सबक लेगा?

About The Author: Dakshin Bharat