प्रतिबंध एक ’ना’पाक दिखावा

प्रतिबंध एक ’ना’पाक दिखावा

पाकिस्तान उन आतंकवादी समूहों और व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने में एक विचित्र दुविधापूर्ण चुनौती का सामना कर रहा है, जिन्हें सरकार और सेना की तरफ से पिछले तीन दशकों से संरक्षण मिल रहा है। अब पाकिस्तान पर दबाव है कि वह आतंकवाद के खिलाफ कदम उठाए्। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान सरकार की आतंकवादी समूहों को राज्य के समर्थन की नीति पर नाराजगी जाहिर की, चीनी नागरिकों पर पाकिस्तान में हमला, जिससे पाकिस्तान में चीनी नागरिकों की सुरक्षा का प्रश्न भी उठा और इसके कारण पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्तों में भी खटास आई। ये आतंकवादी समूह अफगान और भारत में निरंतर आतंकी हमले करते रहते हैं्। अभी हाल ही में सुंजवां आर्मी कैंप और २८ जनवरी को काबुल में हुए आतंकी हमले में ९५ अफगानी नागरिकों की जान गई। ये ऐसे उदाहरण हैं, जो यह सिद्ध करते हैं कि ये आतंकी समूह भारत और अफगानिस्तान में हमले कर एक युद्ध का माहौल ख़डा करते हैं्। ९ फरवरी को पाकिस्तान के राष्ट्रपति ममनून हुसैन ने आतंकवाद निरोध अधिनियम, १९९७ में संशोधन अध्यादेश जारी किया, जो कि उन आतंकी समूहों और व्यक्तियों को प्रतिबंधित करने के लिए था, जिसकी सूची संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् ने जारी की थी। इस संशोधन अधिनियम से हाफिज सईद के जमात-उद-दावा और फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन पर कुछ शिकंजा कसा। यह स्वागत योग्य कदम था, लेकिन सरकार का दृष्टिकोण उन अच्छे आतंकवादियों’’ के प्रति नहीं बदला, जिन्हें १९८० के दशक से सरकार का समर्थन मिल रहा था। भारत को पाकिस्तान के राष्ट्रपति के इस कदम पर ज्यादा खुश नहीं होना चाहिए्। यह केवल कागजी कार्रवाई मात्र है। हमें याद रखना चाहिए कि यह वही हाफिज सईद है, जिसे पिछले वर्ष नवंबर में इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने नजरबंदी से मुक्त कर दिया था, जिसके खिलाफ कानून व्यवस्था कोई पर्याप्त सबूत नहीं जुटा पाई थीं पाकिस्तान लगातार कुछ व्यक्तियों और समूहों जैसे मसूद अजहर, दाऊद इब्राहिम, हिजबुल मुजाहिदीन, लश्कर-ए-तैयबा आदि को आर्थिक रूप से सहायता प्रदान करता आ रहा है। जब कभी अंतरराष्ट्रीय दबाव ब़ढता है, तो पाकिस्तान इन आतंकी समूहों पर दिखावे के लिए कार्रवाई करता है लेकिन जैसे ही दबाव कम होता है, न्यायालय में पर्याप्त सबूत न होने का हवाला देकर इन आतंकी समूहों और व्यक्तियों को क्लीन चिट दे दी जाती है। दरअसल आतंक के मसले पर पाकिस्तानी सोच में परिवर्तन तभी संभव है, जब आतंकी ट्रेनिंग कैंप, फंडिंग एजेंसी और संस्था समर्थित आतंकी गिरोहों को बंद किया जाए्। इसके अतिरिक्त सरकारी एजेंसियों, जैसे पाकिस्तान का गुप्तचर विभाग और सेना जो ऐसे आतंकी समूहों को बल दे रही हैं और इसे एक सामरिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर रही है। इन सबसे पाकिस्तान को कुछ हासिल होनेवाला नहीं है।

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