दावोस में आयोजित विश्व आर्थिक मंच की सालाना बैठक में अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया की तीन मुख्य चुनौतियों का जिक्र किया – पहली आतंकवाद, दूसरी जलवायु परिवर्तन और तीसरी संरक्षणवाद्। उनके वक्तव्य की बहुत उत्सुकता से प्रतीक्षा थी। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने गत वर्ष इस मंच को संबोधित करते हुए वैश्वीकरण की जबर्दस्त तारीफ की थी। मोदी ने भी वैश्वीकरण का बचाव करते हुए कहा कि वैश्वीकरण से उत्पन्न तनावों का उत्तर आत्मकेंद्रित होना नहीं है। उन्होंने नए तरह के टैरिफ और गैर टैरिफ वाली बाधाओं और द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौतों और वार्ताओं में आ रहे ठहराव का जिक्र किया। आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन पर उन्होंने मजबूत वैश्विक प्रतिक्रिया के प्रति भारत की प्रतिबद्धता दोहराई। भारतीय मूल्य लालच के लिए प्रकृति के दोहन का समर्थन नहीं करते हैं और ’’अच्छा आतंकवाद’’ जैसी कोई चीज नहीं होती। उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण के खिलाफ उठ रही आवाजें चिंतित करने वाली हैं। वहीं, मोदी के संकेतों की बात करें तो उनका भाषण खासा जटिल था। उनके भाषण से बाहरी तौर पर यह संकेत निकला कि भारत वैश्वीकरण के पक्ष में है। आंतरिक तौर पर उससे यह संकेत निकला कि सरकार की प्राथमिकताएं अभी भी सुधार और वृद्धि हैं। ये संकेत स्वागतयोग्य हैं। दावोस में मोदी का जबर्दस्त स्वागत हुआ। यह वैश्विक स्तर पर भारत के ब़ढते कद का प्रतीक है और साथ ही यह भविष्य में बेहतर आर्थिक प्रदर्शन की आकांक्षाओं का भी प्रतीक है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चालू वित्त वर्ष के दौरान भारत की आर्थिक वृद्धि संंबंधी अनुमान हाल ही में ब़ढाकर ७.४ फीसदी कर दिए हैं। अन्य वृहद आर्थिक संकेतकों में भी उम्मीद की किरण दिखाई देती है। फिर चाहे बात शेयर बाजार से हुई जबरदस्त कमाई की हो या डेट बाजार में भारी मात्रा में विदेशी पूंजी की आवक की, या फिर अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा भारत की सॉवरिन रेटिंग में सुधार की। कह सकते हैं कि भारत अब नीतिगत गलतियों और प्रशासनिक सुस्ती के कारण विकास की रफ्तार में धीमेपन से उबर रहा है। सो, मोदी को लोगों ने ध्यानपूर्वक सुना क्योंकि भविष्य में भारत की वृद्धि और समृद्धि के बारे में दुनिया के मन में कई आशंकाएं अब भी हैं। इससे आने वाले आम बजट पर भी दबाव ब़ढता है। उसे अधिक समझदारी और अग्रसोची ढंग से तैयार करना होगा बजाय कि लोक-लुभावनवाद के। मोदी के दावोस संदेश के मुताबिक सरकार को राजकोषीय समझदारी, व्यापारिक खुलापन, जलवायु परिवर्तन और स्थायी विकास जैसे वैश्विक लक्ष्यों की प्रतिबद्धताओं को प्राथमिकता देनी चाहिए्। तभी भारत को विश्व स्तर पर प्रमुख भूमिका निभाने का अवसर मिलेगा।
दावोस के संदेश
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