जम्मू-कश्मीर सीमा पर भारत और पाकिस्तान के बीच गोलीबारी से जंग के हालात उपजना कोई नई बात नहीं है। आए दिन दोनों ओर से गोलाबारी और फायरिंग होती रहती है। कभी इस पक्ष के जवान मरते हैं तो कभी उस पक्ष के। यहां तक कि निरीह नागरिक भी इस गोलाबारी के शिकार हो जाते हैं्। यह आए दिन की बात है लेकिन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को दर्द अब महसूस हुआ है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री खाकन अब्बास दोनों से अपील की है कि जम्मू-कश्मीर को जंग का अखा़डा नहीं, दोस्ती का पुल बनाएं। सीमा पर हाल में भी खून की होली खेली गई। इसके बाद महबूबा ने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी विकास की बात करते हैं लेकिन हमारे प्रदेश में इसके विपरीत काम हो रहा है। महबूबा की यह अपील तब सामने आई, जब पाकिस्तान की ओर से सीमा पर जबर्दस्त गोलाबारी की जा रही थी और भारतीय जवान भी उसका जवाब दे रहे थे। पुंछ में रविवार को भी पाकिस्तान की ओर से सीजफायर का उल्लंघन किया गया। समझ में यह नहीं आता कि महबूबा ने यह नसीहत किसके लिए दी है – मोदी के लिए या पाकिस्तान के लिए? अगर यह मोदी के लिए दी गई है तो फिर भी उनके पास पहुंच जाएगी लेकिन अगर पाकिस्तान को यह नसीहत दी गई है तो क्या पाकिस्तान उनकी यह अपील मानेगा? जो दुनिया को आतंक के मामले में झूठ और फरेब के सिवा कुछ भी देने की हालत में नहीं है, विश्व की सारी ताकतों की नसीहत को धत्ता बता रहा है, विश्व शांति संगठन संयुक्त राष्ट्र की एक टीम को आतंकियों की सीधी जांच करने की अनुमति देने से कदम पीछे घसीट रहा है, वह महबूबा की अपील क्यों सुनेगा? वह तो शायद ही महबूबा को कश्मीरियों का प्रतिनिधि मानने को तैयार हो। महबूबा को अब समझ में आ रहा है कि कश्मीर उनका प्रदेश है। आखिर कश्मीर की इस दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कौन है? अगर जम्मू-कश्मीर आतंक की आग में झुलस न रहा होता तो इस सबकी नौबत ही क्योंकर आती? यहां यह ध्यान रखना चाहिए कि महबूबा भी उसी इलाके से निर्वाचित हुई हैं, जहां आतंकी बहुल है। अगर वे येन-केन-प्रकारेण आतंकियों को पथभ्रष्ट होने से बचा लेतीं तो क्या आज ऐसी स्थिति उत्पन्न होती? केंद्र सरकार ने तो पहले से ही कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दे रखा है। वह कश्मीरियों के लिए हर तरह की सहूलियतें उपलब्ध करवाती है। ऐसे में केंद्र सरकार पर दोषारोपण कैसे किया जा सकता है? यह कश्मीर के लोग ही हैं जो आतंकवादी, जेहादी बनने के लिए पाकिस्तान जाते हैं। उन्हें दोबारा भारत में प्रवेश कराने के लिए सीमा पर पाकिस्तानी रेंजर्स और सेना के जवान गोलियां दागते हैं। महबूबा अगर सचमुच जम्मू-कश्मीर को जंग का अखा़डा नहीं बनने देना चाहतीं तो सबसे पहले उन्हें आतंवादियों पर लगाम कसनी होगी।
महबूबा का दर्द
महबूबा का दर्द