वसंत की बयार

वसंत की बयार

वसंत ऋतु की सुगबुगाहट भले ही कुछ दिनों पहले शुरू हो जाती हो लेकिन औपचारिक रूप से पंचमी तिथि को ही वसंत का आगमन होता है। इस वर्ष भी देवी सरस्वती की आराधना के साथ वसंत ऋतु का आगमन हुआ है। ऋतुएं भी अपना उत्सव मनाती हैं और वसंत का तो कहना ही क्या? वसंती बयार पुलक भरा एक सुखद अहसास हमारे अंतर में संचारित करती है और हम देखते हैं कि कैसे समूची प्रकृति में ही एक नया जीवन मुस्कराने लगा है। आखिर यों ही वसंत ऋतुराज और ऋतुपति नहीं कहाता है। लेकिन वसंत वनों में, खेतों में, बाग-बगीचों में चाहे जितनी मुस्करा ले, खिलखिला ले, हमारे शहरों तक आते-आते प्रदूषित हो जाती है। वसंती हवा भी शहरों में आते-आते गंदी हो जाती है। कंक्रीट के जंगल में वसंत भला कैसे मंगल मनाए? शहरों के लिए आम की मंजरियां और सरसों के पीले फूल कितने बेगाने हैं, यह कहने की जरूरत नहीं्। शहर के अहर्निश कर्कश शोर में किसी धूलि धूसरित वृक्ष की ओट में छिपी कोयल की कूक अरण्यरोदन है या नक्कारखाने में तूती की आवाज, यह सोचकर ही मन उल्लसित होने के बजाय उदास हो जाता है। फिर भी स़डक किनारे जितने पे़ड-पौधे और पार्कों में जितने घास-फूल और लता गुल्म बचे-खुचे हैं, उतनी भी वासंती झलक मिल जाती है, यही क्या कम है? मधुमास तो भूल ही जाइए, आखिर महुआ के पे़ड हैं ही कहां? फिर भी, जहां प्रकृति का आंचल पसरा हुआ है, वहां वसंत प्रकृति के नए श्रृंगार का पर्व बनकर अवतरित हो रहा है – प्रेम और उल्लास का उपहार लेकर्। चारों ओर फूल खिल रहे हैं, खुशबू और रंग की वर्षा हो रही है। धरती, जल, वायु, आकाश सभी मोहक रूप धर रहे हैं्। शीत की अधिकता के कारण जो पक्षी और जीव अपने घरों में छिपे-दुबके प़डे थे, वह सब बाहर निकलकर चहकने लगे हैं्। नवजीवन का आगमन उत्सव है यह। वसंत अपनी ओर से तो खैर समूची प्रकृति के रूप को निखारने में कोई कसर नहीं छो़डेगा, बशर्ते हम उसकी राह में अ़डंगा न डालें्। वरना यह प्रकृति खुलकर मुक्त हस्त से कैसे अपने प्यार की सौगात लुटाती है, यह ऋतुराज के दिनों में देखा जा सकता है। वसंत पंचमी को विद्या, कला और संगीत की देवी सरस्वती की पूजा के साथ ही लोग प्रकृति के रंग में रंगे दिखते हैं्। सबसे खुशनुमा, फूलों, फसलों और नव पल्लवों से संपन्न है यह ऋतु। बर्फीली शीत लहरें धूप में घुलकर मीठे-मधुर अहसास में बदल रही हैं्। सरसों की धानी चादर पर पीली छींटें बिखर रही हैैं। गोया पूरी प्रकृति ही पीली सुनहरी चादर ओ़ढे मदमस्त होकर झूम रही है। वसंत में ही महुआ, केव़डा और टेसू के फूलों की गंध से अभिभूत होकर मन हिलोरें मारने लगता है। वसंत के राग गाने-बजाने का मौसम है यह यह। यह हम पर है कि हम वसंत का स्वागत कैसे करते हैं और इसे कितना अंग लगाते हैं् ?

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