चीन, पाकिस्तान और नेपाल हाल के दिनों में भारतीय कूटनीति की कस कर परीक्षा ले रहे हैं्। लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन की सेनाओं के बीच एक मुठभेड़ में भारतीय सेना के दो सिपाही और एक वरिष्ठ अधिकारी शहीद हो गए हैं्। यह 40 सालों में ऐसा पहला मौका माना जा रहा है जब वास्तविक नियंत्रण रेखा पर ऐसी हिंसा हुई है। नेपाल सीमा से लगे भारत के जिलों में अलर्ट कर दिया गया है क्योंकि कुछ जगहों पर सीमा रेखा दर्शाने वाले प्रतीकों और चिह्नों के गायब होने की भी खबर है। बिहार में नेपाल पुलिस की फायरिंग में एक व्यक्ति की मौत के बाद तनाव है। वहीं, पाकिस्तान में भारतीय दूतावास के दो कर्मियों का अपहरण करने के बाद उनके साथ हुआ जानवर सरीखा सलूक भी इस पड़ोसी मुल्क के साथ तनाव बढ़ा रहा है। इन सबके बीच हर भारतीय के लिए चीन के साथ हमारा द्विपक्षीय संबंध चिंता का कारण बन गया है। चीन से फैले कोरोना संक्रमण के कारण आज पूरी मानवता कराह रही है लेकिन चीन अपने गुनाहों पर पर्दा डालने के लिए कुछ और ही साजिश रच रहा है। लद्दाख में लगभग 40 दिनों से भारत और चीन की सेनाओं के बीच चल रहे गतिरोध ने एक खतरनाक मोड़ ले लिया है। तनाव को कम करने के लिए दोनों देशों के बीच सैन्य और कूटनीतिक दोनों स्तर पर बातचीत चल रही है। चीन ने आरोप लगाया है कि भारतीय सिपाही वास्तविक नियंत्रण रेखा पार कर चीन के इलाके में घुस गए थे जिसके बाद दोनों देशों के सिपाहियों के बीच मुठभेड़ हुई्। भारत में रक्षा-मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश-मंत्री एस जयशंकर ने चीफ ऑफ डिफेन्स स्टाफ जनरल बिपिन रावत और तीनों सेना प्रमुखों के साथ बैठक की, जिसमें स्थिति का आकलन किया गया और आगे की रणनीति पर विचार किया गया। लद्दाख में दोनों देशों के बीच पांच मई से कम से कम चार अलग अलग इलाकों में गतिरोध चल रहा है। सबसे पहले गतिरोध की खबर पैंगोंग त्सो झील से आई थी जहां दोनों सेनाओं के बीच हाथापाई का अनौपचारिक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था। पिछले कुछ दिनों से दोनों देशों के बीच सैन्य स्तर पर बातचीत चल रही थी और कहा जा रहा था कि कम से कम गलवान घाटी में दोनों सेनाएं अपनी अपनी जगहों से पीछे हटने लगी हैं्। लेकिन कई समीक्षक लगातार कह रहे थे कि बड़ी संख्या में चीन के सैनिक भारतीय इलाके में घुस आए हैं और वह पीछे नहीं हट रहे। गलवान घाटी वर्ष 1962 से भारत के नियंत्रण में रही है।
लद्दाख में पैंगोंग त्सो झील 14 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित एक लंबी, संकरी और गहरी झील है। वर्ष 1962 में भारत-चीन जंग की धुरी रही यह झील फिर से सुर्खियों में है। यह चारों तरफ जमीन से घिरी हुई है। यह झील रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। दोनों देश लगातार इस झील में पट्रोलिंग करते रहते हैं्। जंग के दौरान चीन ने इसी इलाके में भारत पर मुख्य हमला बोला था। अगस्त 201% में भी पैंगोंग त्सो झील के किनारे भारत और चीन के सैनिक भिड़ गए थे। दोनों ओर से जमकर लात-घूंसे चले थे। पत्थरबाजी, लाठी-डंडे और स्टील रॉड से एक दूसरे पर हमले हुए थे। भौगौलिक स्थिति इसे रणनीतिक रूप से बेहद अहम बनाती है। यह चुशुल अप्रोच के रास्ते में पड़ता है। चीन अगर भविष्य में कभी भारतीय क्षेत्र पर हमले की हिमाकत करता है तो चुशुल अप्रोच का इस्तेमाल करेगा। वहीं, गलवान घाटी की बात करें तो भारत ने वर्ष 1961 में पहली बार यहां कब्जा किया और आर्मी पोस्ट बनाई्। इस घाटी के दोनों तरफ के पहाड़ रणनीतिक रूप से भारतीय सेना को बढ़त देते हैं्। इसके अलावा गलवान नदी जिस श्योक नदी में मिलती है, उसके ठीक बगल से भारतीय सेना की एक सड़क गुजरती है। वर्ष 1961-62 के बाद से यह घाटी शांत रही है। पिछले दो दशकों में यहां दोनों सेनाओं के बीच कोई झड़प भी नहीं हुई थी। मगर 5 मई के बाद चीनी सेना गलवान घाटी में अपने दावे की रेखा से 2 किलोमीटर आगे चली आई है और भारत की सड़क से वह महज दो किलोमीटर दूर है। चीन की छोटी आंखें जिस भारत को देख रही हैं वह 1961 का भारत नहीं है। वह किसी मायने में चीन से मात खाने वाला नहीं्।