बात-बिना बात
श्रीकांत पाराशर
लोकसभा चुनावों का प्रचार अर्ष पर है तो नेताओं के बयान फर्श पर हैं। बल्कि कह सकते हैं कि गटर स्तर तक गिर चुके हैं। राजनीति में जो लोग पहुंचते हैं उनमें बहुत से लोग ऐसी ट्रेनिंग लेकर पहुंचते हैं कि कुछ भी करने और बोलने में उन्हें कोई शर्मिंदगी महसूस नहीं होती। ये बयान- बहादुर नेता ऐसे ऐसे बयान देते हैं कि नैतिकता और शालीनता की ऐलओसी कब पार कर बैठते हैं, शायद इनको स्वयं को भी पता नहीं होता।
इनके बयानों की बमबारी दुश्मन को चुनावों में कितना नुकसान पहुंचाएगी यह तो चुनाव परिणाम आने से ही पता लगेगा परंतु इसमें दो राय नहीं कि जितना बड़ा नेता, उतना ही बड़ा बयानी ब्रह्मास्त्र छोड़ता है। समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता आजम खान अपनी मुंहबोली बहन जयाप्रदा पर एक से बढ़कर एक बयानबम छोड़ रहे हैं।
अभी पिछले दिनों तो उन्होंने जयाप्रदा के लिए इतनी अंतरंगता प्रदर्शित की थी कि पूरा राजनीतिक गलियारा गर्माहट से भर गया था। कोई राजनेता ही अपनी मुंहबोली बहन के लिए ऐसा ‘सम्मानजनक’ बयान दे सकता है। बकौल जयाप्रदा उन्हें (आजम खान को) तो जयाप्रदा में आम्रपाली नजर आती थी और अब उनके बेटे अब्दुल्ला खान उन्हें अनारकली कह रहे हैं। मतलब, बड़े मियां तो बड़े मियां, छोटे मियां सुभानअल्लाह।
हालांकि जयाप्रदा आजम के बेटे के लिए कहती हैं कि वह अभी बच्चा है लेकिन लोग कहते हैं कि ये लक्षण तो बचपन के से नहीं हैं। और अगर वह बच्चा है तथा उसकी इतनी पारखी नजर है तो लगता है वह जब परिपक्व होगा तब तक तो महिलाओं के सम्मान करने के नए-नए तरीके खोज लेगा। मैंने हाल ही में एक सभा में आजम खान को रोते हुए देखा। विश्वास नहीं हुआ। अपने चश्मे के शीशे को साफ कर मैंने फिर से देखा तो भी आजम ही दिखाई दिए। वास्तव में वही थे और रो भी रहे थे। वे रो-रोकर मुस्लिम मतदाताओं से उन्हें (आजम को) वोट देने की गुहार लगा रहे थे।
मोदी हो, अमित शाह हो, अमर सिंह हो, इन सबको दहाड़-दहाड़ कर अंटशंट बोलने वाले आजम खान को मैंने सार्वजनिक रूप से फूट-फूटकर रोते हुए पहली बार देखा। मेरे एक साहित्यिक मित्र ने कहा, घड़ियाली आंसू बहाने का मुहावरा आजम खान जैसे लोगों के लिए ही बना है। यह वही आंसू हैं। चुनाव में वोट मांगने के काम आते हैं और जीत जाने के बाद ऐसे लोग अपने मतदाता को खून के आंसू रुलाते हैं। इस बार के चुनाव उम्मीदवारों को खूब रुला रहे हैं। परिणामों के बाद वे उम्मीदवार भी सब रोते हुए मिलेंगे जिन्होंने मतदाता को कभी मतदाता नहीं, बल्कि एक वोट समझा, समुदायों को वोट बैंक समझा। वही मतदाता, वही समुदाय धोखेबाज नेताओं का इस बार बैंड बजाने वाले हैं।
इस बार मतदाता उम्मीदवारों का हो या राजनीतिक दलों का, अतीत का ट्रैक रिकॉर्ड खंगाल रहे हैं। सोच समझकर वोट दे रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने बाड़मेर की एक जनसभा में कहा कि पहले के समय में पाकिस्तान भारत को जब मर्जी आए तब न्यूक्लियर बम होने की धमकी देता था और भारत चुपचाप धमकियां सुनता रहता था परंतु अब भारत में ऐसी सरकार नहीं है कि चुप बैठ जाए।
उन्होंने कहा कि उनके (पाकिस्तान के) पास परमाणु बम है तो हमारे पास क्या है? जो हमारे पास (परमाणु बम)है वह क्या दिवाली के लिए रखा है? उन्होंने बयान दे दिया। इस बयान से भारत के किसी राजनीतिक दल का दिल भला क्यों दुखना चाहिए। यह तो पाकिस्तान को संदेश देने के लिए कही गई बात थी और देश की जनता में सुरक्षा के प्रति विश्वास कायम करने का प्रयास था परंतु जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा को यह बयान रास नहीं आया। वह तिलमिला उठीं।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के पास जो परमाणु बम हैं वह क्या उन्होंने ईद के लिए रखे हैं? यह मोदी के बयान के जवाब में था। बयान की तिलमिलाहट से यह लगता है जैसे महबूबा भारत के किसी प्रदेश की नेता नहीं बल्कि पाकिस्तान की प्रधानमंत्री हों। निश्चित ही इन चुनावों में राष्ट्र सुरक्षा एक मुद्दा बन चुकी है। सत्ता पक्ष को तो पता ही है क्योंकि उन्होंने ही इसे मुद्दा बनाया है और इसका उनको लाभ मिलना भी तय है। विपक्ष राष्ट्र सुरक्षा के मुद्दे पर सीधी तीखी टिप्पणी कर ‘आ बैल मुझे मार’ की स्थिति में नहीं पहुंचना चाहता, इसलिए संभल-संभल कर यही कहकर संतोष कर रहा है कि मोदी सरकार सेना के पराक्रम को भुनाना चाहती है। मोदी सरकार पर इसका कोई असर नहीं हो रहा।
कांग्रेस को भी पता है कि जब-जब मौका मिला तब-तब वह खुद भी सब लाभ उठाती रही है, श्रेय लेती रही है इसलिए ऐसी शिकायतों से कुछ होने वाला नहीं। उधर महबूबा हों चाहे अब्दुल्ला परिवार हो, उनको पता है कि वे देश के सामने एक्सपोज हो चुके हैं। अभी तक हुए मतदान में घाटी के लोगों का चुनाव के प्रति रुझान देखकर मुफ्ती और अब्दुल्ला परिवार सदमे में हैं। आतंकवादियों की धमकियों के बावजूद वोट देने के लिए मतदान केन्द्रों पर भीड़ यह स्पष्ट संकेत देती है कि अब वहां की जनता किसी के बहकावे में आने वाली नहीं। उसे भी विकास की मुख्य धारा में आना है, भारत के साथ आगे बढ़ना है, पाकिस्तान परस्तों के वादों से कुछ हासिल होने वाला नहीं।
महबूबा और अब्दुल्ला के बयान अब घाटी में बेअसर हैं उनकी मिशाइलें सामान्य पटाखे का असर भी नहीं छोड़ रही। उनके सब बयान फुस्स पटाखा साबित हो रहे हैं। इधर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने तो सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय को ही अपने मनमुताबिक बदल कर बयान दे डाला कि उच्चतम न्यायालय ने भी ‘मोदी चोर है’ पर अपनी मोहर लगा दी है। उनका बयान खूब वायरल हुआ। वे प्रसन्न भी हुए कि कुछ लाभ तो चुनाव में होगा परंतु उनकी भी चतुराई धरी रह गई।
भाजपा की नेता और वकील मीनाक्षी लेखी की एक याचिका पर फटाफट राहुल को मिला नोटिस, और अंततः उन्हें अपने बयान के लिए माफी मांगनी पड़ी। पहले ऐसा बयान दें कि वह अदालत तक पहुंच जाए और फिर माफी मांगनी पड़े तो फजीहत तो होती ही है। परंतु आजकल कोई भी नेता फजीहत की परवाह नहीं करता है बशर्ते उसे कुछ राजनीतिक लाभ मिल जाए। यही कारण है कि माफी मांगने के तुरंत बाद राहुल फिर से मोदी को जोर-जोर से चोर बताने में जुट गए हैं। लगता है ‘मोदी चोर हैं’ यह उनका तकिया कलाम बन चुका है। इस आरोप के बिना वे कोई भाषण नहीं दे सकते। मोदी को चोर बताकर उन्हें ताकत मिलती है। बहुत से बयान तो इतने रोचक होते हैं कि उन पर हंसी भी आती है और तरस भी आता है।
अभी-अभी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा की एक जनसभा में जनता से कहा कि अगर मेरा बेटा(नकुल) आपका काम न करे तो उसके कपड़े फाड़ देना। जनता इस बयान पर खूब हंसी। सोशल मीडिया पर बयान वायरल हुआ तो लोगों ने ठहाके लगाए। कमलनाथ दरअसल समझदार व्यक्ति हैं। उन्हें पता है कि जनता आजकल चतुर हो गई है। काम न करो तो क्षेत्र का मतदाता अपने जनप्रतिनिधि के कपड़े फाड़ने को यों ही ऊतारू रहता है। मौका मिले तो फाड़ भी देता है।
कमलनाथ ने सोचा कि जो मुमकिन है उसका जिक्र करने में क्या बुराई है। कम से कम जनता में तो एक साफगोई वाले नेता की छवि बनेगी। कपड़े फाड़ने की नौबत भी आई तो कम से कम यह तो कहा जा सकेगा कि मेरे चुनाव क्षेत्र की जनता ने वही किया जो मैंने कहा। वह मेरे कहने में चलती है। अभी तो चुनावों के कई चरण बाकी हैं। तरह-तरह के बयानों की बमबारी देखने को मिलेगी। आनन्द लीजिए।