तेल और डॉलर का खेल

तेल और डॉलर का खेल

कच्चे तेल की लगातार ब़ढती कीमतों और डॉलर के मुकाबले गिरते रुपए ने नीम च़ढा करेला बनकर हमारी अर्थव्यवस्थ के स्वाद को क़डवा बना दिया है। सरकारके लिए तेल उत्पादक देशों पर अनिवार्य निर्भरता ने जहां आयात-निर्यात संतुलन को जबर्दस्त धक्का पहुंचाया है, वहीं महंगे पेट्रोल-डीजल के कारण आम उपभोक्ताओं पर महंगाई की चोट प़ड रही है। दस दिन पहले ही केंद्र सरकार, भारतीय तेल कंपनियां और राज्य सरकारों ने मिलकर डीजल-पेट्रोल की कीमतों में पांच रुपए की राहत दी थी। वह भी फिलहाल काफूर हो चली है। ऐसे में सोमवार को जब खुद प्रधानमंत्री मोदी ने तेल उत्पादक देशों की ४० कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठक की तो देश की नजरें इसी पर टिकी रहीं। इस बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने तेल के बेतहाशा ब़ढते दामों पर सउदी अरब जैसे देशों को चेताते हुए तेल की दरें घटाने की अपील की है। वहीं, डॉलर के मुकाबले रुपए के गिरते भावों को देखते हुए प्रधानमंत्री ने तेल कंपनियों से अपेक्षित बेहतर सहयोग करने का आग्रह किया है। मोदी ने वैश्विक और घरेलू तेल व गैस कंपनियों के अधिकारियों के साथ राजधानी दिल्ली में तीसरी वार्षिक बैठक के दौरान भारत जैसे तेल उपभोक्ता देशों की चिंता से अवगत कराया।कहना नहीं होगा कि कच्चे तेल के दाम ब़ढने से पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतों में लगातार ब़ढोत्तरी दर्ज की जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सउदी अरब के तेल मंत्री खालिद अल फालेह की मौजूदगी में कहा कि कच्चे तेल की कीमतें चार वर्षों के उच्च स्तर पर पहुंच गई हैं, जिससे वैश्विक आर्थिक विकास दर पर प्रतिकूल असर प़ड रहा है। मुद्रास्फीति ब़ढ रही है और भारत जैसे विकासशील देशों का बजट ग़डब़डा रहा है। उन्होंने तेल उत्पादक देशों से अपील की है कि वह रुपए को फौरी राहत देने के लिए भुगतान शर्तों की समीक्षा करें। मोदी ने उनसे यह आग्रह भी किया कि वह वाणिज्यिक संचालन के लिए निवेश योग्य अतिरिक्त तेल विकासशील देशों में जमा करें। उन्होंने कच्चे तेल के बाजार में उत्पादक देशों की मनमानी पर भी चिंता जताते हुए कहा है कि उपभोक्ता देशों के साथ तालमेल से ही वैश्विक अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल सकेगी। उन्होंने वस्तुस्थिति से सबाके अवगत करवाते हुए कहा कि तेल और गैस के बाजार भारतीय अर्थव्यवस्था के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं लेकिन तेल उत्पादक देश ही बाजार में आपूर्ति और कीमतें तय करते हैं। उन्होंने साफ साफ कहा है कि पर्याप्त उत्पादन के बावजूद बाजार की नीतियों की वजहज से कीमतों में उछाल लाया गया है। ऐसे में तेल उत्पादक और उपभोक्ता देशों के बीच तालमेल होने से ही वैश्विक अर्थव्यवस्था में स्थिरता आ पाएगी। उन्होंने इस सच्चाई का भी जिक्र किया है कि कच्चे तेल की अधिक कीमतों की वजह से भारत को कई अन्य आर्थिक चुनौतियों का सामना करना प़ड रहा है। ऐसे में जब तक उत्पादक देश अपनी नीतियों में बदलाव नहीं लाएंगे, तब तक बाजार में उतार-च़ढाव कम नहीं किया जा सकता है। प्रधानमंत्री ने तेल उत्पादक देशों से आपूर्ति के बदले भुगतान की शर्तों में भी ढील देने की अपील की ताकि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोर प़ड रहे रुपए को किसी हद तक राहत मिले।

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