— अवधेश कुमार —
नवजोत सिंह सिद्धू का पाकिस्तान जाना देश भर में बहस और विवाद का विषय बनेगा, इसकी संभावना पहले से थी। जिस दिन इमरान खान के शपथग्रहण में आने का निमंत्रण आया, उनका प्रदर्शित उत्साह और दिया गया बयान साबित करता था कि राजनीति में होते हुए भी उनमें परिपक्वता का अभाव है। वो पंजाब प्रदेश के मंत्री हैं जहां पाकिस्तान ने भयानक आतंकवाद पैदा किया। बरसों पंजाब धू-धू कर जलता रहा। कितने लोगों के बलिदानों के बाद वहां शांति आई।
वह पंजाब ही है जहां पठानकोट में पाकिस्तानी आतंकवादियों के हमलों के बाद संबंध सुधारने की नरेन्द्र मोदी सरकार की कोशिशों को धक्का लगा। जब आज सजायाफ्ता तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने संबंध सुधारने के लिए कुछ करना शुरू किया तो उनके विरुद्ध साजिशें आरंभ हो गईं। उन्होंने पठानकोट हमले के बाद कहा कि हम जांच कर दोषियों को सजा देने को तैयार हैं, भारत के पास जितना सबूत हैं दे। भारत ने दिए।
उन्होंने कार्रवाई करने की कोशिश की। जांच टीम को भेजा जिसे हमले की जगह यानी पठानकोट वायुसेना अड्डे तक ले जाया गया। किंतु उसके बाद वहां पूरा माहौल बदल गया। आज नवाज अगर जेल में हैं तो उसके कई कारणों में से एक उनकी यह समझ और इस दिशा में आगे बढ़ने की हल्की कोशिश भी है कि भारत के साथ संबंध सुधारकर आर्थिक व्यापारिक सहयोग में ही पाकिस्तान का हित है।
पता नहीं सिद्धू को इसका ज्ञान है भी या नहीं कि पाकिस्तान चुनाव में नरेंद्र मोदी दो प्रकार से मुद्दा बने थे। एक, भारत को मोदी जैसा बना रहा है, दुनिया में प्रतिष्ठा दिला रहा है वैसा ही पाकिस्तान को भी बना देंगे। और दूसरा, कि नवाज शरीफ मोदी का यार है। भारत के साथ वह गुप्त समझौते करके पाकिस्तान को नुकसान पहुंचा रहा है। सेना, न्यायपालिका का एक गुट बना ही इसलिए ताकि नवाज का राजनीतिक जीवन खत्म करके इमरान को आगे लाया जाए।
हालांकि पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा ने भी बयान दिया था कि भारत से संबंध सुधारना चाहते हैं, पर अभी तक उन्होंने जो कुछ किया है उससे दूरियां और तनाव बढ़ने के ही संकेत हैं। सिद्धू जनरल बाजवा से गले मिल रहे हैं। हो सकता है बाजवा ने हाथ मिलाने के बाद गले मिलने की स्वयं पहल की हो। अगर उनका जवाब यह होता कि वो गले मिलने लगे तो क्या मैं उन्हें हटा देता, तो कोई समस्या नहीं होती। वो बाजवा को शांति पुरुष बता रहे हैं। कह रहे हैं कि बाजवा साहब ने कहा कि शांति चाहते हैं।
एक भारतीय के नाते वो कह सकते थे कि साहब शांति आप पर ही निर्भर है। आप आतंकवादी भेजना तथा सीमा एवं नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी बंद कर दीजिए, शांति हो जाएगी। उनकी बात से ऐसा लगा ही नहीं कि उनको इसका भान भी है कि अशांति और तनाव पाकिस्तान के कारण है। यह हमारे देश का कैसा नेता है, जो खरी-खरी बात करने की बजाय पाकिस्तान की भूमि पर कह रहा है कि खान साहब यानी इमरान खान ने कहा है कि भारत एक कदम चले तो हम दो कदम चलेंगे। अब हमारा दायित्व है कि हम अपनी सरकार से बातचीत कर उसे एक कदम चलने को प्रेरित करें।
यह भारत विरोधी बयान है। इसका अर्थ यह निकलता है कि अभी तक भारत ने शांति पहल की ही नहीं है जबकि पाकिस्तान तो तैयार बैठा है। पाकिस्तानी मीडिया भविष्य में सिद्धू के इस गैर जिम्मेवार बयान को उद्धृ करेगा। संभव है उनको पाक अधिकृत कश्मीर के कठपुतली राष्ट्रपति के बगल में जानबूझकर बिठाया गया होगा। इसलिए हम इस विवाद को आप पर छोड़ देते हैं। आप निष्कर्ष निकालिए। क्या सिद्धू भूल गए कि हमारे प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के फोन पर आग्रह करने मात्र से बिना पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के लाहौर पहुंचे और उनके घर तक गए? वो अफगानिस्तान दौरे पर थे। उन्होंने नवाज को जन्मदिन की बधाई दी तो नवाज ने कहा कि मैं लाहौर में ही हूं, आप इधर से होते जाइए। मोदी वहां चले गए। इससे बड़ा कदम विश्वास बहाली का कुछ हो ही नहीं सकता था।
मोदी ने प्रधानमंत्री पद के शपथग्रहण समारोह में दक्षिण एशिया के सभी नेताओं के साथ नवाज शरीफ को भी बुलाया था। समग्र बातचीत की शुरुआत की आधारभूमि बनाई थी। पेरिस में, उफा में दोनों नेताओं के बीच बातचीत हुई। यानी अतीत की बात तो छोड़ दीजिए भारत ने जितना संभव था इस काल में भी शांति की हरसंभव कोशिश की। किंतु आप अगर हमारे यहां खून का खेल खेलेंगे तो फिर शांति नहीं हो सकती। सिद्धू कह रहे हैं कि बाजवा साहब ने कहा है कि गुरु नानक देव की 550वीं जयंती पर वो करतारपुर मार्ग खोलना चाहते हैं। मार्ग खोलने का निर्णय सरकार यानी राजनीतिक नेतृत्व करेगा या सेना? यदि इतनी बात समझ में नहीं आती कि सेना प्रमुख मार्ग खोलने की बात कैसे कर सकता है तो ऐसे व्यक्ति के इतने समय से राजनीति में होने पर हैरत होती है।
इसी से यह साबित होता है कि यह सरकार इमरान की नहीं सेना की ही होगी। महत्वपूर्ण निर्णय खासकर विदेश एवं रक्षा मामले में सेना के होंगे, जिस पर इमरान केवल सरकारी मुहर लगाएंगे। सिद्धू यह भी कह रहे हैं कि जितनी मोहब्बत वो लेकर आए थे उससे 100 गुणा ज्यादा लेकर जा रहे हैं। खान साहब को मैं जानता हूं वो तो शांति के लिए काम करेंगे। बस हमें शुरुआत करनी है। वे यह भी भूल गए कि इमरान ने चुनाव जीतने के बाद अपने भाषण में विदेशी संबंधों में सबसे अंत में भारत का नाम लिया था।
कांग्रेस के नेता कुछ भी कहें, सिद्धू ने पार्टी के लिए भी अजीबोगरीब स्थिति पैदा कर दी है। बुद्धिमता इसी में थी कि वो वहां नहीं जाते। सुनील गावस्कर और कपिलदेव नहीं गए। गावस्कर से जब पूछा गया था कि वो वहां जा रहे हैं या नहीं, तो उन्होंने कहा पहले सरकार से पूछूंगा, उसके बाद फैसला करूंगा। व्यक्तिगत संबंध अलग बात है। इमरान के घर का उत्सव नहीं था। वो प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे हैं जिसमें आपको जाना है। सरकार किसी को जाने से रोक नहीं सकती। दोनों देशों के नागरिक आ—जा रहे हैं। राजनीतिक आवागमन और आदान-प्रदान आतंकवादी हमलों के कारण बंद हैं।
भारत ने वहां सार्क सम्मेलन तक नहीं होने दिया। गावस्कर को पूरे देश में लोग सच्चा भारतीय कह रहे हैं। वहीं सिद्धू का चारों ओर विरोध हो रहा है। यह बिल्कुल स्वाभाविक है। एक भारतीय के नाते सिद्धू का वहां जाने का निर्णय गलत था और अपनी नासमझी में पाकिस्तान के अनुकूल तथा भारत के प्रतिकूल बयान देकर उन्होंने देश को जितना नुकसान पहुंचाया वो तो अपनी जगह है ही, पार्टी तथा स्वयं के लिए भी समस्याएं पैदा कर दी हैं।
प्रश्न उठाया जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने क्यों इमरान को बधाई दे दी? प्रधानमंत्री का फोन कूटनीतिक शिष्टाचार था जिसका मकसद दुनिया को संदेश देना था कि इतने के बावजूद भारत संबंध सुधारने को तैयार है। यानी इसके बाद पहल पाकिस्तान को करनी है। फोन पर बधाई को सार्वजनिक करने का अर्थ ही है यह एक सोची-समझी रणनीति के तहत किया गया। सिद्धू की नासमझ हरकत से इसकी तुलना होनी ही नहीं चाहिए।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)