अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल के दाम ब़ढने और घरेलू स्तर पर सरकार द्वारा उत्पाद शुल्क में कटौती नहीं करने के कारण पिछले एक महीने में पेट्रोल दो रुपए २५ पैसे और डीजल दो रुपए ७३ पैसे महंगा हो चुका है। घरेलू बाजार में इस समय पेट्रोल लगभग ऐतिहासिक ऊंची कीमत पर उपलब्ध है तो डीजल की कीमतें भी एक नया इतिहास रचती दिखाई दे रही हैं। इस समय जिस कीमत पर पेट्रोल और डीजल मिल रहा है उस कीमत पर वह इससे पहले कभी नहीं मिले। कीमतें ब़ढने का सीधा दोष हम मोदी सरकार पर नहीं म़ढ सकते। काफी साल पहले कांग्रेस की अगुवाई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में यह तय हो गया था कि पेट्रोल की कीमतें अब अंतरराष्ट्रीय बाजार से जु़ड जाएंगी। जब वहां कच्चा तेल महंगा होगा, तो हमारे बाजार में पेट्रोल-डीजल स्वत: ही महंगा हो जाएगा। कहा यह भी गया था कि कच्चा तेल सस्ता मिलने पर घरेलू बाजार में दरें सस्ती हो जाएंगी। मौजूदा सरकार भी इस मामले में यूपीए की नीति पर चल रही है। केवल फर्क यह है कि इस सरकार ने साप्ताहिक या मासिक निर्धारण की बजाय पेट्रोल-डीजल की कीमत का अंतरराष्ट्रीय बाजार के हिसाब से दैनिक निर्धारण तय कर दिया। इसलिए अब हर रोज हमें पेट्रोल-डीजल की कीमतें देखनी प़डती हैं। वर्तमान में पेट्रोल दिल्ली में लगभग ७५ रुपए प्रति लीटर है। अलग-अलग स्थानों पर दरें अलग-अलग हैं और कहीं-कहीं पेट्रोल-डीजल की कीमतें दिल्ली के मुकाबले १-२ रुपए तक अधिक हैं। बेशक, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें अधिक हैं और निकट भविष्य में इसके कम होने की भी उम्मीद नहीं है। क्योंकि इस समय ओपेक देशों ने कच्चे तेल की आपूर्ति को घटा दिया है। इससे आने वाले दिनों में कीमतों के और ब़ढने की आशंका है। देश की आम जनता की आपत्ति यह है कि जब कच्चे तेल की कीमतें काफी कम थी तो इसका लाभ सरकार ने जनता को नहीं दिया। शुरू में कुछ दाम अवश्य गिरे लेकिन सरकार ने कर भार ब़ढाकर पेट्रोल-डीजल के घटते दामों पर अंकुश लगा दिया। यानी जनता को कोई फायदा नहीं दिया गया।लेकिन अब जब कच्चे तेल के दाम ब़ढ रहे हैं तो इसका घाटा घरेलू उपभोक्ताओं को झेलना प़ड रहा है। बीच में एक उम्मीद यह बनी थी कि अगर पेट्रोल जीएसटी के दायरे में आ जाता, तो इस पर लगने वाले तरह-तरह के टैक्स खत्म हो जाएंगे और फायदा उपभोक्ताओं को मिलने लगेगा। लेकिन केन्द्र और राज्यों की सरकारें अभी इसके लिए तैयार नहीं दिख रही हैं। इनको अपना राजस्व घटने की चिंता सता रही है। देश के आम उपभोक्तओं को यह चिंता सता रही है कि अगर दुनिया के बाजार में तेल की कीमतें इसी तरह ब़ढती रही तो तेल की मार और झेलनी प़डेगी। आवागमन महंगा होगा तो मालभा़डा भी ब़ढेगा तो आम चीजों के दाम भी निश्चित रूप से प्रभावित होंगे। उपभोक्ताओं के लिए यह एक ब़डी परेशानी साबित होगी। महंगाई की दर में दिख रही राहत खत्म होने में देर नहीं लगेगी।
तेल की मार
तेल की मार