भारतीय सेना ने जम्मू-कश्मीर आए दो दर्जन देशों के राजनयिकों के सामने पाकिस्तान का कच्चा चिट्ठा खोला है। इन राजनयिकों में मलेशिया के प्रतिनिधि भी शामिल थे जिनके पूर्व प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद कश्मीर को लेकर पाक के सुर में सुर मिलाया करते थे। उनके अलावा यूरोपीय संघ के सदस्य देश और ब्राजील के राजनयिक थे। भारतीय सेना ने इन्हें जानकारी दी कि किस तरह एलओसी के उस पार कुछ ही दूरी पर खूंखार आतंकियों के ट्रेनिंग कैंप पाक फौज और आईएसआई के आशीर्वाद से चल रहे हैं।
सेना ने इन्हें बताया है कि पाकिस्तानी फौज अपने आतंकवादियों की घुसपैठ कराने के लिए कैसे हथकंडे अपनाती है। इसके अलावा एलओसी के इस पार आतंकवादियों तक हथियार पहुंचाने के लिए ड्रोन तकनीक की मदद लेती है। पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर के मामले के अंतरराष्ट्रीयकरण में लगा रहता है। चाहे गृह नीति हो या आर्थिक नीति, विदेश नीति, हर जगह भारतविरोध और जम्मू-कश्मीर मामले को प्रमुखता से जगह दी जाती है। इसके लिए जमकर दुष्प्रचार किया जाता है। भारत की छवि बिगाड़ने के लिए आईएसआई ने पूरी ताकत झोंक रखी है। दूसरी ओर, दुष्प्रचार के जवाब में भारत के प्रयास बहुत कम दिखाई देते हैं।
इसका तात्पर्य यह नहीं है कि हमें पाक के खिलाफ दुष्प्रचार कर देना चाहिए। उसकी कोई जरूरत भी नहीं है। लेकिन हमें सच तो बताना चाहिए और बुलंद आवाज में बताना चाहिए। अक्सर देखने में आता है कि कश्मीर को लेकर अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में पाकिस्तान अपने प्रवासियों की भीड़ इकट्ठी कर लेता है और भारतीय दूतावासों के सामने बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन होते हैं। इस दौरान भारत को मानवाधिकारों के दुश्मन के तौर पर दुष्प्रचारित किया जाता है। जबकि भारत की ओर से पाक का असली, आतंकी चेहरा दुनिया को दिखाने में उतनी तत्परता नहीं दिखाई जाती। अगर हम दुनिया को सिर्फ सच बताने के लिए ही कुछ शक्ति और संसाधन लगाएं तो पाक घुटनों पर आ जाएगा।
इसके लिए विस्तृत रणनीति होनी चाहिए, जिसमें इस आतंकी मुल्क के आर्थिक हितों को चोट पहुंचाने के भरपूर प्रयास हों। निस्संदेह भारत के लोग बहुत मेहनती और काबिल हैं। वे अपनी योग्यता के बूते विदेशों में बड़ी-बड़ी कंपनियों में उच्चाधिकारी हैं। पाक का असल चेहरा बेनकाब करने के लिए प्रवासी भारतीयों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार प्रयास करने चाहिए, बशर्ते उन्हें कोई खतरा नहीं हो। पाकिस्तान पिछले सात दशकों से यह झूठ बेचता आ रहा है कि भारत ने कश्मीर हड़प लिया, जबकि हकीकत यह है कि जम्मू-कश्मीर के एक बड़े हिस्से पर पाकिस्तान का अवैध कब्जा है, जो भारतभूमि का अभिन्न हिस्सा है। इतना ही नहीं, पाकिस्तान ने उस पर कब्जा करने के बाद काफी हिस्सा चीन को तोहफे में दे दिया।
इस तरह कश्मीर के मामले में चीन की घुसपैठ है। इस पर न तो भारत में और न ही विदेश में कहीं चर्चा होती है। पाकिस्तान ने इतने शातिराना तरीके से इस मामले को उछाला है कि चीन का कहीं जिक्र नहीं होता। इस पर भी बदमाशी यह कि दुनिया के सामने खुद को पीड़ित, मासूम की तरह पेश कर देता है। पाकिस्तान अपना झूठ बेच रहा है, जबकि हम अपना सच सही ढंग से बता नहीं पाए। पहले से ही आर्थिक बदहाली का सामना कर रहा पाक कोरोना महामारी के बाद बुरी तरह पस्त हो चुका है। भारत को अपनी कूटनीति का पूरा उपयोग करते हुए उसे एफएटीएफ की ब्लैक लिस्ट में पहुंचाने का प्रयास करना चाहिए।
हालांकि, पाक इतने भर से सुधरने वाला नहीं है। इसके लिए उसे हर मोर्चे पर घेरते हुए उस बिंदु तक ले जाने की जरूरत है जहां उसे अपनी गलतियों का सच्चा पश्चाताप हो। भारतवासियों को सोशल मीडिया की ताकत का इस्तेमाल करते हुए चीन द्वारा अधिकृत कश्मीर का मुद्दा जोर-शोर से उठाना होगा। इसके साथ शिंजियांग में उइगर मुसलमानों के जनसंहार के मुद्दे को प्रचारित करना होगा। यह कोई मनगढ़ंत कहानी नहीं है। अब तो वैश्विक मीडिया में ऐसे उत्पीड़न कैंपों की तस्वीरें आ चुकी हैं जिससे चीन को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। घाटी में जो लोग बहकावे में आकर भारतीय सेना पर पथराव करते हैं, उन्हें समझना होगा कि वे तब तक ही सुरक्षित हैं, जब तक कि वहां भारतीय सेना है। आज कश्मीर के जिस भूभाग पर चीन का अवैध कब्जा है, वहां मानवाधिकार किस चिड़िया का नाम है, कोई नहीं जानता।