इन दिनों लालकिला चर्चा में है। आमतौर पर इस ऐतिहासिक इमारत का जिक्र 15 अगस्त को होता है जब इसकी प्राचीर से प्रधानमंत्री देशवासियों को संबोधित करते हैं। हम देश की उपलब्धियों को याद कर गौरवान्वित अनुभव करते हैं। तब यह हमारे लिए गर्व का क्षण होता है, लेकिन इस बार 26 जनवरी को जो हुआ, उसने हमें लज्जित किया।
आंदोलन के नाम पर नेताओं और पार्टियों के विरोध में नारेबाजी, प्रदर्शन लोकतंत्र में अनोखी बात नहीं है। संविधान इसकी भी मर्यादा निर्धारित करते हुए अनुमति देता है, पर जब कोई राष्ट्रीय ध्वज को हटाकर अपना झंडा लगा दे तो यह स्पष्ट रूप से उस देश और समस्त देशवासियों का अपमान है। इसे भारत बर्दाश्त नहीं करेगा।
इसे आंदोलन नहीं, खुराफात कहना चाहिए। देश में धार्मिक, राजनीतिक झंडे और भी हैं। उनका अपनी जगह सम्मान है। जहां देश की पहचान और संप्रभुता की बात आती है तो राष्ट्रीय ध्वज सर्वोच्च है। उसका स्थान कोई नहीं ले सकता। हमारे अधिकार, अभिव्यक्ति, विरोध प्रदर्शन की आजादी — ये सब जिस कानून से आते हैं, उसके लागू होने का प्रतीक है राष्ट्रीय ध्वज।
अगर कोई इसका अपमान करते हुए कोई भी झंडा लगाता है तो इससे यही संदेश जाता है कि उसकी इस देश के कानून और राष्ट्रीय प्रतीकों में कोई आस्था नहीं है। फिर यह बात भी कोई महत्व नहीं रखती है कि इसके पीछे किसान है या कोई और। आप बड़े, बहुत बड़े हो सकते हैं, लेकिन राष्ट्र से बड़े नहीं हो सकते।
दशकों पहले जब लक्ष्मी बाई, भगत सिंह, खुदीराम बोस, चंद्रशेखर आजाद जैसे असंख्य दिव्यात्माओं ने अपना जीवन राष्ट्र के लिए होम कर दिया था, तब उन्होंने यह नहीं सोचा था कि आजाद भारत में एक दिन ऐसा आएगा जब अपना संविधान लागू होने की बरसी पर किसानों के वेश में कुछ लोग अपने ही राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करेंगे। निश्चित रूप से यह दृश्य देखकर उन पुण्यात्माओं के हृदय स्वर्ग में भी अश्रु बहा रहे होंगे।
जब सोशल मीडिया में लालकिले से तिरंगे को हटाकर एक खास तरह का झंडा लगाने का वीडियो वायरल हुआ तो देशभर में लोगों ने इस पर आपत्ति जताई। अधिकार मांगने का यह कैसा तरीका है? राष्ट्रीय ध्वज हटाने का मतलब यही है कि हम संविधान को अलग कर अपनी मर्जी थोप रहे हैं। फिर किस मुंह से ये लोग खुद के लोकतांत्रिक, किसानहितैषी होने का दावा कर रहे हैं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी देशवासियों की भावना को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में अभिव्यक्ति दी। उन्होंने कहा कि दिल्ली में 26 जनवरी को तिरंगे का अपमान देख देश बहुत दुखी हुआ। वास्तव में लालकिले की इस घटना को कालचक्र की स्मृति हटा पाना आसान नहीं होगा। यह सोशल मीडिया का जमाना है। अब बात पलभर में जंगल की आग की तरह नहीं, तारों में बिजली की तरह फैल जाती है।
दुनिया में भारत की एक साख है, पहचान है। यह एक दिन में नहीं बनी है, इसके लिए कई पीढ़ियों का परिश्रम है। जब आप विदेशों में पूछते हैं कि भारत कैसा है? तो लोग हमारी संस्कृति, खानपान, पर्यटन स्थल, देवालय, अतिथि सत्कार, खेलों और फिल्मों का जिक्र करते हैं। इसके अलावा जो बात उन्हें बेहतरीन लगती है, वो है हमारा गणतंत्र, यहां की आज़ादी, जो कई देशों में आज भी मुमकिन नहीं है।
दुनियाभर में बहुत से लोगों का सपना होता है कि वे कुछ खास मौकों पर भारत घूमकर आएं। इनमें होली, दीपावली के अलावा 15 अगस्त और 26 जनवरी शामिल हैं। इस साल कोरोना महामारी के कारण विदेशी नागरिकों के लिए यह संभव नहीं हो पाया कि वे यहां गणतंत्र दिवस कार्यक्रम में शिरकत करें। जब उन्होंने सोशल मीडिया पर उग्र भीड़ द्वारा पुलिस के साथ हाथापाई, तोड़फोड़ और अव्यवस्था के माहौल में तिरंगे का यह अपमान देखा होगा तो क्या सोचा होगा? उससे भारत की कैसी छवि बनी होगी?
क्या भारत का किसान यह चाहेगा कि दुनिया में उसके देश की छवि धूमिल हो? क्या वह पसंद करेगा कि उसकी राष्ट्रीय राजधानी अराजक तत्वों के तांडव का अड्डा बन जाए? कभी नहीं, किसी सूरत में नहीं। भारत का जवान, किसान और हर वह व्यक्ति जिसके हृदय में उसके प्रति प्रेम है, वह न तो कदापि ऐसा करने की सोचेगा और न कभी करेगा।
इन सबके बीच अगर समय मिले तो यह जरूर देखें कि आपके दुश्मन देशों का मीडिया इस घटना को किस तरह भुनाने की कोशिश में लगा है। उनके टीवी स्टूडियो में कहकहे लगाए जा रहे हैं। वे कहते हैं कि यही मौका है जब हमें खालिस्तान की आग में घी डालना चाहिए। इस पर दूसरा कहता है कि हमें घी डालने की जरूरत ही नहीं, घी तो ये लोग खुद डालने को आमादा हैं। हमें बस एक चिंगारी दिखानी है, बाकी काम आगे से आगे अपने आप हो जाएगा।
ऐसे समय में हमें और सतर्क रहना होगा। जो बिल्ली छींका टूटने के इंतजार में बैठी है, उसे सिर्फ अपने भाग्य पर भरोसा है कि कब आप गलती करें और उसकी वर्षों की साध पूरी हो। याद रखें कि उसका भाग्य हमारे लिए सौभाग्य लेकर नहीं आएगा, इसलिए किसी को यह मौका नहीं दें और सुनिश्चित करें कि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति कभी नहीं हो।