बाइडन के लिए चुनौतियां अपार

बाइडन के लिए चुनौतियां अपार

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन। फोटो स्रोतः ट्विटर अकाउंट।

अमेरिका में हिंसा की आशंकाओं के बीच डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस से विदाई ली और जो बाइडन सत्तासीन हुए। यह संपूर्ण चुनाव प्रक्रिया कई बातों के लिए याद रखी जाएगी। कोरोना के साए में चुनाव प्रचार, पटरी से उतरी अमेरिकी अर्थव्यवस्था, वायरस संक्रमण के कारण मौतें और चीन के साथ तल्खी के बीच अमेरिकी मतदाताओं ने बाइडन पर भरोसा जताया एवं देश की बागडोर सौंपी। अमेरिका में पहली बार कोई महिला उपराष्ट्रपति बनी हैं। भारत के लिए यह गर्व का क्षण है क्योंकि कमला हैरिस के परिवार की जड़ें यहीं से हैं।

चुनाव नतीजे और सत्ता हस्तांतरण का दिन करीब आने के साथ उपद्रवियों द्वारा मचाया गया हिंसा का तांडव निश्चित रूप से अमेरिकी इतिहास का एक ऐसा अध्याय होगा जिसके न इतने भयानक रूप में सामने आने की कल्पना की गई थी और न इसे भुलाया जा सकता है।

बहरहाल अब सबकुछ शांत है तो महाशक्ति को इस पर आत्ममंथन करना चाहिए कि चूक कहां हुई। अमेरिका के लोकतंत्र की मिसाल दी जाती रही है लेकिन इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि दूसरों को लोकतंत्र, वैचारिक स्वतंत्रता, समानता और मानवाधिकार का उपदेश देने वाली महाशक्ति भी परफेक्ट नहीं है।

जो बाइडन के लिए आगे की राह आसान नहीं होगी। कोरोना से मार खाई अर्थव्यवस्था को दोबारा रफ्तार देने की जरूरत है। लोगों की नौकरियां बचाने और रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए बहुत काम करना होगा।

साथ ही चीन का बढ़ता असर पेंटागन के लिए सिरदर्द होगा। इसके लिए जरूरी है कि बेकाबू और मदमस्त ड्रैगन को आर्थिक दांव-पेच और कूटनीति से सीधे रास्ते पर लाया जाए।

दक्षिण चीन सागर में तो उसकी बदमाशियां जगजाहिर हैं। गलवान में उद्दंडता सबने देखी। उसके द्वारा पाकिस्तान जैसे आतंकप्रेमी देश को फंडिंग, आसपास के देशों के प्रति आक्रामक रवैया और हांगकांग में लोकतंत्र समर्थकों का उत्पीड़न चिंता का विषय है। बाइडन प्रशासन के लिए ये बिंदु शीर्ष प्राथमिकता में होने चाहिए।

करीब दो दशक पहले जब अमेरिका पर 9/11 हमला हुआ था, तो विश्व ने आतंकवाद का वह स्वरूप देखा जिसको लेकर पश्चिमी राष्ट्र अभी तक आंखें मूंदे हुए थे। हालांकि भारत लंबे समय से आतंकवाद से पीड़ित रहा है और विश्व को सावधान करता रहा है, पर तब अमेरिका उसकी गंभीरता को समझने का इच्छुक नहीं था।

जब आतंकवाद देहलीज तक आ पहुंचा तो हकीकत का अहसास हुआ और सैन्य कदम उठाने पड़े। अमेरिकी फौजें मुख्य साजिशकर्ता ओसामा बिन लादेन को अफगानिस्तान की पहाड़ियों में ढूंढ़ती रहीं, जबकि वह पाक फौज की छत्रछाया में पल रहा था। अमेरिका ने मई 2011 में उसे भी मार गिराया।

9/11 के भीषण हमले के करीब 19 साल बाद कोरोना महामारी ने अमेरिका में दस्तक दी और अब तक वहां चार लाख से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक नए तरह के आतंकवाद का रूप है जिसमें बिना कोई गोली चलाए लाखों जानें ले ली गईं, करोड़ों लोगों को घरों में कैद कर दिया, आर्थिक तबाही हुई सो अलग। अगर आंकड़ों की ही बात करें तो यह कई महीनों तक रोज 9/11 दोहराने जैसा है।

दूसरी ओर चीन को कोई पश्चाताप नहीं, आत्मग्लानि का कोई भाव नहीं। वह मौका देखकर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कब्जे की कोशिशों में जुटा है। इस परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए बाइडन प्रशासन को चीन और आतंकवाद की लगाम कसने के प्रयास मजबूती से करने होंगे। उसे भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के साथ आर्थिक व सैन्य संबंध और मजबूत करने होंगे। आतंकवाद को फंडिंग पर सख्ती बरतनी होगी, तभी अमेरिका सही मायनों में महान लोकतांत्रिक राष्ट्र होने का गौरव पुनः प्राप्त कर पाएगा। सिर्फ महानता के गीत गाते रहने और राजनीतिक विचारधारा की दृष्टि से खुद के ‘सही’ होने मात्र से कुछ नहीं होगा।

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