ठान लें तो कोई लक्ष्य असंभव नहीं

ठान लें तो कोई लक्ष्य असंभव नहीं

दक्षिण भारत राष्ट्रमत में 18 जनवरी, 2021 को प्रकाशित संपादकीय

चीन के वुहान से निकले कोरोना वायरस ने संसार में जो हाहाकार मचाया, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। भारत ने कोरोना के दुष्प्रभावों का सामना किया, कई जानें गईं, अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ, नौकरियां गईं। इस दौरान देशवासियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर लॉकडाउन का पालन कर दिखाया कि इस युद्ध को जीतने में हम सब एकजुट हैं।

अब भारत के वैज्ञानिकों ने कोरोना की वैक्सीन उपलब्ध कराकर ‘सर्वे सन्तु निरामया’ को मूर्त स्वरूप दिया है। इसके लिए उनकी जितनी प्रशंसा की जाए, कम है। आशा है कि अब महामारी की पकड़ ढीली होगी और धीरे-धीरे जनजीवन सामान्य होता जाएगा।

पिछले साल जब कोरोना महामारी का प्रकोप शुरू हुआ तो देश ने एक सख्त इम्तिहान का दौर देखा। अस्पताल कोरोना संक्रमितों से भर गए, मौतें हुईं, रोजगार घट गए और श्रमिकों का पलायन हुआ। वहीं, एक-दूसरे की मदद के लिए हाथ भी आगे बढ़े। आमजन से लेकर दिग्गज कारोबारियों ने यथासंभव योगदान दिया।

कोरोना वैक्सीन आने का यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि हम अति-उत्साह में आकर लापरवाही बरतना शुरू कर दें। अभी महामारी पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है। स्वच्छता, मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग समेत सभी सावधानियों का पालन करना जरूरी है।

साथ ही इस महामारी से पैदा ​हुए हालात से सबक लेना भी नहीं भूलें। टीकाकरण को आगे बढ़ाने के साथ अब अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए गांवों को आत्मनिर्भर बनाने पर ध्यान दिया जाए। ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योग-धंधों को बढ़ावा मिलेगा तो उनकी क्रयशक्ति बढ़ेगी। इससे ‘आत्मनिर्भर भारत’ ​के निर्माण को गति मिलेगी।

कोरोना की वैक्सीन बनाकर भारतीय वैज्ञानिकों ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि अगर हम कुछ ठान लें तो कोई लक्ष्य असंभव नहीं। यह संजीवनी प्रत्येक भारतवासी को तो मिले ही, हमारे मित्रराष्ट्रों को भी उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाए।

हमारा यह संकल्प होना चाहिए कि कोरोना के उन्मूलन के साथ देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाएंगे। इसके लिए ‘स्वदेशी’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ जैसी मुहिम से सभी परिचित हैं। अगर हम यह कर पाए तो 2021 में भारत कोरोना को परास्त कर निश्चित रूप से और शक्तिशाली होकर उभरेगा।

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