घाटे का सौदा

कंपनियां फसल पकने पर मामूली कीमत पर खरीद लेती हैं और भंडारगृहों में जमा कर ऑफ सीजन में ऊंची कीमतों पर बेचती हैं


हिमाचल प्रदेश के सेब देश-दुनिया में मशहूर हैं, लेकिन बाजार की बड़ी ताकतों के कारण सेब उत्पादकों का मुनाफा घट रहा है। चूंकि इन कंपनियों के पास पूंजी की कमी नहीं होती, इसलिए ये पैदावार पर बड़ी खरीद कर लेती हैं। इस तरह ये बाजार में सेब की कीमतों को प्रभावित करती हैं। जब पीक सीजन आता है तो ये अपने हस्तक्षेप से कीमत गिरा देती हैं और ऑफ सीजन आने पर जमकर मुनाफा बटोरती हैं। हर हालत में सेब उत्पादक तो पिसता ही है। उसके लिए खेती घाटे का सौदा साबित होती जा रही है।

कंपनियां फसल पकने पर मामूली कीमत पर खरीद लेती हैं और भंडारगृहों में जमा कर ऑफ सीजन में ऊंची कीमतों पर बेचती हैं। इससे एक ओर जहां ग्राहकों को ऊंची कीमत चुकानी होती है, वहीं उत्पादक खुद को ठगा हुआ महसूस करता है। इससे सेब की खेती में मुनाफा घटता जा रहा है। किसानों के लिए लागत निकालना मुश्किल होता जा रहा है। ये कंपनियां सेब बाजार पर एकछत्र राज करना चाहती हैं, जिन्हें किसानों के हितों से ज्यादा खुद के मुनाफे की फिक्र है। यह भी सच है कि सेब की पैकेजिंग के सामान पर जीएसटी लगने से लागत बढ़ी है। कीटनाशक पहले ही बहुत महंगे हैं। ऊपर से पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत बढ़ने से परिवहन महंगा हो गया है।

इन सबका असर लागत पर होता है। इनमें सेब तोड़ने, पैक करने जैसे खर्चे अलग हैं। किसानों द्वारा सरकार से यह मांग करना कि उन्हें उपज का उचित भुगतान हो, उचित ही है। अगर किसान खुशहाल नहीं होगा तो खेती खुशहाल नहीं होगी। भविष्य में इसका असर उत्पादन पर पड़ना तय है।

किसान मांग करते रहे हैं कि एमएसपी को पेटी के बजाय किलो के आधार पर निर्धारित किया जाए। इसके अलावा उपज के समय पर भुगतान, लोडिंग कीमतों के निर्धारण और नीलामी के जरिए बिक्री जैसे प्रावधान हों। किसानों की इन मांगों की ओर ध्यान दिया जाए और उनका उचित समाधान किया जाए। किसानों की कमाई बढ़ाने के लिए सरकार को हस्तक्षेप करना ही होगा। ऐसा नहीं होना चाहिए कि कंपनियों को मनमानी करने की पूरी छूट मिल जाए।

वास्तव में हिमाचल के ये किसान भी उन्हीं समस्याओं का सामना कर रहे हैं, जिनका देश के अन्य राज्यों के किसान कर रहे हैं। किसान को अपनी उपज का वाजिब दाम मिलना ही चाहिए। बड़ी कंपनियां अपनी पूंजी के दम पर बाजार में दबदबा रखती हैं और कीमतों को अपने हितों के अनुसार प्रभावित करती हैं। इस पर नियंत्रण होना चाहिए।

कृषि बाजार का सीधा संबंध आम उपभोक्ताओं से है। खानपान से जुड़ीं इन चीजों के दाम इतने हों कि उपभोक्ता खरीदने से न हिचके और किसान अपने उत्पादन पर न पछताए। जिस तरह हिमाचल के किसान यह मुद्दा उठा रहे हैं, उससे प्रतीत होता है कि यह आगामी विधानसभा चुनावों में काफी चर्चा में रहेगा। लिहाजा सरकार को इस ओर तुरंत ध्यान देकर किसानों के हितों की रक्षा करनी चाहिए।

About The Author: Dakshin Bharat