सोशल मीडिया पर डराने वाले संदेशों के बजाय सकारात्मक सामग्री पोस्ट करें तो यह भी बड़ी समाजसेवा
श्रीकांत पाराशर
दक्षिण भारत राष्ट्रमत
कोरोना की पहली लहर में बहुत सारे सामाजिक संगठन भोजन के हजारों पैकेट प्रतिदिन बना बना कर सड़कों, फुटपाथों पर जीवन बसर कर रहे निर्धनों व प्रवासी मजदूरों को बांट रहे थे। राशन सामग्री भी बहुत बांटी जा रही थी। सामाजिक कार्यकर्ता बड़ी संख्या में फ्रंटलाइन कोरोना योद्घा के रूप में जुटे हुए थे और ऐसा कार्य करते हुए यहां वहां दिखाई दे रहे थे। काम अभी भी हो रहा है परंतु कोरोना की इस दूसरी लहर में परिस्थितियां बदल गई हैं और उसी अनुसार आवश्यकता की प्राथमिकताएं भी बदल गई हैं।
ऐसा नहीं है कि इस बार का संकट छोटा है। सच्चाई यह है कि तुलनात्मक रूप से इस बार की परेशानी बड़ी है। इस बार कोरोना ने बड़ी संख्या में लोगों को लपेटे में लिया है और हर किसी व्यक्ति का कोई न कोई अपना, कोई मित्र, कोई रिश्तेदार इस कोरोना से या तो जूझ रहा है या जिंदगी की जंग हार चुका है। इसलिए सेवा करने के लिए सड़कों पर निकलने का वह उत्साह दिखाई नहीं दे रहा है जो पहली लहर के समय था।
दूसरी बात, इस बार के कोरोना की भयानकता के समाचारों के कारण डर भी बहुत है इसलिए परिवार के लोग अपने बेटे बेटियों को और बेटे बेटियां अपने अभिभावकों को घर से बाहर नहीं निकलने दे रहे हैं। तीसरी बात यह भी है कि इस बार कोरोना पीड़ितों की जरूरतें बदल गई हैं जिन्हें या तो अस्पतालों में बेड या आक्सीजन या फिर इंजेक्शन आदि की किल्लत का सामना करना पड़ा है। यह काम अलग ढंग का होने से हर कोई आगे नहीं आ सकता था।
जो संस्थाएं, जो सेवाभावी अस्पताल कुछ मदद कर सकते थे उन्होंने की। इस दौर में भी जिन्होंने पैसा बनाया, उन्होंने बनाया। जिन्होंने एटीट्यूड दिखाया, उन्होंने दिखाया। यह भी यथार्थ है कि तुलनात्मक रूप से यह भोजन पैकेट उपलब्ध कराने से ज्यादा खर्चीला काम है लेकिन फिर भी बहुत सारे संगठन तथा छोटे छोटे मित्रों के समूह यह कार्य कर रहे हैं। बड़े संगठनों ने कोरोना केयर सेंटर भी चलाए, यह कोई छोटी सेवा नहीं है।
सेवा करने का मन में जिनके भाव है, या विचार आता है तो वे किसी भी रूप में कम या ज्यादा, किसी न किसी की मदद करते ही हैं और जिनको करना कुछ नहीं है, वे केवल सोचते रहते हैं, प्लान बनाते रहते हैं। यहां वहां ज्ञान बांटते रहते हैं टाइम पास के लिए। सेवा करने के लिए जरूरी नहीं कि हजारों, लाखों रुपये हों तभी कुछ किया जा सकता है। आप जिस मोहल्ले में रहते हैं, जिस अपार्टमेंट में रहते हैं उसके आसपास कितने ही लोग होंगे जिनका रोजगार छिन चुका है, घर पर बैठे हैं और परिजनों के भोजन के लिए चिंतित हैं ऐसे परिवार या परिवारों के एक दो महीने के राशन का इंतजाम कर दीजिए।
हो सके तो उन्हें कुछ नकद दे दीजिए ताकि वे भोजन के अलावा अन्य आवश्यक सामान का इंतजाम कर सकें। इस बार दुकानों में काम करने वालों की भी नौकरियां चली गई हैं। पिछली बार तो जैसे तैसे दुकानदारों ने कर्मचारियों का बोझ अपने ऊपर ले लिया था परंतु अब वे खुद मुसीबत में हैं, आय है नहीं, संकट कब तक चलेगा पता नहीं तो व्यापारी भी क्या करें। ऐसे में उन्होंने कुछ कर्मचारी कम कर लिए। अचानक बेरोजगार हुए ऐसे लोगों की मदद की जा सकती है। यह दिखने में छोटी छोटी सहायता है परंतु महत्वपूर्ण है।
अगर आप कुछ ज्यादा करने की स्थिति में हैं तो आक्सीजन कंसंट्रेटर दान दे सकते हैं। यदि दान न दें तो कुछ मित्र मिलकर तीन चार कंसंट्रेटर खरीदकर आक्सीजन बैंक के रूप में जरूरतमंदों को जरूरत अनुसार दे सकते हैं तथा जरूरत पूरी होने पर वापस ले सकते हैं। किसी भी अपनी पसंद की संस्था को भी अपनी इच्छा अनुसार राशि का सहयोग कर सकते हैं।
कोरोना काल में हौसला भी दवा का काम करता है। अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर सकारात्मक विचारों वाली सामग्री डालें तो उसका जन सामान्य में अच्छा असर पड़ता है। पहले से भयभीत लोगों का इससे हौसला मजबूत होता है। बहुत से लोग यहां वहां से फोर्वार्डेड मैसेजेस को बिना पुख्ता जानकारी के, आगे फोरवार्ड करते रहते हैं। ऐसी सामग्री सुबह से ही गुड मोर्निंग वाले मैसेजेस के साथ ही शुरू हो जाती है। इस प्रकार की अनूठी और हानिकारक सेवा करने और इसका प्रचार करने से बचना भी एक समाजसेवा है। आइए संकल्प लें कि आज से ही हम भयभीत करने वाली मनहूस सामग्री अपने फेसबुक पेज और वाट्सएप के जरिए आगे नहीं बढाएंगे।