फरीदाबाद के निकिता तोमर हत्याकांड में अदालत ने तौसीफ और रेहान को दोषी करार देकर ऐसे तत्वों को कठोर संदेश दिया है जो छल-कपट से पहचान छिपाकर मासूम लड़कियों को प्रेमजाल में फंसाने के कुप्रयास करते हैं। जब कभी मामला अपने पक्ष में नहीं जाता तो हत्या कर देने से गुरेज नहीं करते। अभी अदालत ने सजा नहीं सुनाई है, लेकिन दोषियों ने जैसा अपराध किया है, उसके आधार पर उम्मीद की जानी चाहिए कि कठोर दंड मिले। 26 मार्च को जब तौसीफ और रेहान की सजा पर बहस होगी तो देश ऐसे फैसले का इंतजार कर रहा होगा जिससे प्रेम के नाम पर धोखाधड़ी करने और मौत के घाट उतार देने वालों की रूह कांप जाए।
आखिर निकिता तोमर का क्या कसूर था? वह मेधावी थी। विनम्र थी। सरल थी। तौसीफ उससे इकतरफा प्रेम करने लगा था। बात इतनी ही नहीं थी। उसने निकिता से दोस्ती करने के लिए फर्जी नाम ‘अंकित’ अपनाया। उसे शक था कि अगर असली नाम से परिचय बढ़ाएगा तो ‘बात नहीं बनेगी’। इसलिए नकली नाम का स्वांग रचा। यह ढोंग ज्यादा दिनों तक नहीं चला। पोल खुलने पर तौसीफ भड़क उठा और एक दिन उसे मौत के घाट उतार दिया।
सवाल है: आखिर कितनी निकिताएं हवस के भूखे ढोंगी भेड़ियों का शिकार बनती रहेंगी? देश की हर बेटी, चाहे उसका धर्म कुछ भी हो, यह अधिकार रखती है कि वह आत्मसम्मान के साथ जिए, उसके साथ गरिमापूर्ण व्यवहार हो। अगर प्रेम के नाम पर कोई ऐसा घृणित व्यवहार करे, तो कठोरतम् दंड दिया जाए। क्या बेटियां कोई खिलौना हैं कि झूठ, फरेब के नाम पर उनका ‘शिकार’ करने वाले बेखौफ घूम रहे हों और देश में ठोस चर्चा ही नहीं है? ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, लेकिन पार्टियां वोटबैंक की राजनीति के कारण बगलें झांकने लगती हैं और कठोर कदम नहीं उठाना चाहतीं।
मई 2019 में मध्य प्रदेश में एक हिंदू युवती का मामला बहुत चर्चा में रहा था। उसके पैरों से उस वक्त जमीन खिसक गई जब उसे मालूम हुआ कि जिस शख्स को वह अपना पति समझकर उसकी गृहस्थी संवारने में जुटी है, वह ‘कोई और’ है। वह युवक इसी तरीके से एक और हिंदू युवती के जीवन से खिलवाड़ कर चुका था। ऐसे अधिकांश मामलों की शुरुआत प्रेम प्रसंग से होती है। अब वर्तमान पीढ़ी के बारे में क्या कहा जाए! वह समझती है कि जीवन बॉलीवुड की किसी हसीन फिल्म की तरह है जहां वायलिन पर मधुर धुन बजते ही ठंडी हवाएं चलने लगेंगी और फूलों की वर्षा होने लगेगी। वे क्षणिक आकर्षण को ही प्रेम समझकर उस शख्स के बारे में विश्वस्त जानकारी हासिल नहीं करते। फिर जब मामले की असलियत सामने आती है तो ज़िंदगी के अरमान ताश के महल की तरह ढहते नजर आते हैं।
ऐसे मामलों में ‘शिकारी’ का जब एक रिश्ते से मन भर जाता है, तो वह दूसरे की तलाश में अन्यत्र चला जाता है। देश में ऐसे अनगिनत मामले सामने आने के बाद हमें स्वीकार करना होगा कि यह एक ज्वलंत समस्या है। परिवारों में संवादहीनता भी इसकी एक वजह है। कामकाज और मोबाइल में खोए रहने के बाद परिजन आपस में संवाद के लिए समय ही नहीं निकाल पा रहे। जरूरी है कि हम आभासी दुनिया से बाहर निकलकर वास्तविकता का सामना करें। बड़े-बुजुर्ग नई पीढ़ी के मन को टटोलें। उन्हें बताएं कि सबकुछ गूगल पर ही नहीं मिलता। अपने अनुभव उनके साथ बांटें। अपनी सख्त छवि से बाहर निकलें और मार्गदर्शन करें। खासतौर से बेटियों को आत्मरक्षा के गुर अवश्य सीखने चाहिए। याद रखो, तुम लक्ष्मी हो, तो दुर्गा भी हो।