संपादकीय: 100 करोड़ का सवाल

संपादकीय: 100 करोड़ का सवाल

दक्षिण भारत राष्ट्रमत में प्रकाशित संपादकीय

महागठबंधन के पायों पर टिकी ठाकरे सरकार के लिए अनिल देशमुख भूचाल बनकर आए हैं। सरकार टिकी रहेगी या धराशायी होगी, अभी कहना जल्दबाजी है। इसमें कोई संदेह नहीं रहा कि उद्योगपति मुकेश अंबानी के आवास के बाहर विस्फोटक लदे वाहन मामले ने कई चेहरों पर सवालिया निशान लगा दिए हैं। अभी एनआईए मामले की जांच कर रही है और जिस तरह से नए खुलासे हो रहे हैं, उसके आधार पर यह उम्मीद की जा सकती है कि भविष्य में कोई बड़ा भंडाफोड़ हो सकता है। यह भी संभव है कि वाजे कांड के लपेटे में और लोग आ जाएं।

एंटीलिया के सामने विस्फोट भरा वाहन खड़ा करने वालों को सपने में भी यह अंदाजा नहीं रहा होगा कि यह मामला एनआईए के पाले में जा गिरेगा। अगर अंदाजा होता तो ऐसा कदापि नहीं करते। अब एक-एक कर परतें खुलती जा रही हैं तो सत्ताधीशों के माथे पर पसीने नजर आ रहे हैं।

चर्चा यह भी है कि अनिल देशमुख ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की कुर्सी के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है। जिन परमबीर सिंह ने 100 करोड़ रुपए हर माह वसूली के आदेश दिए जाने का आरोप लगाया है, उसे यूं ही नहीं नकारा जा सकता। परमबीर मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त रहे हैं। अब वाजे कांड की आंच ‘बड़ों’ तक पहुंचने लगी तो हटा दिए गए। एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी द्वारा राज्य के गृह मंत्री पर इतने गंभीर आरोपों को यूं ही खारिज नहीं किया जा सकता।

निश्चित रूप से उन्हें इस बात का आभास रहा होगा कि गृह मंत्री पर ऐसे आरोप लगाए जाने के बाद उन्हें किसका कोप भाजन बनना पड़ सकता है। परमबीर चौतरफा घिर गए हैं। सचिन वाजे की गिरफ्तारी, एनआईए जांच की रफ्तार से खुलासों के मद्देनजर उन्होंने आखिरकार अनिल देशमुख पर ही ‘प्रहार’ कर खुद को महफूज और पाक-साफ बताने का दांव चलना बेहतर समझा। इस बात की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए कि परमबीर के दावों में कितना दम है। अगर एजेंसियों को देशमुख की भूमिका पर थोड़ा भी संदेह हो तो उन्हें जांच के दायरे में लाना चाहिए।

बेहतर होता कि यह आरोप लगने के बाद इसकी गंभीरता को देखते हुए अनिल देशमुख स्वयं पद से हटने की घोषणा करते और जांच का परिणाम आने तक प्रतीक्षा करते। इससे उनके दावों को बल मिलता। साथ ही जनता में संदेश जाता कि उद्धवे ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ईमानदार की राजनीति से संचालित हो रही है। राकांपा अध्यक्ष शरद पवार ने भी माना है कि अनिल देशमुख के खिलाफ परमबीर सिंह के आरोप गंभीर हैं और इनकी गहन जांच की जरूरत है।

वैसे पुलिस द्वारा वसूली किए जाने की घटनाएं नई नहीं हैं। जनता जानती है कि पुलिस विभाग में भ्रष्टाचार है। आए दिन भ्रष्ट अधिकारी रिश्वत लेते पकड़े जाते हैं। फिर भी कोई खौफ नहीं, कोई शर्म नहीं। जब एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी यह कहता है कि उसके गृह मंत्री ने पुलिस को बार और होटलों से हर महीने 100 करोड़ रुपए वसूली का लक्ष्य दे रखा है, तो बड़ा सवाल यह भी है कि ‘क्या मुख्यमंत्री को कुछ नहीं मालूम?’ अगर आरोप निराधार हैं तो सवाल यह पैदा होता है कि ठाकरे के राज में उनके अफसर उनके ही मंत्री के खिलाफ इतना बड़ा आरोप कैसे लगा सकते हैं?

अगर आरोपों में थोड़ी भी सच्चाई है तो सवाल यह है कि ठाकरे के राज में क्या हो रहा है? अब इस मामले में उन चेहरों को बेनकाब किया जाना चाहिए जो परदे के पीछे से भूमिका निभा रहे हैं। सवाल सिर्फ 100 करोड़ का नहीं, जवाबदेही का है। सरकार पूर्ण बहुमत की हो या गठबंधन की, जवाबदेही से नहीं बच सकती।

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