ट्विटर के अधिग्रहण के बाद एलन मस्क ने अपने कर्मचारियों के प्रति जो रवैया अपनाया है, उसे प्रशंसनीय नहीं कहा जा सकता। भारतवंशी पूर्व सीईओ पराग अग्रवाल समेत विभिन्न विभागों में छंटनी से कर्मचारियों में खौफ है। एकसाथ इतने लोगों को निकालने से उनके सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है। मस्क ने यह भी साफ कर दिया है कि अगर सत्यापित यानी नीले टिक के साथ अकाउंट चाहिए तो कुछ खर्च करने के लिए तैयार रहें। हर महीने करीब आठ डॉलर दें।
उपयोगकर्ता ट्विटर पर मस्क की आलोचना कर रहे हैं, लेकिन उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं है। कुल मिलाकर मस्क का रवैया एक निरंकुश पूंजीपति का प्रतीत होता है, जिसका साफ कहना है कि अगर मेरे यहां नौकरी करोगे या मेरी कंपनी की सेवा लोगे तो सिर्फ मेरी शर्तें चलेंगी। निस्संदेह नीले टिक युक्त ऐसे कई अकाउंट हैं, जिनके लिए आठ डॉलर कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन ऐसे हर अकाउंट का उपयोगकर्ता यह राशि चुकाने में सक्षम हो, जरूरी नहीं है।
भारत समेत कई देशों में गांव-देहात स्तर पर काम कर रहे लोगों, स्थानीय कलाकारों के लिए यह राशि काफी ज्यादा है। कुछ लोगों को नीला टिक देना और बाकी को नहीं देना, यह नीति ही भेदभाव पर आधारित है। क्यों नहीं ऐसे हर उस उपयोगकर्ता को सत्यापित किया जाए, जिसका अकाउंट सही है? इससे फर्जी अकाउंट्स पर भी लगाम लगाना आसान हो जाएगा। फेक न्यूज की समस्या से निपटा जा सकेगा। लोग सोशल मीडिया का दुरुपयोग करने से बचेंगे। ऑनलाइन धोखाधड़ी, वायरस युक्त लिंक आदि पर भी काफी हद तक पाबंदी लगेगी। ऑनलाइन अपराधियों को पकड़ना आसान हो जाएगा।
मस्क ट्विटर में जो बदलाव कर रहे हैं, भारत में कई उपयोगकर्ता उसका भारी विरोध कर रहे हैं। कुछ लोग यह प्लेटफॉर्म छोड़ देने की तैयारी में हैं। हमें इस पर जरूर विचार करना चाहिए कि अगर भविष्य में इस श्रेणी की अन्य कंपनियां अपने नियमों को कड़ा करने के साथ शुल्क लेना शुरू कर देंगी तो हमारा रुख क्या होगा? आज सर्च इंजन से लेकर ईमेल, मैसेजिंग ऐप, सोशल मीडिया आदि की सेवाएं ये ही कंपनियां दे रही हैं। निस्संदेह अनेक भारतीय इनमें काम कर रहे हैं, वे उच्च पदों पर भी हैं, लेकिन हमारे पास ऐसी कितनी कंपनियां हैं, जिनके लिए कह सकें कि ये भारतीय प्रॉडक्ट हैं?
जब यूक्रेन पर रूस ने धावा बोला तो पश्चिमी देशों की कंपनियों ने उसके घुटने टिकाने के लिए डिजिटल पेमेंट को अवरुद्ध कर दिया था। इससे पता चलता है कि हमारा आत्मनिर्भर होना कितना जरूरी है। समय की आवश्यकता है कि हमारे पास अपना सर्च इंजन, अपना मैसेजिंग ऐप अनिवार्यत: हो। इसके अलावा मजबूत स्थिति वाले, तेज़ सोशल मीडिया ऐप होने चाहिएं। भारत में आईटी के दिग्गज हैं। प्रख्यात उद्योगपति हैं। विशाल जनसंख्या है। अगर हम चाहें तो यह सब बना सकते हैं और चला भी सकते हैं।
इस मामले में चीन का उदाहरण दिया जा सकता है, जिसके पास सर्च इंजन से लेकर ईमेल, मैसेजिंग ऐप, सोशल मीडिया तक सबकुछ खुद का है। वह अपना डेटा किसी के पास नहीं जाने देता, जबकि इधर आए दिन डेटा लीक की खबरें आती रहती हैं। हमें इंटरनेट का भारतीयकरण करना होगा। अगर कंपनी भारतीय हो और वह स्वदेशीकरण को बढ़ावा देते हुए अच्छी सेवाएं दे तो लोग शुल्क देने के लिए खुशी से तैयार हो जाएंगे।