चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अधिवेशन में शीर्ष नेताओं और सैन्य अधिकारियों के बीच गलवान संघर्ष का वीडियो दिखाया जाना बताता है कि भारतीय सेना के वीरों ने बिल्कुल सही जगह चोट की थी। देश को चीनियों से दो-दो हाथ करने वाले अपने उन बहादुर बेटों पर गर्व है।
हमें इस बात का दुख है कि वे वीरगति को प्राप्त हुए या घायल हुए, लेकिन उन्होंने अपना कर्तव्य पूरी निष्ठा से निभाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कह चुके हैं कि भारत के वे सैनिक मारते-मारते मरे हैं। जून 2020 के मध्य का यह वीडियो चीन को सबक है कि अगर वह भविष्य में फिर दुस्साहस करेगा, तो अगली बार इससे ज्यादा ताकत के साथ जवाब मिलेगा।
चीन को शुक्र मनाना चाहिए कि भारतीय सैनिक सिर्फ समझाइश के लिए गए थे। किसी किस्म के टकाव का उनका कोई इरादा नहीं था। चीनी सैनिकों ने उनके साथ अभद्रता की और धोखे से हमला किया। भारतीय सैनिकों ने उस धोखे का जवाब इस शिद्दत से दिया कि आज भी चीन पीएलए के रेजिमेंट कमांडर की फाबाओ को ‘पीड़ित’ की तरह पेश करता रहता है। वह उस दिन भारतीय सैनिकों के हत्थे चढ़ गया था।
वास्तव में चीन को यह बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी कि भारत की ओर से इतना कठोर जवाब आएगा। उसने सोचा था कि जिस तरह भूटान, नेपाल, जापान, हांगकांग और ताइवान को ‘लाल आंखें’ दिखाकर डराता रहता है, वही फॉर्मूला भारत पर काम कर जाएगा, लेकिन यहां उसका सामना भारतीय सैनिकों से हुआ, जिन्होंने कीलदार डंडों से प्रहार करने वाले चीनियों पर काबू पाया और उन्हें उचित शिक्षा दी। इससे पीएलए का नकली आभामंडल टूट गया कि वह अजेय है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भी छवि धूमिल हुई।
एक ओर जहां भारत ने वीरगति प्राप्त अपने जवानों को सम्मानपूर्वक विदाई दी, घायल जवानों के शौर्य को सराहा, प्रधानमंत्री ने अस्पताल जाकर उनके हालचाल पूछे, दूसरी ओर चीन में सन्नाटा छाया रहा। उसके लिए यह वज्रपात की तरह था। उसकी सरकार ने महीनों तक इस घटना को दबाए रखा, हताहत और घायल जवानों की सराहना तो दूर, पीएलए उनसे पीछा छुड़ाती दिखी। उसे भय था कि अगर वास्तविकता सामने आ गई तो देश में विद्रोह छिड़ जाएगा।
हमें याद रखना चाहिए कि यह वो समय था, जब कोरोना वायरस का तेजी से प्रसार हो रहा था। दुनियाभर में गहरी चिंता का वातावरण था कि इस महामारी से उबर सकेंगे या नहीं। उस समय चीन की मलिन दृष्टि हमारी जमीनों पर थी। यह दुष्टता और हृदयहीनता की पराकाष्ठा है। चीन ने इरादतन या गै़र-इरादतन ‘कोविड-19’ वायरस दुनिया को दिया है, जिसके लिए उसे कठघरे में खड़ा करना चाहिए।
चीनी राष्ट्रपति ने एक बार भी इसके लिए माफी नहीं मांगी और वे जिन शब्दों का उपयोग कर रहे हैं, उनसे स्पष्ट होता है कि उन्हें इसका कोई पश्चाताप नहीं है। वे हांगकांग पर कब्जा जताते हैं और ताइवान को अपना बताते हैं। विश्व समुदाय उनकी धमकियों को मौन होकर सुन रहा है। चीन इसे क्षेत्रीय अखंडता का मुद्दा करार देता है, जो अत्यंत हास्यास्पद है।
शी जिनपिंग का यह कहना कि ‘ताइवान पर बल प्रयोग का अधिकार चीन कभी नहीं छोड़ेगा’, किसी राजनेता की भाषा नहीं लगती। प्रायः ऐसी भाषा का उपयोग अपराधी गैंग के सरगना किसी को धमकी देने के लिए करते हैं। शी जिनपिंग ने अपने भाषण में कई देशों को ‘ललकारा’, लेकिन वे यह बताने में विफल रहे कि कोरोना वायरस के पुनः प्रसार के बाद कई शहर, जो अब ‘कैदखाने’ बन गए हैं और जनता सख्त लॉकडाउन से आजिज आ गई है, का समाधान क्या होगा? लोगों को राहत कैसे मिलेगी?
हफ्तों घरों में बंद रहने के बाद चीनियों में आक्रोश पैदा होता जा रहा है। बहुत संभव है कि वह एक दिन धमाके के तौर पर सामने आए। तब हालात को संभालना न तो कम्युनिस्ट पार्टी के बूते की बात होगी और न पीएलए ही कुछ कर पाएगी। और रहे शी जिनपिंग, तो दुनिया ने कई तानाशाहों का अंत देखा है, जो सुखद नहीं होता।