सकारात्मक बदलाव लाएं

समय की बर्बादी, सेहत का नुकसान और घर-परिवार से दूरी जैसे दुष्प्रभाव उन लोगों में देखे जा रहे हैं, जो काफी समय सोशल मीडिया को देते हैं


पिछले दशक में जब फेसबुक, ट्विटर, वॉट्सऐप आदि सोशल मीडिया मंच लोकप्रियता की सीढ़ियां चढ़ते जा रहे थे तो माना जा रहा था कि ये कालांतर में समाज में बड़ा सकारात्मक बदलाव लाएंगे। कुछ बदलाव आए भी, लेकिन आज देखा जा रहा है कि सोशल मीडिया के नुकसान भी बहुत ज्यादा हैं। समय की बर्बादी, सेहत का नुकसान और घर-परिवार से दूरी जैसे दुष्प्रभाव उन लोगों में देखे जा रहे हैं, जो काफी समय सोशल मीडिया को देते हैं। उन्हें दुनियाभर की जानकारी होती है, लेकिन यह मालूम नहीं होता कि पड़ोस में किसकी तबीयत खराब है। कई बच्चों की पढ़ाई सोशल मीडिया के कारण चौपट हो गई, तो कहीं रिश्तों में खटास आने के बाद तलाक के मुकदमे चल रहे हैं। 

वास्तव में इसमें दोष सोशल मीडिया से ज्यादा उन उपयोगकर्ताओं का है, जो यहां बहुत ज्यादा समय बिताते हैं। न्यूजीलैंड में एक अध्ययन से जो आंकड़े सामने आए हैं, उन पर भारत में चर्चा जरूर होनी चाहिए। इसमें चार वर्षों में 7,000 से अधिक वयस्कों में सोशल मीडिया के उपयोग और सेहत पर इसके असर की जांच की तो पता चला कि इसका काफी असर होता है। 

इसका अत्यधिक उपयोग नकारात्मक भावनाओं को बढ़ाता है। अक्सर यह देखने में आता है कि लोग कामकाज में व्यस्त हैं, अचानक कोई पोस्ट देख ली तो ध्यान बंट गया, फिर काम में उतनी एकाग्रता नहीं रही। सोशल मीडिया हमारी सोच को भी प्रभावित करता है। एक ही तरह की पोस्ट देखते रहने से व्यक्ति पर उसका प्रभाव जरूर होता है।

सोशल मीडिया पर लोग स्क्रॉल करते रहते हैं। एक पोस्ट जाती है, दूसरी आ जाती है। ऐसे में पता ही नहीं चलता कि कितना समय इसकी भेंट चढ़ गया। उक्त शोध इस पर भी मोहर लगाता है कि सोशल मीडिया का बिना मकसद उपयोग सेहत को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। साल 2015 में 1,000 से ज्यादा प्रतिभागियों ने एक सप्ताह के लिए फेसबुक से दूरी बनाई तो उन्होंने महसूस किया कि उनके जीवन की संतुष्टि में बढ़ोतरी हुई है। 

फेसबुक पर भारत और चीन के वीडियो का तुलनात्मक रूप से अध्ययन करें तो पाएंगे कि चीन समर्थक पेजों पर जो वीडियो/चित्र आदि डाले जाते हैं, उनमें यूं दर्शाया जाता है कि वह देश शिक्षा, खेती, चिकित्सा, परिवहन, पर्यटन में रोज नए कीर्तिमान रच रहा है ... गांव-गांव से गरीबी खत्म हो रही है ... स्कूल साफ-सुथरे नजर आ रहे हैं ... विदेशी निवेश खूब आ रहा है आदि।

दूसरी ओर भारतीय पेजों पर ऐसी सामग्री तुलनात्मक रूप से बहुत कम मिलती है। आमतौर पर सांप्रदायिक बहस, भड़काऊ बयानबाजी, जल्द पैसा कमाने के तरीके या ऐसी सामग्री ज्यादा ध्यान आकर्षित करती है, जिसमें समय ज्यादा लगे और उपयोगिता शून्य हो। जब ये चीजें अपने नागरिकों और विदेशियों तक जाती हैं तो उसका परिणाम क्या होता है? इस पर विचार करना चाहिए। 

हमें भी चाहिए कि अपने देश में जो सकारात्मक गतिविधियां हो रही हैं, उनका प्रचार-प्रसार करें। शिक्षा, खेती, चिकित्सा, परिवहन, पर्यटन, ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सशक्तीकरण से संबंधित गतिविधियों को बढ़ावा मिले। देश को सोशल मीडिया का लाभ मिलना चाहिए। इस बात पर विचार किया जाना चाहिए कि सोशल मीडिया ग्रामीण क्षेत्रों में किस तरह शिक्षा में सहायक हो सकता है? इससे किसानों की आय कैसे बढ़ सकती है? जनता को सरल शब्दों में सरकारी योजनाओं की जानकारी कैसे मिल सकती है? सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाए बिना लोगों के काम कैसे हो सकते हैं? 

अगर इन मुद्दों को ध्यान में रखते हुए सोशल मीडिया का संतुलित उपयोग किया जाए तो यह देश में क्रांतिकारी बदलाव लाने में सक्षम है। वास्तव में यह एक ऐसी आग है, जिसका विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग घरों में उजाला कर सकता है, तो अनियंत्रित, अविवेकपूर्ण, अमर्यादित ढंग से उपयोग घरों को जला सकता है। अब फैसला हमें करना होगा।

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