इटली में धुर दक्षिणपंथी पार्टी की जीत इस देश के लिए कई दृष्टि से विचारणीय है। आमतौर पर यूरोपीय देशों की तरह इटली का रुख भी काफी उदारवादी रहा है, जहां दुनियाभर से लोग रोज़गार के लिए जाते हैं। उनमें से कई वहां की नागरिकता ले चुके हैं। हाल के वर्षों में अफगानिस्तान, इराक, सीरिया जैसे देशों में हालात ज़्यादा बिगड़ने के बाद बहुत लोगों ने इटली में पनाह ली है।
ऐतिहासिक इमारतों और कलाओं के केंद्र इस सुंदर देश में अब असंतोष भड़क रहा है, जिसे भुनाने में जियोर्जिया मेलोनी की पार्टी ब्रदर्स ऑफ़ इटली सफल रही है। स्थानीय मीडिया इसे ‘ऊना विटोरिया स्टोरिका’ यानी ऐतिहासिक जीत बता रहा है, जिससे इन्कार नहीं किया जा सकता। इटली में एग्जिट पोल ने पहले ही बता दिया था कि हवा का रुख किस ओर है। ब्रदर्स ऑफ़ इटली रातोंरात खड़ी नहीं हुई थी। इसके पीछे वर्षों पुरानी जनभावना है, जिसे समझने में इटली के हुक्मरान कहीं न कहीं चूके हैं।
हालांकि यह पार्टी सिर्फ चार वर्षों में दक्षिणपंथी राजनीति की बड़ी खिलाड़ी बन गई, जिसमें मेलोनी के तीखे भाषणों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही इटली के इतिहास में पहली बार कई चीजें होने जा रही हैं, जिनके परिणाम को लेकर लोगों में आशंकाएं भी हैं। इटली का नाम सुनते ही द्वितीय विश्वयुद्ध और मुसोलिनी का चेहरा जरूर याद आता है।
मेलोनी की सरकार उस ऐतिहासिक घटना के बाद इटली में पहली धुर दक्षिणपंथी सरकार होगी, जिसके तेवर यूरोपीय उदारवाद का अनुसरण करने वाले कई देशों को असहज कर सकते हैं। मेलोनी पूर्व तानाशाह मुसोलिनी की प्रशंसक हैं, जिसे वे 1996 में एक टीवी साक्षात्कार में ‘अच्छा राजनेता’ बता चुकी हैं। उनके अनुसार, ‘मुसोलिनी ने जो कुछ किया, वह इटली के लिए किया’ - स्वीकार्य नहीं है। जो चेहरे दुनिया को व्यापक युद्ध की ओर लेकर गए, उनकी प्रशंसा का स्वागत नहीं किया जा सकता।
अलबत्ता इटली के उन राजनेताओं, कार्यकर्ताओं को मंथन जरूर करना चाहिए कि उन्हें जनता ने क्यों नकार दिया। ब्रदर्स ऑफ इटली के गठबंधन ने 43.8 वोट लेकर राजनीति के पंडितों को चौंका दिया। अकेले इस पार्टी को ही 26 प्रतिशत वोट मिल गए, जो बताता है कि अब इटली का मिजाज बदल गया है। गठबंधन में अहम सहयोगी द लीगा 8.8 प्रतिशत वोट बटोर कर यह बताने में सफल रही है कि इटली की आम जनता का वामपंथ से मोह भंग हो रहा है।
वामपंथी गठबंधन की अगुआ डेमोक्रेटिक पार्टी के लचर प्रदर्शन ने इसके मतदाताओं को निराश ही किया। उसने मतगणना के साथ ही हार मानकर साबित कर दिया कि उसे अपनी हार का पहले से अंदेशा था। इटली के इस जनादेश को सिर्फ यहीं तक सीमित रखकर नहीं देखना चाहिए। यह बयार अन्य देशों में भी बह सकती है। आज यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था पस्त हैं। उन्हें कोरोना ने गंभीर रूप से प्रभावित किया है। रोजगार के सिकुड़ते अवसरों और प्रवासियों के आगमन ने स्थानीय लोगों के मन में कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
इटली का आम नागरिक दबी जुबान से यह स्वीकार करता है कि वामपंथ के अतिउदारवाद ने उनके देश की मूल संस्कृति को नुकसान पहुंचाया है। अतिउदारवाद के नाम पर अफगानिस्तान, इराक, सीरिया जैसे देशों से हजारों की संख्या में लोग यूरोपीय देशों में फैल गए, जिनमें इटली भी एक है। एक भिन्न परिवेश से आए लोगों का उनके साथ तालमेल नहीं बैठ रहा है, जिससे टकराव की घटनाएं भी बढ़ी हैं।
इन सबने ब्रदर्स ऑफ इटली के गठबंधन के लिए उर्वरा भूमि तैयार कर दी, जिसका परिणाम सामने है। इस गठबंधन को ‘लोकलुभावन’ नीतियों का पैरोकार भी कहा जाता है। अब ब्रदर्स ऑफ़ इटली के राजनेताओं को चाहिए कि वे अपनी संस्कृति का संवर्धन अवश्य करें, उसके साथ समन्वय और सद्भाव का रास्ता भी अपनाएं।