कांग्रेस से ‘आज़ाद’ हुए ग़ुलाम नबी आज़ाद ने अपनी पार्टी की स्थापना कर बता दिया है कि वे जम्मू-कश्मीर की राजनीति में मुकाबले के लिए तैयार हैं। उनकी ‘डेमोक्रेटिक आज़ाद पार्टी’ (डीएपी) जम्मू-कश्मीर में कितना दमखम दिखा पाएगी, यह कहना अभी जल्दबाजी है। आज़ाद ने करीब पांच दशक कांग्रेस को दिए थे। वे जम्मू-कश्मीर राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे, लेकिन अब परिस्थितियां अलग हैं।
अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाने के बाद लद्दाख अलग हो चुका है। जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश है। पाक प्रायोजित आतंकवाद, आंतरिक अलगाववाद और हिंसा से पीड़ित जम्मू-कश्मीर में आज़ाद की राह आसान नहीं होगी। यहां पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसी क्षेत्रीय पार्टियां पहले से मौजूद हैं। उनके अलावा भाजपा, कांग्रेस भी हैं। इन सबके बीच डीएपी को जगह बनाने में खासी मशक्कत करनी होगी। इस केंद्र शासित प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग भी हो रही है। इसके अलावा अनुच्छेद 370 को बहाल करने का मुद्दा अपनी जगह मौजूद है।
हालांकि आज़ाद ने यह कहकर अपना सियासी मिशन साफ कर दिया है कि वे अनुच्छेद 370 को बहाल करने को चुनावी मुद्दा नहीं बनाएंगे। चूंकि सड़क, जलापूर्ति और महंगाई जैसे मुद्दे उनकी प्राथमिकता में हैं। आज़ाद का यह कहना भी स्वागत-योग्य है कि उनकी विचारधारा महात्मा गांधी के आदर्शों पर आधारित होगी। आज जम्मू-कश्मीर को इसकी बहुत जरूरत है। अहिंसा एवं सद्भाव से ही लोगों का कल्याण हो सकता है। इसके लिए सर्वसमाज को एकजुट होना होगा।
पाक प्रायोजित आतंकवाद की कमर तो हमारे सुरक्षा बलों ने तोड़ ही दी है, अब जम्मू-कश्मीर के निवासी यह संकल्प कर लें कि भारतविरोधी किसी भी तत्त्व की दाल नहीं गलने देंगे। इसके अलावा कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है। हाल में जिस तरह पंडितों और अन्य राज्यों के निवासियों को आतंकवादियों ने निशाना बनाया, वह चिंताजनक है। ऐसी गतिविधियां बिना नेटवर्क के अंजाम नहीं दी सकतीं।
स्पष्ट है कि नागरिकों के बीच ऐसे तत्त्व मौजूद हैं, जो मानवता-विरोधी कृत्य कर रहे हैं। उन्हें एजेंसियां पकड़ रही हैं, जिनकी सूचना आम नागरिक ही मुहैया करा रहे हैं। डीएपी समेत सभी राजनीतिक पार्टियों की जिम्मेदारी है कि वे जम्मू-कश्मीर को आतंकवाद से मुक्त बनाने में सक्रिय योगदान दें। जो नौजवान कट्टरता एवं भावावेश में आकर भटक चुके हैं, उन्हें मुख्य धारा में लाया जाए। जम्मू-कश्मीर के हर निवासी का भविष्य भारत के साथ जुड़ा हुआ है। पाकिस्तान अपने नागरिकों को सिवाय तबाही के और कुछ नहीं दे सका, वह जम्मू-कश्मीर को क्या दे देगा?
आज़ाद भले ही यह कहें कि डीएपी का किसी अन्य राजनीतिक दल से कोई मुकाबला नहीं होगा, लेकिन वास्तविकता इससे अलग है। केंद्र शासित प्रदेश में जैसे ही चुनावों की घोषणा होगी, नेताओं के बीच जुबानी जंग तेज हो जाएगी। आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू होगा। हर कोई खुद को जम्मू-कश्मीर का सच्चा हितैषी बताएगा।
आज़ाद इस बात का खास तौर से ध्यान रखें कि अगर उनकी पार्टी के आदर्श महात्मा गांधी हैं, तो उनके और पार्टी नेताओं के शब्दों से भी यह झलकना चाहिए। अतीत में जिस तरह कुछ नेता सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए देश की एकता और अखंडता को ललकार चुके हैं, ऐसे शब्दों से परहेज करना होगा। आज़ाद का जम्मू-कश्मीर में शांति व सामान्य स्थिति को मजबूत बनाने पर ध्यान केंद्रित करने का वादा सराहनीय है। अगर शांति कायम रहेगी तो ही खुशहाली आएगी। उम्मीद है कि आज़ाद और उनकी पार्टी के नेता, कार्यकर्ता इन शब्दों को धरातल पर साकार करके दिखाएंगे।