रूस-यूक्रेन युद्ध से दोनों देशों में हालात बिगड़ना चिंताजनक है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के निर्देश पर यूक्रेन पर जिस तरह बम बरसाए गए, उससे इस देश की हालत तो पतली हुई ही, अब रूस के हाथों से मामला निकलता दिखाई दे रहा है। बड़ी संख्या में रूस के नागरिक विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। बहुत संभव है कि रूस यूक्रेन को और भारी नुकसान पहुंचाकर खुद को विजेता घोषित कर दे, लेकिन अब तक उसके हज़ारों सैनिकों के मारे जाने की रिपोर्टें आ चुकी हैं। करोड़ों डॉलर के सैन्य साजो-सामान का नुकसान अलग है।
इस युद्ध पर भारत का रुख स्पष्ट रहा है। उसने शांति का आह्वान किया, हिंसा से बचने का संदेश दिया। उज्बेकिस्तान के समरकंद में हुए शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन से इतर पुतिन से मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उचित ही कहा था कि ‘आज युद्ध का युग नहीं है।’
चूंकि पूरा विश्व कोरोना महामारी के साए से निकल नहीं पाया है। आर्थिक समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं। बेरोजगारी की समस्या ने सरकारों के पसीने छुटा दिए हैं। जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभाव दिखाई दे रहे हैं। महंगाई बढ़ रही है। समस्याओं की सूची बहुत लंबी है। इस समय तो सभी देशों को खासतौर से ऐसे कदम उठाने चाहिएं, जिनसे परस्पर सहयोग और समन्वय के वातावरण का निर्माण हो, आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहन मिले, रोजगार के अधिकाधिक अवसरों का सृजन हो, स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा मिले, प्रदूषण को नियंत्रित किया जाए, महंगाई कम हो, स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर हों ...। इन कार्यों को दृढ़प्रतिज्ञ होकर करने का समय है। युद्ध से सिवाय तबाही, खंडहर और लाशों के कुछ नहीं मिलने वाला। रूस-यूक्रेन युद्ध में दोनों देशों को जो हानि हुई है, उससे ये जीतकर भी हारेंगे।
अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन का यह कहना कि प्रधानमंत्री मोदी ने जो कहा, वह ‘सिद्धांतों पर आधारित था जिन्हें वे सही और न्यायोचित मानते हैं ... अमेरिका इसका स्वागत करता है’ - से स्पष्ट होता है कि भारतीय प्रधानमंत्री के शब्दों का वजन न केवल रूस, बल्कि अमेरिका भी मानता है। यूं तो भारत के तीनों देशों (अमेरिका, रूस, यूक्रेन) से मधुर संबंध हैं, लेकिन रूस पुराना मित्र है, जिसके साथ अधिक आत्मीयता है।
अगर युद्धरत दोनों देश इस बिंदु तक पहुंच जाएं कि उनके लिए युद्ध की दिशा में आगे बढ़ना या शांति-स्थापना के लिए पीछे हटना अत्यंत कठिन/असंभव हो गया तो भारत संवाद स्थापित कराकर शांति बहाल करवा सकता है। अमेरिका और यूरोपीय देशों ने रूस के लिए जिन शब्दों का उपयोग किया, उससे प्रतीत नहीं होता कि पुतिन उनका कोई प्रस्ताव सहज ही स्वीकार कर लेंगे। अगर वे स्वीकार करेंगे तो इससे घर में ही उनकी छवि धूमिल होने का अंदेशा रहेगा।
युद्ध से पहले पश्चिमी देश यूक्रेन को झूठा हौसला देते रहे, लेकिन जब सच में युद्ध छिड़ गया तो सिवाय उपदेशों के कुछ नहीं मिला। रूसी सेना के जबरदस्त धावे से यूक्रेन के कई शहर खंडहर हो गए। अगर आज युद्ध रुक जाए तो भी उन्हें उसी स्वरूप में खड़े होने में वर्षों लग जाएंगे। यूक्रेन की अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ेगा। लोगों के दिलो-दिमाग़ पर दशकों तक इस युद्ध की दहशत छाई रहेगी।
भारत चाहता है कि रूस और यूक्रेन को न तो एक भी सैनिक या नागरिक गंवाना पड़े और न एक डॉलर का भी नुकसान हो। दोनों देशों के बीच अविलंब युद्ध-विराम हो और सौहार्दपूर्ण वातावरण में शांतिवार्ता हो। उन्हें समझना होगा कि यह समय युद्ध का नहीं, शांति और नवनिर्माण का है।