राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत का ‘अखिल भारतीय इमाम संगठन’ के प्रमुख इमाम उमर अहमद इलियासी से मुलाकात करना स्वागत-योग्य कदम है। मस्जिद के एक कक्ष में दोनों की मुलाकात के कई मायने निकाले जा रहे हैं, लेकिन भारत के सामुदायिक सौहार्द के लिए ऐसी पहल होनी चाहिए।
चूंकि लंबे समय से ऐसी नकारात्मक शक्तियां काम कर रही हैं, जिनकी मंशा है कि भारत में विभिन्न समुदायों के बीच कलह का वातावरण बना रहे। सोशल मीडिया ने उन्हें बड़ा हथियार दे दिया है, जिसके जरिए वे दिनभर एक ग्रुप से दूसरे ग्रुप में भड़काऊ सामग्री शेयर करती रहती हैं। लोग आवेश में आकर उनको गंभीरता से लेते हैं, जिसकी परिणति हिंसक घटनाओं के रूप में होती है। हमें ऐसी घटनाओं को टालने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि विभिन्न समुदायों के धर्माचार्यों एवं कार्यकर्ताओं के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध रहें। वे एक मंच पर आकर देशवासियों के बीच एकता का आह्वान करते रहें।
भारत को स्वतंत्र एवं अखंड रखने का दायित्व हर नागरिक का है। धर्माचार्यों तथा सामाजिक क्षेत्र के जाने-माने लोगों के लिए यह दायित्व और बढ़ जाता है। उन्हें ऐसे शब्दों और कार्यों से परहेज करना चाहिए, जिससे समाज में कड़वाहट फैलती हो।
दुःखद है कि इतिहास इन शब्दों को बार-बार सत्य सिद्ध कर दिखाता है कि जिस घर के सदस्य आपस में कटुता रखते हैं, परस्पर सहयोग के बजाय एक-दूसरे को अपमानित करने में ही अपनी शक्ति लगा देते हैं, वह घर शीघ्र ही शत्रुओं के निशाने पर आ जाता है। वह कभी प्रगति नहीं कर पाता। यही सिद्धांत किसी देश पर लागू होता है। अगर समस्त भारतवासी यह ठान लें कि हमें एकजुट होकर अपने देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर करना है तो संसार की कोई शक्ति हमारा अहित नहीं कर सकती।
दुर्भाग्यवश हम आज भी उन लोगों के बहकावे में आ जाते हैं, जो नहीं चाहते कि देश प्रगति करे, हर नागरिक सुखी हो, हर एक को रोजगार मिले, हर किसी को स्वास्थ्य-सुविधाएं मिलें। देश में आए दिन अप्रिय घटनाओं पर काबू पाने के लिए सुरक्षा बलों को खासी मशक्कत करनी पड़ती है। सहिष्णुता और सद्भाव हमारी पहचान है, जिसे कुछ विध्वंसक शक्तियां नष्ट करना चाहती हैं। वे भ्रामक पोस्ट और भड़काऊ नारे लगाकर माहौल को गरमाती रहती हैं। किशोरों और नौजवानों को पत्थरबाजी के लिए उकसाती हैं। आगजनी करवाती हैं। सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार करती हैं।
जब ये ख़बरें विदेशों में बैठे उनके आका पढ़ते हैं तो वे ठहाके लगाते हैं। यह देश हमारा है। हम ऋषियों की संतानें हैं। हमारी पूजन-पद्धतियां अलग हो सकती हैं, लेकिन हमारे पूर्वज तो एक ही थे। निस्संदेह विभिन्न कालखंडों में कई विदेशी आक्रांताओं ने इस देश को लूटा, समाज को तोड़ा और अत्याचार की पराकाष्ठा को पार करते हुए राज किया। वे इतिहास का हिस्सा तो हो सकते हैं, लेकिन हमारे आदर्श कभी नहीं हो सकते, इसलिए उनके ज़माने में हुईं घटनाओं को लेकर आज हमारे बीच कड़वाहट पैदा होना उचित नहीं है।
हमारे आदर्श श्रीराम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, नानक, गुरु गोबिंद सिंह, विवेकानंद तथा महर्षि अरविंद ... हैं। आज हमें मिलकर उन चिह्नों की पुनर्स्थापना, पुनर्प्रतिष्ठा करनी चाहिए, जिन पर वार करने का दुस्साहस विदेशी आक्रांताओं ने किया था। ऋषियों की संतानें अपने तीर्थों, मंदिरों, धर्मस्थलों एवं संस्कृति का गौरव लौटाने के लिए अदालतों में लड़ने के बजाय आनंदपूर्ण वातावरण में सहयोग का मार्ग अपनाएं, सहिष्णुता और समरसता को समाज का अभिन्न अंग बनाएं। इसके लिए हर स्तर पर प्रयास होने चाहिएं।