प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इंडिया गेट पर महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का अनावरण और ‘कर्तव्य पथ’ का उद्घाटन ऐतिहासिक घटनाएं हैं। भारत माता इस दिन की दशकों से प्रतीक्षा कर रही थी, जो अब पूर्ण हुई है। इस देश की आज़ादी और अखंडता के लिए असंख्य बलिदानियों ने खून दिया, लेकिन जिसने आज़ादी के लिए खून देने का आह्वान सबसे बुलंद आवाज में किया ... इतनी बुलंद कि उससे ब्रिटिश साम्राज्यवाद थर्रा उठा .. वे भारत मां के महान सपूत सुभाष थे। उन्होंने देशवासियों के तन-मन-धन से दासता की बेड़ियां काटने के लिए अपना सर्वस्व दे दिया था।
आज जब शान से खड़ी उनकी प्रतिमा का अनावरण हो चुका है, तो संसार को स्मरण करना चाहिए कि जो लोग अत्याचार एवं अन्याय के बूते शासन स्थापित कर इस दंभ में जीते थे कि उनकी सल्तनत से कभी सूर्य अस्त नहीं होता, आज भारत उनकी अनीति के चिह्नों को हटाकर न्याय की स्थापना कर रहा है। वास्तव में नेताजी सुभाष की प्रतिमा स्थापना के गहरे अर्थ हैं। नेताजी मात्र एक व्यक्ति नहीं हैं, वे उन तमाम बलिदानियों के प्रतिनिधि भी हैं, जिन्हें ज़माना भूल गया। आज़ादी के बाद नेताओं में सत्ता की लालसा ने ऐसे बलिदानियों को विस्मृत ही कर दिया। उन्हें वह स्थान प्राप्त नहीं हो सका, जिसके वे सच्चे अधिकारी थे।
पूर्ववर्ती सरकारों की क्या विवशता थी, अब इस पर बहस करने का समय नहीं है। हमें उन वीरों, बलिदानियों का स्मरण करना चाहिए, उनके स्वप्न को सत्य सिद्ध करने के लिए पूर्ण मनोयोग से परिश्रम करना चाहिए, ताकि हमारा देश विश्व पटल पर अधिक शक्तिशाली, अधिक संपन्न, अधिक सुखी होकर उभरे, सबके लिए आदर्श बने।
सिर्फ 15 अगस्त मना लेने और खास मौकों पर तिरंगा झंडा फहरा लेने का नाम आज़ादी नहीं है। ये तो उसके प्रारंभिक चिह्न हैं। असल आज़ादी तो इस बात में होगी कि हम आत्मनिर्भर भी बनें। तन, मन और धन से। नेताजी भी यही चाहते थे। इसकी झलक उनके आलेखों और भाषणों में मिलती है। आज जरूरत इस बात की है कि देशवासी स्वस्थ हों। कोरोना महामारी ने बता दिया है कि नागरिक स्वास्थ्य सेवाएं कितनी जरूरी हैं।
हम भारतवासियों के बीच चाहे मतभेद हों, लेकिन मनभेद न हों। हम सांप्रदायिकता, भेदभाव आदि से ऊपर उठकर इस बात को लेकर दृढ़ प्रतिज्ञ हों कि कोई भी ताकत हममें फूट नहीं डाल सकती। चीन, पाक समेत दुष्ट मनोवृत्ति रखने वालों के सामने सभी भारतीय एक हों। हमें धन से भी आत्मनिर्भर बनना है। इसके लिए स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देना होगा। नई टेक्नोलॉजी के साथ अर्थव्यवस्था का भारतीयकरण करना होगा। हमें इसी बात से संतुष्ट होकर नहीं बैठना है कि जीडीपी के मामले में ब्रिटेन को पछाड़कर पांचवें स्थान पर आ गए। हमें प्रथम स्थान पर आना है, देश को लगन, परिश्रम एवं ईमानदारी से शक्ति-संपन्न बनाना है। आयात कम, निर्यात ज्यादा करना है। विदेशी आयात पर निर्भरता कम से कम करनी होगी।
जब देश के नागरिक स्वस्थ व एकजुट होंगे, हर हाथ को काम मिलेगा और राजकोष भरा होगा तो भारत को विश्व गुरु बनने से कोई नहीं रोक सकेगा। अब भारत माता को उस दिन की प्रतीक्षा है। क्या आप इसके लिए तैयार हैं?