सहयोग और समन्वय

भारत के प. बंगाल और उत्तर-पूर्व के राज्यों में बांग्लादेश से आनेवाले आतंकवादी पकड़े जाते रहे हैं


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेशी समकक्ष शेख हसीना से द्विपक्षीय वार्ता के बाद आतंकवादी और चरमपंथी ताकतों के खिलाफ आपसी सहयोग पर जोर देकर स्पष्ट कर दिया है कि भारत अपना पड़ोसी धर्म निभाने के लिए प्रतिबद्ध है। कट्टरपंथी ताकतें चाहती हैं कि दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट आए, जिसका फायदा उठाकर वे उपद्रव मचाती रहें। उन्हें नियंत्रित करने और उनके खात्मे के लिए भारत-बांग्लादेश को खुफिया जानकारी साझा करने के साथ साझा कार्रवाई करनी चाहिए। दोनों देशों के बीच जितना सहयोग बढ़ेगा, उनके नागरिक भी उतने ही ज्यादा सुरक्षित व खुशहाल होंगे।

भारत के प. बंगाल और उत्तर-पूर्व के राज्यों में बांग्लादेश से आनेवाले आतंकवादी पकड़े जाते रहे हैं। बांग्लादेश की मौजूदा सरकार चाहे भारत के साथ समन्वय पर जोर देती हो, लेकिन यह कड़वी सच्चाई है कि वहां कट्टर आतंकवादी मौजूद हैं। बांग्लादेश को इनके खिलाफ कठोर कार्रवाई करनी चाहिए। इसके अलावा भारत के साथ सूचना तंत्र मजबूत करना चाहिए, ताकि घुसपैठ की स्थिति में यहां सुरक्षा बलों को आसानी हो।

बांग्लादेश का अस्तित्व में आना एक ऐतिहासिक व दुर्लभ घटना थी, जिसके लिए भारत के हज़ारों सैनिकों ने अपना लहू दिया था। पाकिस्तान आज तक 16 दिसंबर, 1971 को याद कर रो रहा है, क्योंकि उस दिन उसके 93,000 सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने घुटने टेक कर आत्मसमर्पण किया था। पाक नहीं चाहता कि बांग्लादेश सही-सलामत रहे। वह उसका विभाजन चाहता है, जिसके लिए आईएसआई आतंकवाद का जहर वहां निर्यात कर रही है। सोशल मीडिया ने इन गतिविधियों को काफी आसान बना दिया है। इसका परिणाम दिखाई दे रहा है। बांग्लादेश में कई शिक्षण संस्थान कट्टरपंथ के गढ़ बनते जा रहे हैं, जिन पर शेख हसीना सरकार को नजर रखनी चाहिए। इस पड़ोसी देश को समझन होगा कि कट्टरपंथ ऐसा भस्मासुर है, जिसकी चपेट में एक दिन वह भी आता है, जिसने इसे पाला था।

निस्संदेह बांग्लादेश ने रोजगार, उद्योग धंधों, स्वास्थ्य सेवाओं, परिवार नियोजन समेत कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है। उसकी मुद्रा और पासपोर्ट पाकिस्तान आदि कई देशों की मुद्रा व पासपोर्ट से बहुत मजबूत स्थिति में हैं। बांग्लादेश को अपनी सेना पर भारी-भरकम खर्च नहीं करना पड़ता, इसलिए वह अपने बजट का बड़ा हिस्सा विकास कार्यों पर लगा सकता है। इसका श्रेय भारत को भी दिया जाना चाहिए, क्योंकि यहां किसी भी पार्टी की सरकार रही हो, सबने बांग्लादेश के साथ सहयोग का रवैया अपनाया है। इसका लाभ बांग्लादेश की जनता को मिला है। यह सहयोग और बढ़े, इसके लिए भारत सरकार प्रतिबद्ध है।

बांग्लादेश द्वारा 1971 के मुक्ति संग्राम में वीरगति को प्राप्त या गंभीर रूप से घायल हुए भारतीय सैनिकों के वंशजों के लिए मुजीब छात्रवृत्ति की घोषणा भी अच्छी पहल है। इससे दोनों देशों के संबंध मधुर होंगे। बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान के नाम से जारी होने वाली यह छात्रवृत्ति बांग्लादेश के राष्ट्रपिता और उन भारतीय वीरों को नमन करने का विनम्र प्रयास है, जिन्होंने इस देश की जड़ों को अपने लहू से सींचा है।

बांग्लादेश ने 1971 के दोषियों के खिलाफ सदैव कठोर रुख अपनाया है। उसने विस्तृत जांच कर ऐसे लोगों की सूची प्रकाशित की थी, जिन्होंने मुक्ति संग्राम को विफल करने की कोशिश की, अल्पसंख्यक हिंदुओं का कत्ले-आम किया, महिलाओं से दुष्कर्म कर अत्याचार का घोर निंदनीय उदाहरण प्रस्तुत किया। बांग्लादेश सरकार ऐसे अपराधियों के खिलाफ अदालती कार्रवाई में तेजी लाए और उन्हें मृत्युदंड दिलाकर बांग्लादेश की वीर संतानों को श्रद्धा-सुमन अर्पित करे।

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