जैसलमेर। राजस्थान की पश्चिमी सीमा पाकिस्तान से लगती है, जहां हमारे सुरक्षाबल हमेशा मुस्तैदी से तैनात रहते हैं। यहां अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास तनोट माता का मंदिर है, जिसे बॉर्डर वाली माता के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर के साथ भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्धों की कई घटनाएं जुड़ी हैं। वर्ष 1965 के युद्ध में पाकिस्तान ने इस इलाके में आक्रमण किया था। चूंकि तनोट मंदिर से पूरे देश की आस्था जुड़ी है, इसलिए पाकिस्तान इस मंदिर पर गोले दागकर हमारी आस्था को भी ठेस पहुंचाना चाहता था।
उसने यहां हजारों गोले दागे लेकिन माता के प्रताप से एक भी नहीं फटा। उसके बाद भारतीय सेना ने जवाबी हमला किया तो कई पाकिस्तानी फौजी मारे गए और कई जान बचाकर भाग गए। यहां पाकिस्तान के कई टैंक ध्वस्त हो गए थे। यही नहीं, पाकिस्तानी फौज अपनी जीप छोड़कर भाग गई थी, जिसे आज भी यहां देखा जा सकता है।
तनोट माता के इस मंदिर को अत्यंत चमत्कारी माना जाता है। बीएसएफ के जवान यहां का पूरा जिम्मा संभालते हैं। वे दैनिक आरती, पूजा-अर्चना से लेकर श्रद्धालुओं के लिए विभिन्न सुविधाओं का ध्यान रखते हैं। ड्यूटी पर जाने से पहले जवान माता का स्मरण करना नहीं भूलते। उनका मानना है कि माता के आशीर्वाद से ही वे रेगिस्तान में पूरी ताकत के साथ देश की सेवा करते हैं।
जब 1965 का युद्ध हुआ तो पाकिस्तान ने इस मंदिर को तोड़ने के इरादे से तीन ओर से हमला किया। यहां उसने 3 हजार से ज्यादा गोले दागे थे। करीब 450 गोले मंदिर के आंगन में गिरे, परंतु एक भी नहीं फटा। मंदिर को कुछ नहीं हुआ। उसके बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तान पर प्रहार किया। उसके कई सैनिक इस इलाके में मारे गए। 1971 के युद्ध में भी पाकिस्तान ने इस ओर आने की जुर्रत की थी। तब भारतीय सेना ने उसकी हर चाल को विफल करते हुए उसे दो हिस्सों में तोड़ दिया। यही वजह है कि सामान्य दिन हो या युद्ध, हमारे जांबाज माता तनोट का स्मरण करना नहीं भूलते।