ऐसी स्थिति में जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कई बार इन योगों का निवारण सप्तम भाव में बैठे किसी शुभ ग्रह या उसकी दृष्टि से हो जाता है। कुंडली में इस दोष के निवारण के लिए श्रावण मास सर्वश्रेष्ठ है।
बेंगलूरु। किसी भी जातक की कुंडली में योग उसके वैवाहिक जीवन को प्रभावित कर सकता है। इसीलिए हमारे समाज में विवाह से पूर्व भावी वर और कन्या की कुंडलियों का मिलान किया जाता है। अगर कहीं कोई दोष होता है तो उसका समय रहते निवारण करना चाहिए, अन्यथा उसका अशुभ फल मिल सकता है। यूं तो ज्योतिष में अनेक योगों का वर्णन है, पर दुल्हन की कुंडली के लिए विषकन्या नामक योग अच्छा नहीं माना जाता।
विद्वान कहते हैं कि यह योग उसे वैवाहिक सुख और परिवार से वंचित कर देता है। यह कई प्रकार से निर्मित होता है। अगर कन्या के जन्म के समय अश्लेषा या शतभिषा नक्षत्र आ जाए तथा उसी दिन रविवार एवं द्वितीया तिथि हो .. इसके अलावा अगर कृतिका, विशाखा या शतभिषा नक्षत्र आ जाए और दिन रविवार हो, तिथि द्वितीया हो।
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इसी प्रकार अश्लेषा या विशाखा या शतभिषा नक्षत्र आ जाए, उस दिन मंगलवार एवं सप्तमी तिथि का योग बने। इसके अलावा अश्लेषा शनिवार को आए और तिथि द्वितीया हो। एक अन्य स्थिति के अनुसार, शतभिषा नक्षत्र हो, दिन मंगलवार और तिथि द्वादशी हो। यह शुभ फल नहीं देता। शनिवार को सप्तमी या द्वादशी का कृतिका से संयोग भी अच्छा नहीं माना गया।
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ऐसी स्थिति में जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। हालांकि कई बार इन योगों का निवारण सप्तम भाव में बैठे किसी शुभ ग्रह या उसकी दृष्टि से हो जाता है। इसलिए किसी विद्वान पंडित से इसकी विस्तृत जानकारी लेनी चाहिए। कुंडली में इस दोष के निवारण के लिए श्रावण मास सर्वश्रेष्ठ है। इस साल यह 28 जुलाई को शुरू हो गया है। श्रावण मास में सोमवार को शिवजी का उपवास कर उनका दुग्ध, चावल एवं विभिन्न शृंगार से पूजा करने करते हुए ‘ऊं नम: शिवाय’ मंत्र का जाप किया जाए तो वे ऐसे अशुभ योगों का निवारण अवश्य कर देते हैं।
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