बेंगलूरु। जिस घर में लोग शांति और प्रेम से रहते हैं, उसकी समानता मंदिर से की जाती है। हमारे घरों में हम देवी-देवताओं के पूजन के लिए एक स्थान जरूर निर्धारित करते हैं। प्राय: घरों में स्थित पूजनस्थल या मंदिर के संबंध में लोग वास्तु की कुछ बातें भूल जाते हैं। वास्तु के नियमों का उल्लंघन कर बनाया गया स्थान मनोवांछित फल नहीं देता। भविष्य में इससे दूसरी समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं। अत: घर में पूजनस्थल चाहे जितना भी बड़ा हो, उसमें वास्तु के कुछ खास नियमों का जरूर ध्यान रखना चाहिए।
1. पूजनस्थल के बारे में सबसे महत्वपूर्ण चीज है- दिशा। बेहतर होगा कि इसी के अनुसार पहले से ही एक स्थान तय कर लें, ताकि बाद में आपको परेशानी का सामना न करना पड़े। वास्तु के अनुसार, पूर्व दिशा सर्वोत्तम होती है। अगर स्थान का अभाव हो तो उत्तर एवं उत्तर-पूर्व भी ठीक हैं। दक्षिण दिशा को प्रशंसनीय नहीं माना गया है, क्योंकि यह यम की दिशा है।
2. पूजनस्थल में देवी-देवताओं की मूर्तियों और चित्रों के बारे में सावधानी बरतनी चाहिए। बहुत बड़ी और काफी संख्या में मूर्तियां न रखें। दो शिवलिंग एक ही स्थान पर न रखें। इसे अशुभ माना जाता है। साथ ही एक घर में दो मंदिर नहीं बनाने चाहिए। यह परिवार की एकता के लिए ठीक नहीं माना जाता। परिवार में एक ही मंदिर/पूजनस्थल होना चाहिए, ताकि सभी परिजनों का उससे जुड़ाव रहे।
3. स्वर्गवासी परिजनों की तस्वीरें देवी-देवताओं के साथ मंदिर में न लगाएं। बेहतर होगा कि स्वर्गवासी बुजुर्गों की तस्वीरें किसी अन्य स्थान पर लगा दें, परंतु मंदिर में देवताओं के संग उन्हें विराजमान न करें। वहां सिर्फ इष्टदेव की प्रतिमा/चित्र आदि हो तो उत्तम है।
4. रसोई में पूजनस्थल न बनाएं। इसी प्रकार जहां से सीढ़ियां गुजरती हों, उनके नीचे पूजनस्थल का निर्माण न करें। पूजनस्थल के लिए साफ, हवादार, रोशनीयुक्त और पवित्र स्थान का ही चयन करें, जहां परिवार के सभी लोग खड़े हो सकें।