बेंगलूरु। नवरात्र हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख पर्व है। इस दौरान मां के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। वैसे तो एक वर्ष में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ के महीनों में कुल मिलाकर चार बार नवरात्र आते हैं लेकिन चैत्र और आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक पड़ने वाले नवरात्र काफी लोकप्रिय हैं। बसंत ऋतु में होने के कारण चैत्र नवरात्र को वासंती नवरात्र तो शरद ऋतु में आने वाले आश्विन मास के नवरात्र को शारदीय नवरात्र भी कहा जाता है।
नवरात्र के पहले दिन घटस्थापना की जाती है। इसके बाद लगातार नौ दिनों तक क्रमशः मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि के रूप में मां की पूजा व उपवास किया जाता है। दसवें दिन कन्या पूजन के पश्चात उपवास खोलकर भोजन किया जाता है। इस वर्ष शारदीय नवरात्र 10 अक्टूबर से शुरू होकर 19 अक्टूबर विजयादशमी पर्व तक रहेंगे।
नवरात्रि में घट स्थापना करते समय कुछ नियमों का पालन करने से माता की पूजा सफल होती हैं। ये 5 विशेष नियम इस प्रकार हैं-
1- उत्तर-पूर्व दिशा यानी (ईशान कोण) देवताओं की दिशा है। इसलिए, इस दिशा में माता की प्रतिमा और घट स्थापना करें।
2- घट स्थापना सदैव शुभ मुहूर्त में और स्नान आदि से निवृत्त होकर ही करें। पूजा स्थान से थोड़ी दूर पर एक पाटे पर लाल व सफेद रंग के कपड़े बिछाएं। नवरात्रि की इस पूजा में सबसे पहले गणेशजी का पूजन किया जाता है। कलश को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है, जो कि भगवान विष्णु का प्रतिरूप माना जाता है।
कलश पर स्वस्तिक बनाएं और इसके गले में मौली बांधें। 5 प्रकार के पत्तों से कलश को सजाते हुए इस घट या कलश में हल्दी की गांठ, साबुत सुपारी, दुर्वा और मुद्रा रखी जाती है। एक जटाधारी नारियल को लाल कपड़े में बांधकर उसे कलश पर रख दें। ध्यान रहे कि नारियल का मुंह आपकी ओर रहे।
3- पूजा करते समय सारे देवताओं को इन समस्त दिनों के दौरान विराजमान रहने के लिए प्रार्थना करें। कलश के नीचे बालू की वेदी होती है जिसमें जौ को बोया जाता है। इस विधि में धन धान्य देने वाली अन्नपूर्णा देवी की पूजा होती है। मां दुर्गा की प्रतिमा को पूजा स्थान के बीच में स्थापित करते समय उसे अक्षत, चुनरी, सिंदूर, फूलमाला, रोली, साड़ी, आभूषण और सुहाग से सुसज्जित करें। कलश की पूजा व टीका करने के बाद देवी माँ की चौकी स्थापित करें।
4- सुबह सवेरे के देवी पूजन में माता को फल व मिठाई और रात में दूध का भोग लगाएं। पूजा के समय दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और अखंड दीया जलाएं जो व्रत के पारण तक जलता रहे।
5- कलश के स्थापित हो जाने के पश्चात गणेशजी और मां दुर्गा की आरती से 9 दिनों का व्रत प्रारंभ कीजिए। इस प्रकार शास्त्र विधि के अनुसार शक्ति का पूजन करके अपने व्यापार, परिवार, सेहत, बुद्धि, मानस आदि को शक्ति की कृपा से उन्नत बनाकर दैनिक जीवन मे आने वाले समस्त कष्टों से छुटकारा पाया जा सकता है।
– ज्योतिर्विद पं. श्रीधर खांडल, बेंगलूरु, फोन : +91 88847 69193
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