बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के जयनगर स्थित श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन ट्रस्ट में विराजित साध्वीश्री रिद्धिमाश्रीजी ने कहा कि आत्मा का एक लक्षण है संयम। प्रभु महावीर ने उत्तराध्ययन सूत्र के तीसरे अध्ययन में चार दुर्लभ वस्तुओं का वर्णन किया है, मनुष्य का भव अत्यंत दुर्लभ है, मनुष्य का भव मिल भी गया तो सम्यक ज्ञान मिलना उससे भी कठिन है, उस पर श्रद्धा का आना और भी कठिन है, दुर्लभ है और श्रद्धा भी आ गई तो संयम का मिलना सबसे कठिन है, अति दुर्लभ है।
संयम यानी विकारों पर कंट्रोल, इंद्रियों पर कंट्रोल, आत्म अनुशासन, संयम कहलाता है । जो कुछ सीखा, पढ़ा, जाना, समझा उस पर चिंतन किया, उस पर श्रद्धा करें, लेकिन जब तक उसे जीवन में इंप्लीमेंट नहीं करेंगे तब तक हमें संयम की प्राप्ति नहीं हो सकती, संयम यानी जो कुछ हमने समझा है उसको अपने जीवन में उतारना ही होगा।
केवल वस्त्र बदल लेने से या दीक्षित हो जाने से कोई संयमी नहीं हो सकता, संयमी होने के लिए मन और इंद्रियों को कंट्रोल में करना होगा, अपनी विषय वासनाओं को खत्म करना होगा, इच्छाओं से ब्रेक करना होगा, तभी हम संयम को जीवन में अपना सकते हैं और वही संयम हमें मोक्ष तक ले जा सकता है।
सभा का संचालन करते हुए अध्यक्ष दीपचंद भंसाली ने बताया कि साध्वी शुभांगीजी के आठ दिन के उपवास पूर्ण हो चुके है और तपस्या आगे गतिमान है।
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