बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के मागड़ी रोड स्थित सुमतिनाथ जैन संघ में चातुर्मासार्थ विराजित साध्वीश्री तत्वत्रयाश्रीजी व गोयमरत्नाश्रीजी ने अपनी प्रवचन शृंखला में सिन्दूर प्रकरण ग्रंथ का वाचन करते हुए मोक्ष के दूसरे द्वार गुरुभक्ति के बारे में बताते हुए अपने प्रवचन में कहा कि हमारे जीवन में यह भावना होनी चाहिए कि जब जीवन का अंत हो मेरे सामने संत हो, मेरे होठों पर अरिहंत हो और महावीर का यह पंथ हो।
गुरु के प्रति हमारा समर्पण परमात्मा के जितना ही होना चाहिए। जो जीवन मे योग्य शिष्य नहीं बन पाया, वह कभी योग्य गुरु को प्राप्त नहीं कर सकता इसलिये गुरु भक्ति में जीवन समर्पित कर देना ही सत्यता है। जिस तरह राजा के विहीन राज्य और स्वामी के बिना देश, राष्ट्र ग्राम आदि सारी विभूतियां निष्पयोगी है, नाश को प्राप्त करने वाली है, उसी प्रकार गुरु भक्ति के विहीन शिष्य के समस्त अनुष्ठान व्यर्थ है।
कल्याण के इच्छुक शिष्यों को प्रतिदिन, हमेशा ही गुरुओं की उपासना, सेवा, भक्ति करनी चाहिए, क्योंकि जिस प्रकार गरुड़ पक्षी जिस के पास होता है, उसके पास सर्प नहीं आते, उसी प्रकार गुरु भक्ति रूपी गरुड़ जिसके हृदय में है उनको धर्मानुष्ठान में आने वाले विघ्नरूपी सर्प काट नहीं सकते है, गुरु भक्ति ही भवसागर से तिराने वाली है। प्रवचन में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।
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